Maharashtra Politics News: बीते बुधवार को दोनों शिवसेनाओं की जब वर्षगांठ मनाई जा रही थी, तब यह साफ दिखाई दे रहा था कि शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट का जोश ‘हाई’ है. वह केवल पार्टी प्रवक्ता सांसद संजय राऊत के सुबह-सुबह होने वाले संवाददाता सम्मेलन तक ही सीमित नहीं है उसके पास केवल टूटी हुई शिवसेना शिंदे गुट पर हमले का साहस ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मंच से बोलने की ताकत है. वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की महाराष्ट्र इकाई से लेकर बिना शर्त समर्थन देने वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) पर भी बिना नाम लिए कटाक्ष कर सकती है. वहीं दूसरी ओर वर्षगांठ मनाते समय शिवसेना शिंदे गुट अपनी पराजय को झुठलाने और अपने खिलाफ बनाए गए झूठे विमर्शों से आगे बढ़कर कुछ कह नहीं पा रहा था.
उसके पास कुछ आंकड़ों का आधार है, लेकिन वास्तविकता अभी जीत और हार की है. इस परिदृश्य में भाजपा हर तरफ से फंस कर अपने लिए कोई सुरक्षित रास्ता ढूंढती नहीं दिखाई दे रही है. लोकसभा चुनाव परिणामों में तीस सीटें जीतने के बाद महाविकास आघाड़ी के हौसले सातवें आसमान पर हैं.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने शानदार विजय के बाद सीधे विधानसभा चुनाव जीतने का लक्ष्य सभी के सामने रख दिया है. अभी सीटों का बंटवारा भी नहीं हुआ है और कांग्रेस अधिक स्थानों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है, फिर भी तीनों दल मिल कर पत्रकारों से मिल रहे हैं. कांग्रेस को अपनी जगह राष्ट्रीय स्तर से सक्रिय होने के निर्देश मिल रहे हैं.
वह आंदोलनों का सहारा लेकर आम आदमी के बीच अपनी खोई जगह पाने की कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर राकांपा का शरद पवार गुट अपने से टूटे राकांपा अजित पवार गुट का उपहास बनाने में जुटा है और बार-बार निराशा परोसने के साथ अनेक विधायकों की ‘घर वापसी’ का शिगूफा छोड़ रहा है. शिवसेना का ठाकरे गुट तो महाराष्ट्र में आम चुनाव का खुद को ‘हीरो’ मान चुका है.
उसे इस बात की परवाह नहीं है कि उसने सीटें कितनी जीतीं, उसे इसका अंदाज भी नहीं लगाना है कि उसका निशाना सही कहां-कहां लगा. वह केवल इसी बात से खुश है कि भाजपा तथा शिवसेना शिंदे गुट की चुनाव में पराजय हुई. जिसकी वजह पार्टी में फूट डालना रही. चुनाव बाद भी शिवसेना के ठाकरे गुट का आधा प्रलाप ‘गद्दार’ शब्द के नाम पर होता है, जिसके लिए उनके पास अब जीत का आधार है.
चुनाव में कथित तौर पर मिली सहानुभूति है. हालांकि दावों में यह भी कहा जा रहा है कि शिवसेना के ठाकरे गुट की सभी चालों का सीधा लाभ कांग्रेस और राकांपा शरद पवार गुट उठा ले गए. दूसरी तरफ भाजपा नीत महागठबंधन पूरी तौर पर ‘बैकफुट’ पर है. लोकसभा चुनाव में भाजपा के अनेक बड़े नेताओं की पराजय के बाद राज्य नेतृत्व पर सवाल उठने की संभावना को भांपकर उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने सरकार से त्यागपत्र देने का प्रस्ताव रखा. किंतु उसे राष्ट्रीय नेतृत्व ने स्वीकार नहीं किया.
मगर जब अपने सभी निर्णयों पर फड़नवीस खरे नहीं उतरे तो केवल ‘वोट शेयर’ समझा कर पराजय नजरअंदाज नहीं की जा सकती है. माना जा सकता है कि अनेक स्थानों पर हार-जीत का फैसला कम मतों से हुआ, किंतु भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में कुल मत घटने से अंतर और भी कम हो सकता है. उस स्थिति में हार-जीत को केवल प्राप्त मतों के आधार पर तर्कसंगत नहीं बनाया जा सकता है.
आने वाले दिनों में राज्य की अनेक नगर पालिकाओं और महानगर पालिकाओं में भी चुनाव होंगे, जहां मतों का अंतर और कम होगा. उधर, शिवसेना का शिंदे गुट भाजपा के ‘चार सौ पार’ के नारे को ही गलत मान बैठा है. वह उसे पराजय का एक कारण मान रहा है. महागठबंधन का एक तबका यह भी प्रचार कर रहा है कि मुस्लिम मतों का महाविकास आघाड़ी की तरफ एकतरफा झुकाव भी पराजय का एक कारण है. किंतु वह अगले चुनाव में नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. लोकसभा की एक सीट जीत कर राकांपा का अजित पवार गुट चुनाव के नतीजों के बाद अभी तक खुल कर सामने नहीं आया है.
हालांकि उसने इतना जरूर कहा कि पराजय के लिए उसके नेता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. यद्यपि उसके कुछ नेता विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे दिख रहे हैं. उन्हें सीट बंटवारे की जल्दबाजी है. दरअसल 45 सीटें जीतने का ख्वाब लेकर चले महागठबंधन के सफर के 17 स्थान जीत कर ढेर होने से हताशा-निराशा हर तरफ है, जिसे कोई दबे शब्दों में व्यक्त कर रहा है तो कोई अप्रत्यक्ष अपनी भड़ास निकाल रहा है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने सारी बातों को अनदेखा कर राज्य इकाई को विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने के लिए कहा है.
लेकिन जिन चिंताओं और समस्याओं के चलते उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा, उनका समाधान अभी मिला नहीं है. अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) और मराठा दोनों ही समाज अपने-अपने आरक्षण के लिए आंदोलनरत हैं. बेरोजगारी की चिंता अब विद्यार्थियों की परीक्षाओं में हो रही अनियमितता से जुड़ गई है.
महंगाई के लिए कांग्रेस सहित विपक्ष शासित राज्य तक कुछ नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए इस बात की कोई गुंजाइश नहीं है कि राज्य में भाजपा नीत सरकार भी कोई तत्काल हल निकाल पाएगी. इस स्थिति में महाविकास आघाड़ी के पास आक्रामक होने के अवसर बढ़ जाएंगे, जो हाल के दिनों में दिख रहा है. बंटी हुई पार्टियों को लेकर मतदाता संभ्रम में पहले से ही है.
जिससे आगे विधानसभा चुनाव में समीकरण अधिक जटिल होंगे. इसमें जो मतदाता को अपनी बात समझाने में सफल हुआ, वही विजेता बन जाएगा. फिलहाल महाविकास आघाड़ी की मस्ती के आगे महागठबंधन की सुस्ती ही है. आने वाले दिनों में विपक्ष के हौसलों की परीक्षा सत्ताधारियों की चुस्ती से होगी, जो लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद नेतृत्व के लिए बड़ी और कड़ी चुनौती होगी.