Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में पैसा, जहरीले बोल, नशीले पदार्थ रहे हावी...
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 4, 2024 06:39 IST2024-06-04T06:38:49+5:302024-06-04T06:39:52+5:30
Lok Sabha Elections 2024: भारत में कुल चुनावी खर्च को देखते, जहां विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों के साथ मतदाताओं को लुभाना जीत सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी माध्यम बन गया है.

file photo
Lok Sabha Elections 2024: कार्ल मार्क्स ने 1843 में लिखा था कि धर्म लोगों के लिए अफीम है. वह एक ऐसा समय था जब अफीम को उसके औषधीय उद्देश्यों के लिए अत्यधिक महत्व दिया जाता था. आज वे अफीम और उसके आधुनिक रूपों के बारे में क्या कहते कि जिन्हें अत्याचार पीड़ितों को नियंत्रण में रखने के लिए चुनावी उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है? इसके लिए, उन्हें भारत आना पड़ता. वे भारत में कुल चुनावी खर्च को देखते, जहां विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों के साथ मतदाताओं को लुभाना जीत सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी माध्यम बन गया है.
एक पखवाड़े पहले, चुनाव आयोग ने दावा किया था कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने मार्च से आम चुनाव के पांचवें चरण के बीच नगदी, आभूषण, ड्रग्स और शराब के रूप में 9,000 करोड़ रुपए से अधिक जब्त किए थे. लक्षित शराबियों तक पहुंचने से पहले 53 करोड़ लीटर से अधिक शराब पकड़ी गई. एजेंसियों ने कालेधन के रूप में प्रतिदिन औसतन 100 करोड़ रुपए बरामद किए.
जिनके बारे में माना जा रहा था कि नोटबंदी के कारण खत्म हो गए थे. सातवें चरण के अंत तक, अनुमानत: जब्त की गई चीजों की कीमत 10,000 करोड़ रुपए है, जबकि 2019 के दौरान यह सिर्फ 3,500 करोड़ रुपए और 2014 के दौरान बमुश्किल 1,000 करोड़ रु. थी. लोकतंत्र अगर सबसे बड़ा उत्सव है तो राजनीतिक दल इस सबसे बड़े उत्सव को मनाते हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार सभी राज्यों से बरामद नगदी सिर्फ 850 करोड़ रुपए है. जबकि जब्त किए गए ड्रग्स की कीमत 4,000 करोड़ रुपए है. कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने 800 करोड़ रुपए से अधिक की शराब जब्त की. अगर जांच संस्थाओं के आधिकारिक मानदंड पर विश्वास किया जाए तो 80,000 करोड़ रुपए के नगदी और अन्य सामान एजेंसियों की नजरों से बच गए.
आंकड़े कई कहानियां बयां करते हैं. चुनाव आयोग के लिए जो महज आंकड़े हैं, वे राज्यों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान के बारे में कई कहानियां बताते हैं. यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं.
* चुनाव आयोग द्वारा जब्त 850 करोड़ रुपए की कुल नगदी में से चार दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का 377 करोड़ रुपए का योगदान था.
114.56 करोड़ रुपए की जब्ती के साथ तेलंगाना सबसे ऊपर है. इन राज्यों में चुनाव के दौरान विभिन्न एजेंसियों द्वारा जब्त किए गए कुल 1,260 करोड़ रुपए में से सोने सहित 441 करोड़ रुपए के आभूषणों का योगदान था. लेकिन राजनीति के प्रचारक भावी मतदाताओं को नशे में धुत करने के लिए एक कदम आगे निकल गए. उन्हें इन राज्यों से 337 करोड़ रुपए की शराब के साथ पकड़ा गया. तमिलनाडु के राजनीतिक दलालों को 330 करोड़ रुपए के नशीले पदार्थों की तस्करी करते हुए हिरासत में लिया गया.
