डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः शिक्षा क्षेत्र में निवेश की जरूरत
By डॉ एसएस मंठा | Published: October 23, 2019 01:25 PM2019-10-23T13:25:17+5:302019-10-23T13:25:17+5:30
देश में विभिन्न प्रकार की असमानताओं को खत्म करने के लिए एक समान शिक्षा की नितांत आवश्यकता है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में गिरावट देखने को मिली है. समानता को परिभाषित करने वाला एक महत्वपूर्ण मापदंड पाठय़क्रम है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में घोषणा की गई है कि वर्ष 2022 तक पाठय़क्रम और शिक्षण के तरीके में आमूल बदलाव किया जाएगा ताकि सीखने के लिए रट्टा मारने की जरूरत न हो और इसके बजाय 21वीं सदी में रचनात्मकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, समग्र चिंतन, संवाद, बहुभाषावाद, नैतिकता, सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना, डिजिटल साक्षरता आदि को प्रोत्साहित किया जा सके. यह एक ऐसी नीति है जिसका देश को पिछले तीन दशक से इंतजार था. अब जबकि 2022 में अर्थात करीब ढाई साल बाद जब यह नीति लागू होने जा रही है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए.
देश में विभिन्न प्रकार की असमानताओं को खत्म करने के लिए एक समान शिक्षा की नितांत आवश्यकता है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में गिरावट देखने को मिली है. समानता को परिभाषित करने वाला एक महत्वपूर्ण मापदंड पाठय़क्रम है.
एक ऐसे देश में, जहां अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अमीर-गरीब सभी पैसे खर्च करने को तैयार हैं, और भी नए स्कूल खोलना समय की जरूरत है. यूजीसी के स्थान पर उच्च शिक्षा आयोग का निर्माण किए जाने से जहां स्वायत्तता को बढ़ावा मिलेगा, वहीं प्रावधानों को अधिक सुविधाजनक तथा सक्षम बनाए जाने से बेहतर शैक्षिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा. हालांकि इस नए आयोग को आर्थिक अधिकार कितने होंगे, इस बारे में कुछ शंकाएं हैं.
कहा जा रहा है कि नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा के लिए 100 प्रतिशत और उच्च शिक्षा के लिए 50 प्रतिशत छात्रों के नामांकन पर जोर दिया जाएगा. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर निधि की जरूरत पड़ेगी और इस बारे में पूर्व का अनुभव अच्छा नहीं है.
एनडीए सरकार ने वर्ष 2014-15 में शोध एवं विकास कार्यो के लिए 1104 बिलियन की राशि का प्रावधान किया था, जो बजट का 6.15 प्रतिशत था. लेकिन बाद में उसमें हर साल कमी आती गई. ऐसे परिदृश्य में या तो सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र के लिए अधिक प्रावधान किया जाना चाहिए या फिर शिक्षा क्षेत्र में निजी-सार्वजनिक सहयोग पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए. शैक्षणिक साधनों पर जीएसटी लागू किए जाने से भी शिक्षा पर होने वाला खर्च बढ़ा है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में अवसर तो बहुत हैं, जरूरत इसके लिए आवश्यक निवेश को आकर्षित किए जाने की है.