महाराष्ट्र महागठबंधन सरकारः चुनाव से चुनाव तक ही बीता पहला साल

By Amitabh Shrivastava | Updated: December 6, 2025 13:50 IST2025-12-06T13:49:37+5:302025-12-06T13:50:44+5:30

Maharashtra Mahagathbandhan Government: मुंबई-पुणे की मेट्रो, नागपुर-गोवा शक्तिपीठ मार्ग, पुणे-मुंबई नया एक्सप्रेस-वे तक की चर्चाओं के बीच न तो भीतरी पुणे-छत्रपति संभाजीनगर रास्ता अच्छा बन पाया है.

Maharashtra Mahagathbandhan Government first year spent from election to election blog Amitabh Srivastava | महाराष्ट्र महागठबंधन सरकारः चुनाव से चुनाव तक ही बीता पहला साल

Maharashtra Mahagathbandhan Government

HighlightsMaharashtra Mahagathbandhan Government: भाषणों से लेकर फोन पर भी भरोसा दिलाने में कोई कसर नहीं रखी गई.Maharashtra Mahagathbandhan Government: बहुमत का दम और कमजोर विपक्ष का सहारा है.Maharashtra Mahagathbandhan Government: सामान्य जन की समस्याएं अपनी जगह बनी रहीं.

Maharashtra Mahagathbandhan Government: विधानसभा चुनाव में 232 सीटों के दम पर बनी महाराष्ट्र की महागठबंधन सरकार का पहला साल चुनावी खींचतान को छोड़ दें तो हंसी-खुशी से बीत गया. असंगठित विपक्ष को सत्ता पक्ष की खुशियों को देख जलन-कुढ़न होती रही. वह किसी भी मोर्चे पर राज्य सरकार को घुटने पर बैठाने में असफल रहा. राज्य सरकार ने धर्म, पंथ, समाज और विकास आधारित राजनीति से हर तरह के पैंतरे खेले, जिनसे पूरे साल उसका कारोबार चलता रहा. आश्वासनों की दृष्टि से देखा जाए तो भाषणों से लेकर फोन पर भी भरोसा दिलाने में कोई कसर नहीं रखी गई.

हालांकि सामान्य जन की समस्याएं अपनी जगह बनी रहीं. अतिवृष्टि से प्रभावित सभी किसानों के बैंक खातों में राहत राशि नहीं पहुंची, जिसे दिवाली पर जमा होना था. लाड़ली बहनें चुनाव बाद से अगली किश्त का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं. किंतु केवाईसी के चलते उनकी संख्या घट रही है तथा पात्र को राशि नहीं मिल रही है.

विकास के दावों में नई मुंबई के हवाई अड्डे से लेकर मुंबई-पुणे की मेट्रो, नागपुर-गोवा शक्तिपीठ मार्ग, पुणे-मुंबई नया एक्सप्रेस-वे तक की चर्चाओं के बीच न तो भीतरी पुणे-छत्रपति संभाजीनगर रास्ता अच्छा बन पाया है और न ही पुणे-मुंबई या कोल्हापुर की स्थिति अच्छी है. फिर भी सरकार चलाने वाले खुश हैं. बहुमत का दम और कमजोर विपक्ष का सहारा है.

स्थानीय निकाय के चुनावों में भी स्थितियां एकतरफा होने से सरकार के भविष्य पर दूर-दूर तक सवाल खड़ा नहीं हो रहा है. यही कुछ कारण है कि मतदाता की चिंताएं अपनी जगह बरकरार हैं, जबकि सरकार के सरोकार कुछ और हैं. वर्ष 2014 में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपनी पार्टी और राज्य की आवश्यकताओं के एजेंडे पर पांच साल काम किया.

उन्हें वर्ष 2019 में सरकार बनाने की आशा और दिल में विश्वास था. जिसकी स्थितियां भी बनीं, लेकिन राजनीति ने साथ नहीं दिया और विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा. मनोकामना पूरी न होने और कुछ समय राह से भटकने के बाद उन्हें वर्ष 2022 में दोबारा सरकार बनाने का अवसर मिला. इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलाकमान ने उनके मन की बात नहीं सुनी.

जिससे उन्हें उपमुख्यमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा. इस स्थिति में भी उन्होंने अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास किया. एक सीमा तक सफलता मिली, किंतु अपेक्षा अनुरूप काम करने का अवसर नहीं मिला. परिणामस्वरूप पूरी ताकत के साथ विधानसभा चुनाव जीतकर उन्होंने वापसी की और अपने एजेंडे पर काम आरंभ किया.

