पुण्य प्रसून बाजपेयी का ब्लॉगः 59 मिनट में कर्ज की मंजूरी के मायने
By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: November 5, 2018 01:42 AM2018-11-05T01:42:11+5:302018-11-05T10:07:37+5:30
सवाल यह नहीं है कि 59 मिनट में एक करोड़ का लोन मिल जाए। याद कीजिए मोदी सरकार का पहला बजट। कॉर्पोरेट/उद्योगों के लिए रास्ता खोलता बजट। भाषण देते वक्त वित्त मंत्नी यह कहने से नहीं चूकते कि कॉर्पोरेट और इंडस्ट्री के पास धंधा करने का अनुकूल रास्ता बनेगा तो ही किसान- मजदूरों के लिए उनके जरिए पूंजी निकलेगी।
प्रधानमंत्नी ने जैसे ही ऐलान किया कि अब छोटे व मझोले उद्योगों (एमएसएमई) को 59 मिनट में एक करोड़ तक का कर्ज घंटे भर में मिल जाएगा, वैसे ही एक सवाल तुरंत जेहन में आया कि देश में एक घंटे से कम में क्या क्या हो जाता है। सरकारी आंकड़ों को ही देखने लगा तो सामने आया कि हर आधे घंटे में एक किसान खुदकुशी कर लेता है। हर 15 मिनट में एक बलात्कार हो जाता है। हर सात मिनट में एक मौत सड़क दुर्घटना में होती है। दूषित पानी पीने से हर दो मिनट में एक मौत होती है।
यानी एक घंटे से कम अर्थात 59 मिनट में एक करोड़ का लोन आकर्षित करने से ज्यादा त्नासदी दायक इसलिए लगता है क्योंकि पटरी से उतरे देश में कौन सा रास्ता देश को पटरी पर लाने के लिए होना चाहिए उस दिशा में न कोई सोचने को तैयार है न ही किसी के पास पॉलिटिकल विजन है। सवाल यह नहीं है कि 59 मिनट में एक करोड़ का लोन मिल जाए। याद कीजिए मोदी सरकार का पहला बजट। कॉर्पोरेट/उद्योगों के लिए रास्ता खोलता बजट।
भाषण देते वक्त वित्त मंत्नी यह कहने से नहीं चूकते कि कॉर्पोरेट और इंडस्ट्री के पास धंधा करने का अनुकूल रास्ता बनेगा तो ही किसान- मजदूरों के लिए उनके जरिए पूंजी निकलेगी। फिर दूसरा बजट जिसमें उद्योग और खेती में बैलेंस बनाने की बात होती है। लेकिन खेती को फिर भी कल्याण योजनाओं से ही जोड़ा जाता है। और तीसरे बजट में अचानक किसानों की याद कुछ ऐसी आती है कि कॉर्पोरेट और इंडस्ट्री से इतर एनपीए का घड़ा यूपीए सरकार के माथे फोड़ कर मुश्किल हालात बताए जाते हैं। और चौथे बजट में भाजपा सरकार किसानों की मुरीद हो जाती है और लगता है कि देश में चीन की तरह कृषि क्रांति की तैयारी सरकार कर रही है। लेकिन बजट के बाद सभी को समझ में आ जाता है कि सरकार का खजाना खाली है। और पांचवें बरस सिर्फ बात बनाकर ही जनता को मई 2019 तक ले जाना है।
यानी बजट भाषण और बजट में अलग-अलग मद में दिए गए रुपयों को ही कोई पढ़ ले तो समझ जाएगा कि 2014 में जो सोचा जा रहा था वह 2018 में कैसे बिलकुल उलट गया। तो ऐसे में फिर लौटिए 59 मिनट में एक करोड़ तक के लोन पर। संघ के करीबी गुरुमूर्ति ने रिजर्व बैंक का डायरेक्टर बनने के बाद बैंकों की कर्ज देने की पूर्व और पारंपरिक नीति को सिर्फ इस आधार पर बदल दिया कि कॉर्पोरेट और उद्योगपति अगर कर्ज लेकर नहीं लौटाते हैं तो फिर छोटे और मझोले उद्योगों को भी यह हक मिलना चाहिए। यानी देश में उत्पादन ठप पड़ा है।
नोटबंदी के बाद 50 लाख से ज्यादा छोटे-मझोले उद्योग बंद हो गए। असंगठित क्षेत्न के 25 करोड़ लोगों पर सीधा तो 22 करोड़ लोगों पर अप्रत्यक्ष तौर पर कुप्रभाव पड़ा। यानी एक करोड़ के कर्ज को इसलिए बांटने का प्रावधान बनाया जा रहा है जिससे देश की लूट में हिस्सेदारी हर किसी की हो। यह हिस्सेदारी जनधन से शुरू होकर स्टार्ट-अप तक जाती है। यानी बैंकों से मोदी नीति के नाम पर रुपया निकल रहा है लेकिन वह रुपया न तो वापस लौटेगा और न ही उस रु पए से कोई इंडस्ट्री, कोई उद्योग, कोई स्टार्ट-अप शुरू हो पाएगा।