मानसून सत्न 2018: संसद के इस सत्र को सफल करें
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 18, 2018 11:54 AM2018-07-18T11:54:13+5:302018-07-18T11:54:13+5:30
इस सत्न को बेहतर बनाने की अपील सत्तारूढ़ दल और विरोधी दल भी कर रहे हैं लेकिन दोनों ही एक दूसरे की टांग-खिंचाई से बाज नहीं आ रहे हैं।
संसद का मानसून सत्न बुधवार से शुरू हो रहा है। हो सकता है कि यह संसद का अंतिम सत्न सिद्ध हो, क्योंकि आम चुनाव जल्दी कराए जाने की खबर आजकल जोरों पर है। आशंका यही है कि पिछले सत्न की तरह यह सत्न भी कहीं हंगामे की भेंट न चढ़ जाए। पिछले सत्न में दोनों सदनों में मुश्किल से 20-30 प्रतिशत ही काम हुआ। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर न तो सार्थक बहस हुई और न ही कई महत्वपूर्ण विधेयक कानून बन पाए। दोनों सदनों के सत्न हंगामे और बहिष्कार की बलि चढ़ गए।
इस सत्न को बेहतर बनाने की अपील सत्तारूढ़ दल और विरोधी दल भी कर रहे हैं लेकिन दोनों ही एक दूसरे की टांग-खिंचाई से बाज नहीं आ रहे हैं। यदि कांग्रेस का आरोप भाजपा पर यह है कि वह संसद में महिला-आरक्षण का कानून तो बनाती नहीं है और तीन तलाक विरोधी कानून के जरिए मुस्लिम महिलाओं को लुभाने में लगी हुई है तो भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस मुस्लिम बुद्धिजीवियों के जरिए मुसलमान पुरुषों को रिझाने में लगी हुई है।
एक जमाना था जबकि जनसंघ और भाजपा को मुस्लिम-विरोधी कहा जाता था। अब कांग्रेस को हिंदू-विरोधी कहा जा रहा है। इसके अलावा राज्यसभा के उप-सभापति के चुनाव को लेकर भी सत्तारूढ़ और विरोधी दलों में दांव-पेंच चल रहे हैं। संसद के इस सत्न में छह अध्यादेशों पर मुहर लगनी है, तीन तलाक और पिछड़े वर्ग संबंधी महत्वपूर्ण विधेयक भी कानून बनने हैं। यदि यह सत्न सिर्फ महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून ही पास कर दे तो इसे मैं सफल सत्न कहूंगा। पाकिस्तान ने इस चुनाव में 5 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की हैं। भारत के दोनों सदनों में क्रमश: 66 और 28 महिलाएं हैं। यानी लगभग 11-12 प्रतिशत। इन्हें तीन गुना करें, उसके पहले सभी दल अपने-अपने संगठनों में कम से कम 20 प्रतिशत पदों पर तो प्रतिष्ठित कर दें।