केंद्र और राज्य दोनों की योजनाओं को आगे बढ़ाने के प्रयास किए. इनमें बुलेट ट्रेन, नई मुंबई का हवाई अड्डा, मुंबई मेट्रो, नागपुर-गोवा शक्तिपीठ मार्ग के साथ निवेश के लिए उद्योगों को आमंत्रित करने की प्रक्रिया शामिल थी. नई पारी में उन्होंने मुंबई पर ध्यान अधिक केंद्रित कर प्राथमिकता अनुसार पुणे, नागपुर और बाकी शहर-क्षेत्र क्रम में रखे.

इसी बीच, राज्य में अनेक बार बेमौसमी बरसात और अतिवृष्टि ने किसानों का नुकसान किया. जिस पर सरकार ने जमीनी मूल्यांकन कर किसानों को न्याय देने का आश्वासन दिया. मगर कागजी घोड़े कहां से कहां निकल गए, किसी को पता नहीं चला. आशा से आसमान को देखने वाला किसान जमीन पर बैठ सरकार से मिलने वाली राशि का इंतजार करता रहा.

दावा किया जा रहा है कि कुछ किसानों तक सरकारी सहायता पहुंची है, लेकिन संतोष के सुर सुनाई नहीं दे रहे हैं. यही कुछ चुनाव जीतने की ‘मास्टर स्ट्रोक’ कही जाने वाली ‘लाड़ली बहन’ योजना का हाल है. उसमें भी खातों में रकम पहुंचने के समय का अनुमान नहीं लगाया जा सका है. दूसरी ओर उस योजना में अनेक गड़बड़ियां सामने आई हैं.

आर्थिक मोर्चे पर ही अनेक ठेकेदारों के बिल बकाया बताए जा रहे हैं, जिससे सरकारी कामों की गति नहीं बढ़ रही है. अनेक सरकारी योजनाओं के लिए रकम निर्धारित कर दी गई है, लेकिन सरकारी तिजोरी उन्हें पैसा नहीं दे पा रही है. राज्य के अनेक भागों में सड़क, पानी, ड्रेनेज और मेडिकल कॉलेजों के काम निधि के अभाव में अटक-अटक कर चल रहे हैं, जिसका प्रभाव जमीनी स्तर पर दिख जाता है और उनका आकलन हो जाता है. महागठबंधन के नेता अपने-अपने तरीके से काम कर प्रसन्न हैं, जिसकी उन्हें स्वतंत्रता मिली है.

क्षेत्र अनुसार जरूरतों को पूरा करना सरकार की सम्मिलित जिम्मेदारी है. दलों के हिसाब से सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य आदि के विभाग हो सकते हैं. उन्हें चलाने के लिए अलग पार्टी के नेता हो सकते हैं. मगर उन्हें जन अपेक्षा के पैमाने पर खरा उतरना चाहिए. परिसर का विभाजन कर उपलब्धियां रेखांकित नहीं की जा सकती हैं और न ही उसे राज्य सरकार की सफलता में गिना जा सकता है.

पालक मंत्रियों को निर्वाचन क्षेत्र से हटकर आवंटित क्षेत्र में भी परिणाम दिखाना चाहिए. वे मजबूरी की नियुक्ति में बैठक करते नहीं देखे जाने चाहिए. यदि राज्य की सड़कों की चिंता संसद में होने लगे, पानी और पर्यटन के मुद्दों को नई दिल्ली में जाकर बताना पड़े तो राज्य सरकार के कार्यों की समीक्षा होना स्वाभाविक है.

राज्य में सबसे अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद उन्हें जोड़ने के रास्ते खस्ताहाल में होने की जिम्मेदारी सरकार को लेना चाहिए. केवल खबरों में रहने वाले विषयों पर चर्चा कर वाहवाही लूटने के प्रयास कम होने चाहिए. चुनाव देखकर काम करने की परंपरा रोकनी चाहिए. जनसमस्याएं चुनाव देखकर नहीं उभरती हैं. उन पर आवाज उठाकर नेता जरूर बनते हैं.

यदि उनका समाधान नहीं होता है तो जनसामान्य के मन में खिन्नता आना गलत नहीं है. चुनाव से बनी सरकार नए चुनावों के अवसरों के लिए ही सीमित नहीं होनी चाहिए. असली चुनौतियां तो चुनावों के आगे मिलती हैं, जिनसे न मुंह चुराया, न हर चुनाव में याद दिलाया और न ही पांच साल आम जन को मलाल में जीने दिया जा सकता है.

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