जल्दबाजी में बनाया गया था तीन तलाक विधेयक, मसविदे में जरूरी थे ये तीन बदलाव
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 11, 2018 08:21 AM2018-08-11T08:21:11+5:302018-08-11T08:21:11+5:30
अब तीन तलाक विधेयक में जो तीन संशोधन किए गए हैं, उनकी वजह से वह काफी बेहतर हो गया है।
जब तीन तलाक का विधेयक लाया गया था, तभी मैंने लिखा था कि यह कानून बहुत जल्दबाजी में बनाया जा रहा है और यह निरर्थक सिद्ध होगा।
तीन तलाक और उसके विरुद्ध बना कानून दोनों ही अतिवाद के शिकार थे। समझ में नहीं आता कि मंत्रिमंडल ने उस विधेयक के प्रारूप को कैसे पारित कर दिया?
अब उसमें उसने तीन संशोधन कर उसे राज्यसभा में भेजा है। इसका अर्थ क्या यह नहीं हुआ कि मोदी मंत्रिमंडल कानून-निर्माण के मामले में सावधान नहीं है?
जल्दबाजी में विधेयक तैयार हो गया। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि ऐसे निरर्थक प्रावधानों या विधेयकों को संसद का बहुमत भी हरी झंडी दे देता है।
हम इन सांसदों को संसद में देश को दिशा देने के लिए भेजते हैं। सत्तारूढ़ दल के अनुभवी सांसद अपनी सरकार का सही मार्गदर्शन क्यों नहीं करते?
उस पर अंकुश क्यों नहीं लगाते? अब तीन तलाक कानून में जो तीन संशोधन किए गए हैं, उनकी वजह से वह काफी बेहतर हो गया है।
एक तो मजिस्ट्रेट को अधिकार दिया गया है कि वह आरोपी को जमानत दे सकता है।
दूसरा, एफआईआर चाहे कोई भी नहीं लिखा सकता। पुलिस में प्रथम सूचना रपट या तो तलाक-पीड़ित पत्नी, उसके रक्त-संबंधी या सुसराल पक्ष के लोग ही लिखा सकेंगे।
तीसरा, यदि पति और पत्नी चाहें तो वे मुकदमा वापस भी ले सकते हैं।
इन संशोधनों के साथ इस विधेयक को कानून का रूप देने में फिलहाल कोई बुराई नहीं दिखती।
इस कानून की घंटियां इधर साल भर से बज रही हैं, उनके बावजूद तीन तलाक की सैकड़ों घटनाएं देश में हो रही हैं।
यदि यह कानून सख्ती से लागू हो गया तो भारत की मुस्लिम महिलाओं के लिए यह वरदान सिद्ध होगा।
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