मध्य प्रदेश में अभी तो शिव-राज कायम रहेगा, लेकिन...
By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 11, 2020 04:44 PM2020-11-11T16:44:59+5:302020-11-11T16:46:27+5:30
सियासी रस्साकशी छोड़कर सरकार को मजबूत करने और जनहित के कामकाज पर ध्यान दिया जाता तो, न तो बीजेपी जोड़तोड़ में कामयाब होती और न ही कांग्रेस के हाथ आई सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकलती.
एमपी उप-चुनाव में हालांकि बीजेपी को शिव-राज बचाने के लिए केवल 9 सीटों की जरूरत थी, इसलिए यह तो माना जा रहा था कि शिव-राज कायम रहेगा, लेकिन बड़ा सवाल कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर है.
यह बात अलग है कि बीजेपी ने सियासी जोड़तोड़ करके सत्ता हांसिल की थी, परन्तु जनता ने यह भी देखा था कि कांग्रेस की सरकार के दौरान कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कैसी सियासी रस्साकशी चल रही थी. यदि उस वक्त आपसी सियासी रस्साकशी छोड़कर सरकार को मजबूत करने और जनहित के कामकाज पर ध्यान दिया जाता तो, न तो बीजेपी जोड़तोड़ में कामयाब होती और न ही कांग्रेस के हाथ आई सत्ता कांग्रेस के हाथ से निकलती.
हालांकि, उप-चुनाव ने बीजेपी की शिवराज सिंह चौहान की सरकार को बरकरार रखने के साथ ही और ज्यादा मजबूती तो दे दी है, लेकिन बदलते सियासी समीकरण के मद्देनजर बीजेपी संगठन के स्तर पर आनेवाले समय में कई राजनीतिक परेशानियां सामने आएंगी.
खासकर, पुराने भाजपाइयों और नए भाजपाइयों के बीच तालमेल करना आसान नहीं है. बड़ा सवाल शिवराज सिंह चौहान की सियासी हैसियत को लेकर भी है, क्योंकि भविष्य में जहां शिवराज के सामने आगे बढ़ने के लिए केवल प्रधानमंत्री पद है, तो सिंधिया कब तक सीएम की कुर्सी ने नजरें हटा कर रखेंगे.
कांग्रेस में भी तो उनकी सीएम बनने की योग्यता के कारण ही वे कमलनाथ के सियासी निशाने पर रहे थे. शिवराज सिंह की सरकार चलाने की योग्यता तो पहले से ही साबित हो चुकी है, लेकिन मोदी-शाह का सिंधिया को संरक्षण उनके लिए राजनीतिक उलझने बढ़ाने वाला साबित हो सकता है?