Lok Sabha Elections 2024: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आठ सप्ताह की वोट यात्रा पर रवाना हो रहे हैं, तब भाजपा को मुख्यमंत्रियों से अपेक्षा है...

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 6, 2024 11:28 AM2024-03-06T11:28:00+5:302024-03-06T11:29:28+5:30

Lok Sabha Elections 2024: भाजपा के छह मुख्यमंत्री- गुजरात, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम के- पहली बार लोकसभा चुनाव में अपने राज्य का नेतृत्व करेंगे.

Lok Sabha Elections 2024 BJP CMs big responsibility 7  state 158 seats blog Prabhu Chawla pm Narendra Modi leaves for 8 week vote tour BJP expects its chief ministers extend Prime Minister's aura | Lok Sabha Elections 2024: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आठ सप्ताह की वोट यात्रा पर रवाना हो रहे हैं, तब भाजपा को मुख्यमंत्रियों से अपेक्षा है...

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Highlightsमहाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी एकनाथ शिंदे की अगुवाई में चुनावी लड़ाई होगी.सात राज्यों में 158 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा और उसकी सहयोगी शिवसेना ने 2019 में 142 सीटें जीती थीं. प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के बजाय अपने व्यक्तित्व से गतिशील होकर तीसरे कार्यकाल के लिए प्रचार में हैं.

Lok Sabha Elections 2024: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आठ सप्ताह की वोट यात्रा पर रवाना हो रहे हैं, तब भाजपा को अपने मुख्यमंत्रियों से अपेक्षा है कि वे प्रधानमंत्री की आभा का विस्तार करेंगे. पार्टी के लिए हर राज्य में मुख्यमंत्री दूसरे इंजन हैं, तो उनकी क्षमता का आकलन अंततः सीटों की संख्या से होगा. भाजपा के छह मुख्यमंत्री- गुजरात, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम के- पहली बार लोकसभा चुनाव में अपने राज्य का नेतृत्व करेंगे. महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी एकनाथ शिंदे की अगुवाई में चुनावी लड़ाई होगी. इन सात राज्यों में 158 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा और उसकी सहयोगी शिवसेना ने 2019 में 142 सीटें जीती थीं. निस्संदेह, प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के बजाय अपने व्यक्तित्व से गतिशील होकर तीसरे कार्यकाल के लिए प्रचार में हैं, फिर भी उनकी नजर क्षेत्रीय नेताओं और मुख्यमंत्रियों पर है, जिन्हें उन्होंने सीधे चुना है. वे अपने रोड शो और बड़ी सभाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और वोटों को लामबंद करने का जिम्मा राज्य इकाइयों को दिया गया है.

मुख्यमंत्रियों का आकलन तीन आधारों पर होगा- प्रदर्शन, जुड़ाव और स्वीकार्यता. उनमें से अधिकतर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी छात्र इकाई विद्यार्थी परिषद से संबद्ध रहे हैं तथा उनसे अपेक्षा है कि केंद्र और राज्यों में एक दशक के शासन के बाद वे फिर जनादेश हासिल करें. महाराष्ट्र, जहां 48 सीटें हैं, भाजपा नेताओं के ध्यान में सबसे ऊपर है.

साल 2019 में वहां भाजपा को 23 और सहयोगी शिवसेना को 18 सीटें पहली बार मुख्यमंत्री बने देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व में मिली थीं, जो अभी उपमुख्यमंत्री हैं. हालांकि वह प्रधानमंत्री के पक्ष में जनादेश था, पर स्थानीय नेतृत्व ने एक टीम के रूप में मिलकर चुनाव लड़ा था. अब राज्य की अगुवाई शिवसेना के विद्रोही नेता एकनाथ शिंदे के हाथ में है.

साठ वर्षीय शिंदे काडर प्रबंधन और जमीनी कार्यकर्ताओं के मामले में थोड़े कमजोर माने जाते हैं. हालांकि भाजपा अपने प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त है, पर शिंदे की शिवसेना की सीटों में कुछ भी कमी आने से दूसरे राज्यों से भरपाई के लिए भाजपा पर दबाव बढ़ जाएगा. मध्य प्रदेश भी 29 सीटों के साथ प्रधानमंत्री के भाजपा द्वारा 370 सीटें जीतने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अहम है.

पिछली बार राज्य में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भाजपा ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पिछले साल दिसंबर में राज्य विधानसभा चुनाव में जीत के बाद मोदी ने अनुभवी शिवराज चौहान को हटाकर अपेक्षाकृत कम जाने जाने वाले मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने का सोचा-समझा जोखिम उठाया. साफ छवि के सौम्य ओबीसी नेता को इसलिए नहीं चुना गया कि वे यादव हैं.

