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ब्लॉग: म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के नहीं दिख रहे आसार

By शशिधर खान | Updated: January 19, 2022 12:14 IST

गत वर्ष 1 फरवरी को सेना ने एनएलडी प्रमुख म्यांमार की सबसे लोकप्रिय जननेता आंग सान सू की, उनकी पार्टी के राष्ट्रपति यू विन मिंट और सारे कैबिनेट मंत्रियों को जेल में डाल दिया. सेना ने एक फरवरी 2021 को ही एक साल के लिए देश में इमर्जेंसी लगा दी. मगर साथ में यह भी वादा किया कि इमर्जेंसी हटने के बाद ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनाव कराए जाएंगे.

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ठळक मुद्देसेना प्रमुख जनरल मिन आंग हलांग आपातकाल हटाने और लोकतंत्र बहाली प्रक्रिया के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं.सेना ने एक फरवरी 2021 को ही एक साल के लिए देश में इमर्जेंसी लगा दी.सेना प्रमुख मिन आंग अपने पूर्ववर्तियों की तरह सत्ता पर नियंत्रण छोड़ना नहीं चाहते थे.

भारत की पूर्वोत्तर सीमा से सटे पड़ोसी देश म्यांमार में सैनिक तख्तापलट का एक साल पूरा होने जा रहा है. लोकतांत्रिक तरीके से निर्वासित आंग सान सू की के नेतृत्ववाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) सरकार को अपदस्थ करके सत्ता हथियाने वाले सेना प्रमुख जनरल मिन आंग हलांग आपातकाल हटाने और लोकतंत्र बहाली प्रक्रिया के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं.

गत वर्ष 1 फरवरी को सेना ने एनएलडी प्रमुख म्यांमार की सबसे लोकप्रिय जननेता आंग सान सू की, उनकी पार्टी के राष्ट्रपति यू विन मिंट और सारे कैबिनेट मंत्रियों को जेल में डाल दिया. 

सत्ता हाथ में लेते ही ‘तात्मादाउ’ (म्यांमार में सेना इसी नाम से जानी जाती है) संचालक मिन आंग हलांग ने अपने टेलीविजन प्रसारण में सफाई दी कि ‘इतना चरम कदम उठाना जरूरी हो गया था, क्योंकि नवंबर, 2020 आम चुनाव एनएलडी भारी धांधली करके जीती थी .’ 

सेना ने एक फरवरी 2021 को ही एक साल के लिए देश में इमर्जेंसी लगा दी. मगर साथ में यह भी वादा किया कि इमर्जेंसी हटने के बाद ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनाव कराए जाएंगे.

एक साल पूरा होने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. यह दिखावटी अवधि पूरा होने का समय जैसे-जैसे करीब आता गया, सैनिक जुंटा (सेना संचालित पार्टी का नाम) सरकार ने अनेक झूठे बेतुके हथकंडे अपनाए ताकि आंग सान सू की को जेल में ही डाले रखा जाए. 

विश्व की बहुचर्चित नेता नोबल शांति पुरस्कार विजेता सू की बेहद कठिन संघर्ष के बाद अपने देश में आंशिक लोकतंत्र बहाली में सफल हुई थीं. 

76 वर्षीय सू की ने अपनी युवावस्था के 22-23 वर्ष या तो जेल में या अपने घर में नजरबंदी में गुजारे हैं. अपने ही देश की सेना से सू की ने आजादी की लड़ाई व्यापक जनसमर्थन की बदौलत शांतिपूर्वक लड़ी. 

म्यांमार में लोकतंत्र की आवाज को बर्बरतापूर्वक कुचलने और क्रूर दमनकारी रवैया अपनाकर सैनिक तानाशाही बरकरार रखने का सिलसिला पुराना है. अंतरराष्ट्रीय दबाव में दूसरी बार ऐसा हुआ जब नवंबर, 2020 में आम चुनाव हुए और सू की के नेतृत्व में एनएलडी को मिली भारी जीत सैनिक जुंटा को स्वीकार करनी पड़ी. 

शासक के रूप में सेना के जनरलों का सत्ता पर सीधा नियंत्रण नहीं रहा, लेकिन पर्दे के पीछे से सारी नीतियां-तात्मादाउ’ (सेना) अनुमोदित लागू होती थीं. उसे ‘छद्म लोकतंत्र’ कहा जाता था. स्टेट काउंसलर (विदेश मंत्री) के रूप में सत्ता में मौजूद सू की के जनरलों से कभी अनुकूल संबंध नहीं रहे.

नवंबर, 2020 के जिस आम चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर सेना ने सू की को जेल में डाला, वह संयुक्त राष्ट्र समेत यूरोपीय संघ और भारत से भी गए पर्यवेक्षकों की निगरानी में हुआ. सभी अंतरराष्ट्रीय राजनयिकों ने ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ बताया. 

इसके बावजूद सेना ने चुनाव परिणाम को संघ चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी. उन दोनों संवैधानिक संस्थाओं पर भी सेना का अप्रत्यक्ष नियंत्रण होने के बावजूद अपील ठुकरा दी गई.

50 वर्षो के सैनिक शासन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ, जब सेना ने जनादेश प्राप्त राजनीतिक दल के हाथ में सत्ता नहीं जाने दी. आंशिक ही सही, सत्ता का हस्तांतरण तो हुआ. लेकिन सेना प्रमुख मिन आंग अपने पूर्ववर्तियों की तरह सत्ता पर नियंत्रण छोड़ना नहीं चाहते थे. 

विभिन्न सूत्रों से म्यांमार से बाहर निकली खबरों के अनुसार जनरल हलांग के रिटायर होने में एक साल रह गए थे और वे उसके पहले या उस समय तक राष्ट्रपति बनना चाहते थे. आंग सान सू की समेत एनएलडी के सभी शीर्ष नेता इसके खिलाफ थे. 

इसलिए जनरल हलांग जनादेश का गला घोंटकर फौजी आदेश पर चलने वाली कुव्यवस्था वापस ले आए. मार्शल लॉ का सिर्फ ऐलान नहीं किया, लेकिन सारे इंतजाम ब्लैकआउट वाले 1 फरवरी 2021 को ही लागू हो गए. 

राष्ट्रपति, कैबिनेट मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा सारे पत्रकार, लेखक, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ट्रेड यूनियन नेताओं को जेल में डाल दिया गया. हड़ताल, प्रदर्शन, जुलूस और कहीं भी पांच आदमी के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई. 

सड़कों पर सेना का फ्लैग मार्च और प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने का सिलसिला जारी है. इसके बावजूद पूरा देश उबल रहा है. समाज के सभी वर्गो के लोगों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन सैकड़ों को गोली मारने के बावजूद थम नहीं रहा है. 

इन प्रदर्शनों में सैनिकों के भी शामिल होने की रिपोर्ट है. जबकि मीडिया, इंटरनेट, मोबाइल नेटवर्क समेत सारे संचार माध्यमों को सत्तापलट होते ही डाउन कर दिया गया.

दक्षिण एशियाई देशों के संगठन (आसियान) ने म्यांमार पर दबाव बनाया है. अमेरिका ने भी फिर से आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. देखना है इसका क्या असर होता है.

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