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ब्लॉग: पत्रकारिता की नैतिकता और प्रेस की स्वतंत्रता

By योगेश कुमार गोयल | Updated: November 16, 2024 07:01 IST

प्रेस को समाज की चिंतन प्रक्रिया का एक ऐसा अनिवार्य तत्व माना गया है, जो उसे दिशा व गति देने में सक्षम हो.

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने तथा उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिए प्रतिवर्ष 16 नवंबर को देश में ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ मनाया जाता है. वास्तव में यह दिवस एक वैधानिक और अर्ध-न्यायिक प्रतिष्ठान के रूप में भारतीय प्रेस परिषद को स्वीकार करने तथा सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है, जो देश में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की उपस्थिति का प्रतीक है और इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है.

पत्रकारिता की नैतिकता और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भारत में प्रथम प्रेस आयोग ने 1956 में एक समिति की कल्पना की थी, जिसने 10 वर्ष बाद 4 जुलाई 1966 को भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की, जिसने 16 नवंबर 1966 को अपना कार्य शुरू किया और उसी के बाद से प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जा रहा है.

भारतीय प्रेस परिषद देश में स्वस्थ लोकतंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के अलावा विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए एक नैतिक प्रहरी के रूप में सभी पत्रकारिता गतिविधियों की निगरानी करती है तथा यह भी सुनिश्चित करती है कि देश में प्रेस किसी बाहरी मामले से प्रभावित न हो.

राष्ट्रीय प्रेस दिवस वास्तव में प्रेस की स्वतंत्रता तथा समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारियों का प्रतीक है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से देश में प्रेस की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित होती है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां प्रेस ने लोगों में राष्ट्रीय चेतना की भावना जागृत करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई, वहीं स्वतंत्रता के बाद भी अनेक अवसरों पर सिद्ध होता रहा है कि प्रेस के बिना भारतीय लोकतंत्र अधूरा है.

पत्रकार को समाज का ऐसा आईना माना जाता रहा है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी सच्चाई को सामने लाता है. भारत में प्रेस को जनता की एक ऐसी ‘संसद’ की उपाधि दी गई है, जिसका कभी सत्रावसान नहीं होता और जो सदैव जनता के लिए कार्य करती है. इसे समाज में परिवर्तन लाने अथवा जागृत करने के लिए जन-संचार का एक सशक्त माध्यम माना गया है. प्रेस को समाज की चिंतन प्रक्रिया का एक ऐसा अनिवार्य तत्व माना गया है, जो उसे दिशा व गति देने में सक्षम हो. इसे जनता की ऐसी आंख माना गया है, जो सभी पर अपनी पैनी और निष्पक्ष दृष्टि रखे.

प्रेस को जनता की उंगली माना गया है, जो गलत कार्यों के विरोध में स्वतः ही उठ जाती है. प्रेस को समाज के प्रति पूर्ण समर्पण के रूप में देखा जाता है. इसे केवल एक पेशा न मानकर जनसेवा का सबसे बड़ा माध्यम माना गया है..

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