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एन. के. सिंह का ब्लॉग: लोकतांत्रिक मूल्यों पर 70 वर्ष में हमारा गणतंत्र कितना बेहतर हुआ?

By एनके सिंह | Updated: January 26, 2020 08:21 IST

क्या हमारी संस्थाएं और उन पर बैठे लोगों- विधायिका (जो जनता द्वारा चुनी जाती है), कार्यपालिका (जिसके शीर्ष स्तर का चुनाव एक स्वतंत्न संस्था करती है) और न्यायपालिका (जिसका चुनाव शीर्ष स्तर पर स्वयं इसी संस्था का कॉलेजियम करता है) के प्रति जन-विश्वास बढ़ा है? क्या जन-जीवन आमतौर पर उन मुद्दों पर बेहतर हुआ है जिनमें प्रतिभा दिखाने का सबको समान अवसर(समानता का अवसर) मिला और सरकारों की नीतियों पर खुलकर राय रखने की स्वतंत्नता की स्थिति बेहतर हुई है?

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हमारा गणतंत्न 70 साल का हो गया है. दुनिया के राजनीति-शास्त्न के महारथियों का मानना है कि समय के साथ मानव सोच और उस सोच की वजह से समाज और उसकी शासन प्रणाली खासकर प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली बेहतर होती जाएगी, हालांकि प्लेटो ने विकास का क्र म रखा था राजशाही, सामंतवाद, प्रजातंत्न और तब तानाशाही. क्या भारत प्रजातंत्न के मानकों पर इन सात दशकों में बेहतर हुआ है?

भारतीय गणतंत्न-दिवस के तीन दिन पहले जारी इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 165 देशों में प्रजातंत्न की ताजा स्थिति सन 2006 के मुकाबले सन 2019 में सबसे खराब रही है. भारत में यह स्थिति अभी बीते साल में पिछले 13 वर्षो में सबसे अधिक 9 पायदान गिरकर 51वें स्थान पर पहुंच गई है. ‘हम भारत के लोग’ कह कर हमने अपने संविधान की प्रस्तावना में गणतंत्न यानी ‘जनता का शासन’ दिया था.

इसमें लोगों द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि शासन करते हैं और इन्हें हर पांच साल में (या इससे पहले) फिर जनता के पास जाकर आदेश लेना होता है. प्लेटो ने भले ही तानाशाही को प्रजातंत्न के बाद का चरण माना था लेकिन पूरी दुनिया में माना जाता है कि समाज और उसकी शासन प्रणाली समय के साथ बेहतर होती जाती है. क्या आज समय नहीं है जब हम एक लेखा-जोखा लें अपने गणतंत्न का?  

क्या हमारी संस्थाएं और उन पर बैठे लोगों- विधायिका (जो जनता द्वारा चुनी जाती है), कार्यपालिका (जिसके शीर्ष स्तर का चुनाव एक स्वतंत्न संस्था करती है) और न्यायपालिका (जिसका चुनाव शीर्ष स्तर पर स्वयं इसी संस्था का कॉलेजियम करता है) के प्रति जन-विश्वास बढ़ा है? क्या जन-जीवन आमतौर पर उन मुद्दों पर बेहतर हुआ है जिनमें प्रतिभा दिखाने का सबको समान अवसर(समानता का अवसर) मिला और सरकारों की नीतियों पर खुलकर राय रखने की स्वतंत्नता की स्थिति बेहतर हुई है?

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट पांच पैमानों - चुनावी प्रक्रिया की स्थिति, सरकार की कार्यप्रणाली, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और सामाजिक स्वतंत्नता पर मापी जाती है. भारत पिछले तीन वर्षो में लगातार 41, 42 और सन 2019 में 51 वें स्थान पर फिसल गया. रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 का हटाया जाना और नागरिक संशोधन कानून लाना प्रमुख कारण रहे लेकिन सन 2017 और 2018 में तो ये दोनों कारण नहीं थे, फिर हम क्यों गिरे?

क्या इस गणतंत्न दिवस पर ‘हम भारत के लोग’ और हमारा राजनीतिक-वर्ग अपने को प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध करने की ‘असली’ शपथ लेंगे?

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