* गुजरात और बिहार आधिकारिक तौर पर शराबबंदी वाले राज्य हैं, जहां शराब और अन्य नशीले पदार्थों की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित है. गुजरात में एजेंसियों ने सिर्फ 8.61 करोड़ रुपए नगद जब्त किए, जबकि जब्त की गई शराब की कीमत करीब 30 करोड़ रुपए थी. और जब्त किए गए ड्रग्स का बाजार मूल्य करीब 1200 करोड़ रुपए था.
गुजरात उन शीर्ष पांच राज्यों में से एक है, जहां से 128.50 करोड़ के आभूषण बरामद किए गए. नगदी के मामले में बिहार गरीब निकला, क्योंकि चुनाव आयोग के अधिकारियों ने सिर्फ 14 करोड़ बरामद किए. लेकिन इसके शराब माफिया 48 करोड़ रु. की खेप के साथ पकड़े गए.
पंजाब से भारी मात्रा में ड्रग्स और शराब की बरामदगी ने इस धारणा को भी बल दिया कि राज्य एक ताकतवर ड्रग माफिया के चंगुल में है. चुनाव आयोग और अन्य एजेंसियों ने ड्रग्स जब्त की, जिनका बाजार मूल्य 650 करोड़ रु. से अधिक है. लेकिन कृषि-समृद्ध पंजाब के राजनीतिक बाजार से उन्हें सिर्फ 15.50 करोड़ नगदी मिली.
* महाराष्ट्र और दिल्ली ने राजनीतिक और वित्तीय रूप से मानक तय किए. चुनाव आयोग और अन्य प्राधिकारी इसे अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि उन्होंने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के तुरंत बाद इन दोनों राज्यों से धन और सामग्री की आवाजाही पर नजर रखी थी.
तब से, उन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपए के आभूषण जब्त किए हैं. आभूषणों की 95 करोड़ रुपए की बरामदगी दिल्ली से की गई, उसके बाद महाराष्ट्र से 188 करोड़ रुपए की बरामदगी हुई. दिल्ली के बिचौलियों से 90.79 करोड़ रुपए नगद और महाराष्ट्र से 75 करोड़ रुपए से अधिक की राशि बरामद की गई. दिल्ली से बरामद प्रतिबंधित ड्रग्स की कीमत 350 करोड़ रुपए से ज्यादा थी.
* प. बंगाल, असम, ओडिशा और झारखंड में कहानी थोड़ी अलग थी. चुनाव से पहले नेताओं से भारी मात्रा में नगदी बरामद की गई, लेकिन चुनाव आयोग चुनाव के दौरान अवैध रूप से छिपाई गई नगदी के ढेर का पता नहीं लगा सका. उसे प. बंगाल में सिर्फ 31 करोड़ रु., ओडिशा से 17 करोड़ रु., झारखंड से 45.53 करोड़ और असम से सिर्फ 6.75 करोड़ रुपए मिले. हालांकि, पश्चिम बंगाल में 90 करोड़ रुपए की शराब, ओडिशा से 35 करोड़ रुपए और झारखंड से 56 करोड़ रुपए की ड्रग्स जब्त की गई. पश्चिम बंगाल उन शीर्ष 10 राज्यों में भी शामिल था, जहां से 60 करोड़ रुपए के आभूषण जब्त किए गए.
* विडंबना यह है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे अन्य सभी उत्तर भारतीय राज्य इसलिए संत प्रतीत होते हैं क्योंकि उनके पास जब्त की गई कुल बेहिसाबी नगदी और आभूषणों का 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा बरामद हुआ है. हिमाचल में उन्हें 50 लाख रुपए मिले, जबकि पूर्वोत्तर के अधिकांश छोटे राज्यों में यह एक करोड़ से भी कम था.
यहां तक कि उत्तर प्रदेश में, जो 80 लोकसभा सदस्य भेजता है, जांच एजेंसियां केवल 35 करोड़ रुपए की नगदी ही पकड़ पाईं. अब यह मतदाताओं पर निर्भर है कि वे उनका वोट चाहने वालों की तुलना में अधिक परिपक्वता दिखाएं. लोकतांत्रिक फैसले अब रिश्वत से ज्यादा प्रभावित होते हैं. और चुनावी मौसम में कालेधन का चलन फिर से शुरू हो गया है.