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हरीश गुप्ता का ब्लॉग: लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की चिंता

By हरीश गुप्ता | Updated: January 12, 2023 14:02 IST

भाजपा जहां लोकसभा चुनावों के पूर्व अपने कल-पुर्जों को दुरुस्त करने में लगी है वहीं कांग्रेस भी कई राज्यों में अपने वाटरलू का सामना कर रही है। भाजपा का फोकस इस बात पर है कि अपने हिंदू वोट बैंक को बरकरार रखते हुए मुस्लिम वोट कैसे हासिल किए जाए।

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भाजपा नेताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से किए जाने वाले प्रचार के बावजूद आंतरिक सर्वेक्षणों के निष्कर्षों ने नेतृत्व को थोड़ा चिंतित कर दिया है। पार्टी कार्यालय में हाल ही में आयोजित एक विचार-मंथन सत्र में भाजपा ने कमजोर लोकसभा सीटों की संख्या 144 से बढ़कर 170 से अधिक कर दी। इस लंबी कवायद के बाद ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और अन्य भाजपा नेताओं ने राज्य-दर-राज्य दौरा करना शुरू किया जहां पार्टी को अपने शस्त्रागार में खामियां मिलीं। 

पार्टी के लिए कमजोर सीटों की संख्या बढ़कर 170 से अधिक इसलिए हो गई है क्योंकि विपक्षी पार्टियां कम से कम 350 लोकसभा सीटों पर भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी में हैं। प्रधानमंत्री मोदी के बढ़ते करिश्मे, भाजपा की संगठित वॉर मशीनरी, पैसे के बेशुमार इस्तेमाल और आक्षेपों ने क्षेत्रीय दलों को चिंतित कर दिया है। ये दल अधिकांश राज्यों में भाजपा के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने के लिए सहमति बनाने में पूरा जोर लगा रहे हैं। 

भाजपा आलाकमान को लोकसभा में अपनी ताकत बरकरार रखने के लिए दक्षिणी राज्यों के अलावा महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान सहित कई राज्यों में अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है। प्रधानमंत्री ने पहले ही मंत्रालयों और भाजपा शासित राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा पूर्णत: वित्तपोषित योजनाओं के लाभार्थियों की विस्तृत सूची तैयार करने का निर्देश दिया है ताकि भाजपा कार्यकर्ता मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले घर-घर जा सकें।

शिवराज सिंह चौहान को राहत !

रिपोर्टों के विपरीत, ऐसे संकेत हैं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राहत मिल सकती है। पार्टी आलाकमान सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए नया चेहरा लाने की प्रक्रिया में था क्योंकि चौहान मुख्यमंत्री के रूप में अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। यहां तक कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को इस राज्य में कांग्रेस के हाथों पराजय झेलनी पड़ी थी। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा 22 विधायकों के साथ भाजपा में चले जाने के कारण वह सरकार बनाने में कामयाब हो गई। 

हाईकमान नया चेहरा लाने की संभावनाओं पर विचार करने लगा था और खोज भी शुरू कर दी थी। लेकिन इस खोज को ठंडे बस्ते में डाल देना पड़ा क्योंकि चौहान एक ओबीसी नेता हैं और पिछड़े वर्ग से दूसरा नेता ढूंढ़ पाना मुश्किल साबित हो रहा है। इसलिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को विष्णु शर्मा की जगह मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाने पर विचार किया जा रहा है। तोमर एक अनुभवी पार्टी नेता हैं और राज्य में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है। उनकी काफी पकड़ भी है। भाजपा के जीत हासिल करने की स्थिति में विधानसभा चुनावों के बाद बदलाव हो सकता है।

कांग्रेस की चिंता

भाजपा जहां लोकसभा चुनावों के पूर्व अपने कल-पुर्जों को दुरुस्त करने में लगी है वहीं कांग्रेस भी कई राज्यों में अपने वाटरलू का सामना कर रही है। भाजपा का फोकस इस बात पर है कि अपने हिंदू वोट बैंक को बरकरार रखते हुए मुस्लिम वोट कैसे हासिल किए जाए। इसी प्रकार, कांग्रेस अपने मुस्लिम वोट बैंक को बरकरार रखते हुए हिंदुओं के वोट पाना चाहती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को प्रशंसा भले ही मिल रही हो लेकिन उन्हें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। 

कांग्रेस पार्टी के जिस हिंदू वोट बैंक को इंदिरा गांधी ने बरकरार रखा था, उसे उनके उत्तराधिकारियों ने गंवा दिया है। दुर्भाग्यजनक तो यह है कि अपने मुस्लिम वोट बैंक को भी वह राज्य दर राज्य खोती जा रही है, जिसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई। इसके पहले भारतीय मुस्लिम लीग केरल और एआईएमआईएम हैदराबाद तक ही सीमित थे। 

बाद में कई पार्टियां उनके हितों की रक्षा का आश्वासन देती हुए सामने आने लगीं। असम में बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ ने एक बड़ी उड़ान भरी है और असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद के बाहर अपने पैर पसारते हुए महाराष्ट्र, बिहार व अन्य राज्यों में भी अपनी पैठ बना ली है। इतना ही नहीं, कर्नाटक में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया का उदय हुआ। इसलिए राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य मुस्लिमों को अपने पाले में वापस लाना है। 

अपनी यात्रा के दौरान अनेक मंदिरों में दर्शन करके उन्होंने राम मंदिर के ट्रस्टी और महंतों की प्रशंसा भी अर्जित की है। राहुल का नया रूप और तपस्वी के वेश में सामने आना तथा यह दावा करना कि उन्होंने रामायण, महाभारत, वेद और पुराण पढ़ा है, का उद्देश्य यह संदेश देना है कि वे एक धर्मपरायण हिंदू हैं।

नेताओं की मुश्किल

कन्याकुमारी से कश्मीर तक 150 दिनों तक राहुल गांधी के साथ तीन हजार किमी चलने में सक्षम 120 ‘यात्रियों’ का चयन करने में राहुल गांधी की टीम को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन यात्रियों को न केवल पार्टी के प्रति उनकी असंदिग्ध निष्ठा के आधार पर चुना गया बल्कि कठिन यात्रा के मद्देनजर उनकी शारीरिक क्षमताओं को भी ध्यान में रखा गया। योग्यतम की इस परीक्षा में कुछ लोग असफल भी हुए। लेकिन कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को बीच में यात्रा छोड़नी पड़ी क्योंकि वे राहुल गांधी के साथ कदम नहीं मिला सके या अपना संतुलन नहीं संभाल सके। 

महाराष्ट्र के नितिन राऊत, हरियाणा के पीसीसी प्रमुख उदय भान और किरण चौधरी को गिर कर घायल होने से यात्रा के बीच से लौटना पड़ा। अशोक गहलोत, भूपिंदर सिंह हुड्डा, सिद्धारमैया, कमलनाथ, जयराम रमेश, बालासाहब थोरात जैसे कई वरिष्ठ नेता केवल थोड़ी दूर चल सके और उन्हें पीछे हटना पड़ा। लेकिन राहुल गांधी बेहद खुश हैं क्योंकि राजस्थान और हरियाणा में पदयात्रा बहुत अच्छे तरीके से आयोजित की गई थी। 

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