सिकुड़ता नागपुर विधानसभा सत्र और भंग होतीं अपेक्षाएं!

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 8, 2025 05:41 IST2025-12-08T05:41:09+5:302025-12-08T05:41:09+5:30

चुनावी आचार संहिता केे बीच सत्तापक्ष के समक्ष हमेशा की तरह विपक्ष से निपटने की कड़ी चुनौती है.

Nagpur Assembly Session and Shattered Expectations Shrinking Maharashtra winter session December 8 to 14 | सिकुड़ता नागपुर विधानसभा सत्र और भंग होतीं अपेक्षाएं!

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Highlightsइतिहास में पहली बार विधानसभा और विधान परिषद में आधिकारिक रूप से कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा.विपक्ष के समक्ष राज्य में बेरोजगारी, महिला अत्याचार, किसानों की समस्याएं जैसे मुद्दे हैं.कांग्रेस पहले ही सरकार के एक वर्ष पूर्ण होने पर घोटालों के आरोप लगा चुकी है.

अनेक प्रकार की आशंकाओं के बीच राज्य विधानमंडल का शीतकालीन सत्र महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में होने जा रहा है. इस बार सत्र का आयोजन स्थानीय निकाय चुनावों के बीच होगा. दरअसल चुनाव तीन तारीख को ही निपट जाने चाहिए थे, लेकिन तकनीकी समस्याओं और अदालती आदेशों के चलते 24 नगर परिषद-नगर पंचायतों के चुनाव 20 दिसंबर तक टाल दिए गए, जिससे 21 दिसंबर को परिणाम आने के बाद चुनावी प्रक्रिया समाप्त होगी. इस बार सत्र के दिन तो कम हैं ही, साथ ही राज्य के इतिहास में पहली बार विधानसभा और विधान परिषद में आधिकारिक रूप से कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा.

पिछले सत्र से विपक्ष के नेता की मांग जोरदार ढंग से उठ रही है. विधानसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में शिवसेना (ठाकरे गुट) ने भास्कर जाधव के नाम पर आवेदन किया था, लेकिन उस पर मानसून सत्र तक कोई निर्णय नहीं हो सका. प्रतिपक्ष का दावा है कि विपक्ष के नेता पद के लिए 10 प्रतिशत विधायकों वाला कोई घोषित नियम नहीं है.

इसी असंतोष के बीच विपक्ष वोट चोरी, ओबीसी आरक्षण, कर्ज माफी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरेगा. एक तरफ जहां राज्य सरकार पहला साल पूरा होने की खुशियां मना रही है और अपने कार्यों का गुणगान कर रही है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के समक्ष राज्य में बेरोजगारी, महिला अत्याचार, किसानों की समस्याएं जैसे मुद्दे हैं.

कांग्रेस पहले ही सरकार के एक वर्ष पूर्ण होने पर घोटालों के आरोप लगा चुकी है. विदर्भ में कृषि उपजों को अतिवृष्टि से हुए नुकसान, बड़े उद्योगों को लाने जैसे विषय हैं. चुनावी आचार संहिता केे बीच सत्तापक्ष के समक्ष हमेशा की तरह विपक्ष से निपटने की कड़ी चुनौती है. उसकी रणनीति सदन में रखे जाने वाले सारे विधेयकों को पारित करवाने की होगी, साथ ही लग रहे आरोपों पर खुलकर जवाब देने का इरादा भी होगा.

यह भी ध्यान देने योग्य होगा कि नागपुर सत्र होने के कारण विधान मंडल के दोनों सदनों में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ही विपक्ष का मुकाबला करेंगे या फिर दोनों उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार भी पलटवार करते दिखाई देंगे. कुछ ही दिनों पहले स्थानीय निकाय चुनावों में मुख्यमंत्री फडणवीस और उपमुख्यमंत्री शिंदे के बीच तनाव देखा जा चुका है.

किंतु सत्र से एक दिन पहले शिंदे भाजपा अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण के साथ मंच साझा करते देखे गए. इस स्थिति में सरकार के भीतर आपसी समन्वय को लेकर सवाल बने ही हुए हैं. केवल सात दिनों का सत्र और अनेक चिंताएं सबके सामने हैं. आम तौर पर उपराजधानी में सत्र कम से कम दो सप्ताह का होता आया है.

मगर पहले सत्र के आयोजन को लेकर आशंकाओं के बादल और फिर सात दिन की सीमा कहीं न कहीं विदर्भ के साथ बढ़ते अन्याय का संकेत दे रही है. सरकार को अपने संकटों का समाधान अपने ढंग से ढूंढ़ना चाहिए, किंतु शीत सत्र को एक औपचारिकता नहीं बनाना चाहिए. जिससे विदर्भ और उससे लगे मराठवाड़ा क्षेत्र की समस्याओं का हल निकले और सरकार को अपने करीब पाकर भी जनअपेक्षाएं भंग नहीं हों. 

Web Title: Nagpur Assembly Session and Shattered Expectations Shrinking Maharashtra winter session December 8 to 14

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