नवीन जैन का ब्लॉग: प्राकृतिक संसाधनों को बचाने पर ही बच पाएगा हमारा अस्तित्व
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 28, 2019 17:19 IST2019-07-28T17:19:46+5:302019-07-28T17:19:46+5:30
भारत का बहुत अच्छा दोस्त भूटान बहुत छोटा सा देश है लेकिन इसकी ख्याति इस कारण से है कि यह खुशहाली के मामले में आगे है. इस देश से सीख लेनी चाहिए कि यहां पर्यावरण की चिंता करने का फायदा देश के नागरिकों को इस रूप में मिला है कि वे प्रदूषण रहित माहौल में रहते हैं.

नवीन जैन का ब्लॉग: प्राकृतिक संसाधनों को बचाने पर ही बच पाएगा हमारा अस्तित्व
प्र ति वर्ष 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है. गौरतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर अध्ययन करने वाली अमेरिकी गैरसरकारी संस्था ‘ग्लोबल फुट पिंट्र’ ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें कहा गया है कि दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों का इस कदर दोहन हो रहा है कि साल भर में इस्तेमाल होने वाले प्राकृतिक संसाधन मात्र छह महीने में ही खत्म हो रहे हैं.
पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ‘वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर’ ने भी ग्लोबल फुट प्रिंट की चेतावनी पर चिंता जाहिर की है तथा कहा गया है कि मनुष्य की संसाधनों की मांग प्रकृति के भरण-पोषण की क्षमता से कहीं ऊपर जा पहुंची है. आज के सर्वे भले हमें डरा रहे हैं पर हजारों साल पहले हमारे प्राचीन गं्रथ अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘हे धरती मां, जो कुछ भी तुमसे लूंगा वह उतना ही होगा जितना तू पुन: पैदा कर सके.
तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा.’ मनुष्य जब तक प्रकृति के साथ किए गए इस वादे पर कायम रहा, सुखी और संपन्न रहा, किंतु जैसे ही इस वादे का अतिक्रमण हुआ, प्रकृति के विध्वंसकारी और विघटनकारी रूप उभर कर सामने आए. सैलाब और भूकंप आए. पर्यावरण में और विषैली गैसें घुलीं. मनुष्य की आयु कम हुई और वे पेयजल के लिए तरसने लगे.
पिछले कुछ समय से दुनिया में पर्यावरण को लेकर काफी चर्चाएं हो रही हैं. मनुष्य की गलत गतिविधियों के कारण पृथ्वी को बहुत खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है तथा वाहनों से रोजाना बड़े पैमाने पर धुआं निकल रहा है जो आबोहवा को प्रदूषित कर रहा है. कारखाने नदियों में जहरीला कचरा बहा रहे हैं तो कुछ बड़े राष्ट्र समुद्र में परमाणु परीक्षण करके उसे विषाक्त बना रहे हैं. हम जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करते हैं तब उसका गुस्सा भूकंप, सूखा, बाढ़, सैलाब एवं तूफान की शक्ल में आता है. वर्तमान में मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ों को लगातार काट रहा है लेकिन उतनी ही गति से नए पौधे नहीं लगते.
लगातार पेड़ों के कटने के कारण वन्य जीव-जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ गया है. वनों की संख्या भी कम हो गई है. पक्षी वैज्ञानिक आऱ क़े मलिक के अनुसार बदलती जलवायु, मानवीय हस्तक्षेप तथा भोजन में धुल रहे जहरीले पदार्थ पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार आने वाले 100 सालों में पक्षियों की 1183 प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं.
लगातार जंगलों के कटने और घटने के कारण मनुष्य तथा जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है.भारत का बहुत अच्छा दोस्त भूटान बहुत छोटा सा देश है लेकिन इसकी ख्याति इस कारण से है कि यह खुशहाली के मामले में आगे है. इस देश से सीख लेनी चाहिए कि यहां पर्यावरण की चिंता करने का फायदा देश के नागरिकों को इस रूप में मिला है कि वे प्रदूषण रहित माहौल में रहते हैं. देश के 80 फीसदी हिस्से में किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं है. यहां शहरों को कांक्रीट के जंगलों में बदलने की होड़ नहीं है. सन् 1980 के बाद से ही यहां जीने की उम्र 20 साल बढ़ी है. इसी तरह नीदरलैंड में वहां के प्रधानमंत्री अपना हर काम साइकिल चलाकर ही पूरा करते हैं. इस देश में वायु या ध्वनि प्रदूषण की समस्या नहीं है.
भारत में प्राकृतिक संसाधनों को बचाना अब सबसे बड़ी चुनौती है. पानी का हमने अगर बुद्धिमानी से इस्तेमाल नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब हमें बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा. प्रकृति के संरक्षण के लिए बिजली के उपयोग को भी सीमित करना आवश्यक है. जितना संभव हो सके पेड़ लगाएं, तभी हर दिन जो पेड़ कट रहे हैं उनकी भरपाई
हो सकेगी.