हमारा अस्तित्व प्रकृति से है, प्रकृति का हम से नहीं, योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 28, 2021 02:23 PM2021-07-28T14:23:34+5:302021-07-28T14:24:42+5:30

प्रतिवर्ष 28 जुलाई को दुनियाभर में ‘विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस’ मनाया जाता है, जिसके जरिये वातावरण में हो रहे व्यापक बदलावों के चलते लगातार विलुप्ति के कगार पर है.

nature around world Our existence is from nature not from us Yogesh Kumar Goel's blog | हमारा अस्तित्व प्रकृति से है, प्रकृति का हम से नहीं, योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग

लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा बीमारियों के इलाज पर ही खर्च हो जाता है.

Highlightsजीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों की रक्षा का संकल्प लिया जाता है.सूखा, भूकंप, आकाशीय बिजली गिरने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला तेजी से बढ़ा है.पर्यावरण का संतुलन डगमगाने के चलते लोग अब तरह-तरह की भयानक बीमारियों के जाल में फंस रहे हैं.

आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के चलते विश्वभर में प्रकृति के साथ बड़े पैमाने पर जो खिलवाड़ हो रहा है, उसके मद्देनजर आम जन को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करने की जरूरत अब कई गुना बढ़ गई है. कितना ही अच्छा हो, अगर हम सब प्रकृति संरक्षण में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाने का संकल्प लेते हुए अपने-अपने स्तर पर उस पर ईमानदारी से अमल भी करें.

 

आज कई राज्य बाढ़ के मुहाने पर खड़े हैं, जगह-जगह पहाड़ दरक रहे हैं, ऐसे में हमें यह स्वीकार करने से गुरेज नहीं करना चाहिए कि इस तरह की समस्याओं के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं. पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के अलावा बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन और मौसम चक्र  में आते बदलाव के कारण जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और हमें यह भली-भांति जान लेना चाहिए कि इन प्रजातियों के लुप्त होने का सीधा असर समस्त मानव सभ्यता पर पड़ना अवश्यंभावी है.

वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान इसी दिशा में आकृष्ट करने के लिए प्रतिवर्ष 28 जुलाई को दुनियाभर में ‘विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस’ मनाया जाता है, जिसके जरिये वातावरण में हो रहे व्यापक बदलावों के चलते लगातार विलुप्ति के कगार पर पहुंच रही जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों की रक्षा का संकल्प लिया जाता है.

 प्रकृति के साथ हम बड़े पैमाने पर जो छेड़छाड़ कर रहे हैं, उसी का नतीजा है कि पिछले कुछ समय से भयानक तूफानों, बाढ़, सूखा, भूकंप, आकाशीय बिजली गिरने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला तेजी से बढ़ा है. पर्यावरण का संतुलन डगमगाने के चलते लोग अब तरह-तरह की भयानक बीमारियों के जाल में फंस रहे हैं. लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा बीमारियों के इलाज पर ही खर्च हो जाता है.

हमारे जो पर्वतीय स्थान कुछ सालों पहले तक स्वच्छ हवा के लिए जाने जाते थे, आज वहां भी प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और ठंडे इलाकों के रूप में विख्यात पहाड़ भी अब तपने लगने हैं. इसका एक बड़ा कारण पहाड़ों में भी विकास के नाम पर जंगलों का सफाया करने के साथ-साथ पहाड़ों में बढ़ती पर्यटकों की भारी भीड़ है.

अपनी छोटी-छोटी पहल से हम सब मिलकर प्रकृति संरक्षण के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं. हम प्रयास कर सकते हैं कि हमारे दैनिक क्रियाकलापों से हानिकारक कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसों का वातावरण में उत्सर्जन कम से कम हो. जहां तक संभव हो, वर्षा के जल को सहेजने के प्रबंध करें.

प्लास्टिक की थैलियों को अलविदा कहते हुए कपड़े या जूट के बने थैलों के उपयोग को बढ़ावा दें. प्रकृति बार-बार अपनी मूक भाषा में चेताविनयां देकर हमें सचेत करती रही है. हमें अब समझना ही होगा कि हमारा अस्तित्व प्रकृति से है, प्रकृति का अस्तित्व हम से नहीं है.

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