ब्लॉग: पुराने दोस्त रूस के साथ सलामत रहे दोस्ताना हमारा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 10, 2024 09:15 IST2024-07-10T09:13:13+5:302024-07-10T09:15:13+5:30

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ऐसे समय में, जबकि यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देशों के विरोध के कारण रूस दुनिया में लगभग अलग-थलग है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में पहले विदेशी दौरे के लिए रूस को चुनकर जता दिया है कि अपने इस पुराने मित्र देश का भारत के लिए कितना महत्व है. नेहरू युग से ही भारत-रूस के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं.
भारतीय फिल्में रूस में बड़े चाव से देखी जाती थीं और राजकपूर जैसे फिल्म स्टारों का वहां भी उतना ही सम्मान था. कश्मीर के मसले पर रूस पचास के दशक से ही भारत का साथ देता आया है. 1955 में रूस के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने कश्मीर पर भारतीय संप्रभुता के लिए समर्थन की घोषणा करते हुए कहा था, ‘हम इतने करीब हैं कि अगर आप कभी हमें पहाड़ की चोटियों से बुलाएंगे तो हम आपके पक्ष में खड़े होंगे.’
आश्वासन सिर्फ मुंहजबानी नहीं था बल्कि सोवियत संघ ने 1957, 1962 और 1971 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उन प्रस्तावों को वीटो कर दिया था, जिसमें कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की बात कही गई थी.
भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष के दौरान भी जब पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका भारत पर लगभग आक्रमण करने ही वाला था, तब रूस द्वारा भारत के पक्ष में भेजी गई सैन्य सहायता ने ही अमेरिका को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया था.
अब तो रक्षा क्षेत्र में भारत लगभग आत्मनिर्भर होने की राह पर आगे बढ़ रहा है लेकिन अतीत में रूस ने ही भारत को सैन्य हथियारों व अन्य साजोसामान की आपूर्ति करके अपने दुश्मनों का सफलतापूर्वक सामना करने में समर्थ बनाया है. ऐसे भरोसेमंद देश के साथ जब बीच के दौर में आर्थिक कारणों व वैश्विक दबावों के चलते दूरी आने लगी थी तो भारत की जनता के बीच से ही मांग उठने लगी थी कि ऐसे विश्वसनीय सहयोगी को खोना उचित नहीं होगा.
बेशक अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों के साथ सभी क्षेत्रों में हमारे संबंध प्रगाढ़ हुए हैं, लेकिन अनेक मौकों पर यह साबित हुआ है कि ये रिश्ते हानि-लाभ पर ही आधारित हैं और जिस तरह से रूस ने कठिन मौकों पर हमारा साथ दिया है, समय की कसौटी पर और कोई देश उस तरह से खरा नहीं उतरा है.
जहां तक यूक्रेन युद्ध की बात है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है कि भारत युद्ध का समर्थन नहीं करता और सभी मसलों को बातचीत के जरिये सुलझाया जाना चाहिए. लेकिन रूस की भी अपनी चिंताएं हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता.
कायदे से तो सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो का विघटन कर दिया जाना चाहिए था, क्योंकि उसका गठन ही सोवियत संघ के खिलाफ किया गया था. लेकिन इसके बावजूद पश्चिमी देशों ने अपनी आक्रामक गतिविधियां जारी रखीं और नाटो का विघटन करने के बजाय उसका विस्तार किया जाता रहा.
जाहिर है कि चीजें इतनी सरल नहीं हैं जितना दिखाने की कोशिश की जाती है. इसीलिए भारत सावधानी बरतता रहा है कि वह किसी भी पक्ष का मोहरा न बनने पाए और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चले.
यही कारण है कि आज दुनिया के सारे देश भारत का सम्मान करते हैं और विश्व राजनीति में उसका अपना एक स्थान है. अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हुए भी रूस का दौरा कर मोदी ने दिखा दिया है कि भारत किसी का पिछलग्गू नहीं है और दुनिया में अपना स्थान खुद बनाना जानता है.