माजिद पारेख का ब्लॉग: राष्ट्रीय एकता ही देश की शान
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 4, 2019 10:02 IST2019-10-04T10:02:32+5:302019-10-04T10:02:32+5:30
जब भी हमारे देश पर बाहरी शत्रुओं का आक्रमण होता है तब देश की एकता मजबूत, संगठित हो जाती है. लेकिन इसके बाद आंतरिक विभेद, प्रांतवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद आदि कारणों से देश की एकता को हानि पहुंचाने वाले तत्व सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए लोकतंत्र की स्थिरता, स्वतंत्रता और सर्वतोमुखी विकास के लिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है.

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)
माजिद पारेख
पवित्र कुरान 20/55 में कहा गया है कि ‘‘ऐ इंसानों! इसी धरती से हमने तुम्हें पैदा किया. मौत के घाट उतारकर इसी मिट्टी में हम तुमको मिला देंगे. फिर हमारी कुदरत से इसी धरती से निकाल कर जिंदा करेंगे और तुम्हारे जीवन का हिसाब लेंगे.’’
इस आयत में संसार के एक अकेले मालिक ने इंसानों से धरती के प्रति वफादारी चाही है. इंसान अगर धरती के प्रति वफादार रहेगा तो वह अपने मोहल्ले, शहर, देश के लिए फायदेमंद साबित होगा.
हमारे देश हिंदुस्तान की शान संपूर्ण धार्मिक, क्षेत्रीय, सामुदायिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक एकता से है. हमारे देश में पूजा-पाठ, रहन-सहन और वेशभूषा आदि में अंतर आ सकता है, परंतु देश की रक्षा के लिए देशवासी प्रतिबद्ध, समन्वित और एकजुट रहते हैं. एकता की भावना शक्तिशाली एवं विकसित राष्ट्र का निर्माण करती है.
जब भी हमारे देश पर बाहरी शत्रुओं का आक्रमण होता है तब देश की एकता मजबूत, संगठित हो जाती है. लेकिन इसके बाद आंतरिक विभेद, प्रांतवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद आदि कारणों से देश की एकता को हानि पहुंचाने वाले तत्व सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए लोकतंत्र की स्थिरता, स्वतंत्रता और सर्वतोमुखी विकास के लिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है.
हमारे देश में प्राचीन काल से विभिन्नता में एकता सांस्कृतिक विरासत के रूप में विद्यमान रही है. हम चाहे किसी भी मजहब, भाषा, जाति या समुदाय के हों परंतु दूसरों की संस्कृति का सम्मान करना चाहिए. हिंदुस्तान में अनेक प्रकार की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विविधताएं होने के बावजूद अनेकता में एकता इसकी विशेषता है.
प्राचीन काल में भारतीय समाज विभिन्न वर्ण व्यवस्थाओं में बंटा हुआ था, जो कर्म पर आधारित थी. पिछले कई दशकों से वर्ण व्यवस्था विभिन्न कारणों से जातिवाद के रूप में विकसित हुई है. इससे हमारे देश की एकता और अखंडता की समस्या उत्पन्न हुई है. इसलिए इस प्रकार की कुप्रथाओं को छोड़कर मानवता को अपनाते हुए राष्ट्र की एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करना चाहिए. हमें धार्मिक, जातीय, सामुदायिक भेदभाव से ऊपर उठते हुए इंसानियत को सवरेपरि लाना होगा, जिससे हमारा देश दुनिया में अग्रणी भूमिका निभा सके.