बल्कि इसलिए चुना गया कि वे किसी गुट से जुड़े हुए नहीं थे. वे बिना किसी शोर-शराबे के दृढ़ संकल्प के साथ हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटे रहते हैं. भाजपा के बड़े नेताओं के किनारे होने तथा कमजोर कांग्रेस को देखते हुए यादव को कोई खतरा नहीं है और वे मोदी के सम्मोहक आकर्षण को वोटों में बदलने के लिए अच्छी स्थिति में हैं.

गुजरात एक ठोस केसरिया राज्य है, जहां 26 सीटें हैं. वहां भाजपा लगभग तीन दशक से सत्ता में है. जब विजय रुपानी मुख्यमंत्री थे, भाजपा को सभी सीटों पर जीत मिली थी. भूपिंदर पटेल 2021 से मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने बिना किसी विवाद के राज्य को संचालित किया है. गुजरात और मोदी एक दूसरे के लिए बने हैं.

पटेल उस राज्य से एक भी सीट हारने का जोखिम नहीं उठा सकते, जिसने भारत को सबसे शक्तिशाली एवं लोकप्रिय प्रधानमंत्री दिया है. राजस्थान संभवतः भाजपा के लिए सबसे कमजोर राज्य है. साल 2019 में भाजपा ने अशोक गहलोत जैसे कद्दावर कांग्रेसी मुख्यमंत्री के होने के बावजूद 25 में से 24 सीटें जीती थींं. अभी पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा मुख्यमंत्री हैं.

विद्यार्थी परिषद के पूर्व कार्यकर्ता शर्मा ने अभी तक कोई प्रशासनिक या राजनीतिक कौशल नहीं दिखाया है. हालांकि दो अनुभवी और अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय उपमुख्यमंत्रियों के होने के बावजूद शर्मा के सामने मजबूत कांग्रेस की बड़ी चुनौती है. उन्होंने न तो किसी चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया है और न ही पार्टी में किसी अहम पद पर रहे हैं.

भले मोदी अपने करिश्मे से मतदाताओं को अपने पाले में ला दें, पर शर्मा को मुख्य इंजन की गति बढ़ानी होगी. असम भाजपा के लिए पूर्वोत्तर का द्वार है. पिछले चुनाव में पार्टी ने 14 में से नौ सीटें जीती थीं. इस बार पार्टी एक पूर्व कांग्रेसी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है. आक्रामक हिमंता बिस्वा सरमा 2021 से मुख्यमंत्री हैं और भाजपा के प्रभावी संकटमोचक हैं.

संख्या वहां भले कम हो, पर विपक्षी दलों से निपटने के लिए भाजपा उन पर ही निर्भर है. अपने कार्यों एवं शब्दों से वे हिंदुत्व पार्टी की कल्पना से कहीं अधिक सिद्ध हुए हैं. शर्मा ने ऐसे कई विधायी उपाय किए हैं, जिनसे अल्पसंख्यक समुदाय के सभी विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया है. राज्य से अवैध अप्रवासियों को निकालने तथा पूरे पूर्वोत्तर का भगवाकरण करने में वे आगे रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में 11 सीटें हैं और वहां पहली बार मुख्यमंत्री बने विष्णु देव साय नेतृत्व करेंगे, जो एक मिलनसार टीम लीडर हैं. वे राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री हैं. साय एक बहुत अनुभवी नेता हैं और केंद्र एवं राज्य में मंत्री रहने के अलावा पार्टी प्रमुख भी रहे हैं. सत्ता संभालने के साथ ही उन्होंने कई कल्याणकारी तथा विकास योजनाओं को लागू करना शुरू कर दिया.

साथ ही, वे राज्य में हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने में भी जुटे हुए हैं. उनसे अपेक्षा है कि वे नौ सीटों की जगह सभी 11 सीटों पर पार्टी को विजयी बनाएंगे. उत्तराखंड में केवल पांच लोकसभा सीटें हैं, पर यह राज्य भी भाजपा के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है. यहां भी नेतृत्व पहली बार मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी के हाथ में है. विनम्र धामी पहले संघ के कार्यकर्ता रह चुके हैं.

उनकी छवि मन लगाकर काम करने वाले नेता की है. विधानसभा में हार के बावजूद उन्हें प्रधानमंत्री ने चुना था. वे देश में पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए विधायी प्रयास किए हैं. प्रधानमंत्री को तीसरी बार चुनाव जीतने के लिए सहयोगियों की आवश्यकता नहीं है. मोदी नेतृत्व हैं, मुख्य माध्यम हैं, संदेश हैं और प्रचारक हैं. मुख्यमंत्री बस उनके संदेशवाहक भर हैं.

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