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लोकसभा चुनाव 2019: संघ का साथ बीजेपी को मिलता हुआ नहीं दिख रहा है!

By विकास कुमार | Updated: March 10, 2019 14:47 IST

मोदी सरकार के पिछले 5 वर्षों में लिए गए फैसलों का संघ ने हर बार बचाव किया है. नोटबंदी के मुद्दे पर भी पीएम मोदी को संघ का साथ मिला था. लेकिन चुनाव में जब चंद दिनों का वक्त बाकी रह गया है तो फिर ऐसे में संघ का समर्थन नरेन्द्र मोदी को मिलता हुआ क्यों नहीं दिख रहा है.?

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लोकसभा चुनाव के तारीखों का एलान आज शाम 5 बजे चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस में होने वाली है. इसी बीच मध्यप्रदेश के ग्वालियर में संघ के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक चल रही है. 2014 में अपने वैचारिक सिपाही को केंद्रीय सत्ता तक पहुंचाने के लिए संघ ने 2014 के चुनाव में बड़े पैमाने पर मोर्चा संभाला था. लेकिन इस बार ऐसा क्या है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होने वाली है और संघ के वैचारिक मंथन का विषय सबरीमाला और भौतिकतावाद के युग में परिवार की अवधारणा है. बीते दिन बीजेपी की तरफ से अमित शाह और राम लाल ने संघ के मंथन बैठक में भाग लिया. लेकिन यह एक रूटीन दौरे से ज्यादा नहीं रहा. संघ के कार्यक्रमों में भाजपा के आनुषंगिक संगठनों के प्रतिनिधि भाग लेते रहे हैं. 

बैठक में भैय्या जी जोशी ने कहा है कि मौजूदा सत्ता राम मंदिर को लेकर गंभीर है और जल्द से जल्द हल निकलेगा. और भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा. लेकिन जिस तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव में संघ की सक्रियता दिखी थी ऐसा इस बार क्यों नहीं दिख रहा है. मोदी सरकार के पिछले 5 वर्षों में लिए गए फैसले का संघ ने हर बार बचाव किया है. नोटबंदी के मुद्दे पर भी पीएम मोदी को संघ का साथ मिला था. लेकिन चुनाव में जब चंद दिनों का वक्त बाकी रह गया है तो फिर संघ का समर्थन नरेन्द्र मोदी को क्यों नहीं मिलता हुआ दिख रहा है.?

क्या अच्छे दिन का वादा पूरा हुआ 

युवाओं को रोजगार, किसानों को सही दाम, महिलाओं की सुरक्षा, देश की आंतरिक सुरक्षा, पड़ोसियों से अच्छे संबंध, पाकिस्तान को सबक सीखाना, काले धन की वापसी, भ्रष्टाचार का खात्मा. इन तमाम मुद्दों पर नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता से अच्छे दिन का वादा किया था. रोजगार के मुद्दे पर मोदी सरकार आज भी बैकफूट पर है. किसानों को राहत दी गई है, लेकिन क्या ये प्रयाप्त है? काले धन के मुद्दे पर कुछ शुरूआती सफलताओं के बाद अभी तक मोदी सरकार के हांथ खाली हैं. और रही-सही कसर राम मंदिर ने पूरी कर दी जिसने संघ को भी धर्मसंकट में डाल दिया है.

 पिछले दिनों जिस तरह से धर्म संसद में मोहन भागवत के भाषण के दौरान उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा उससे तो यही लग रहा है कि राम मंदिर के मुद्दे पर अब खुद संघ और विश्व हिन्दू परिषद का कार्यकर्ता कोई आश्वासन नहीं चाहता. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की तरफ से राम मंदिर को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलना और सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर के मुद्दे को तरजीह नहीं देना संघ के लिए चिंता का सबब बन रहा है. 

'कांग्रेस मुक्त भारत' एक राजनीतिक नारा 

तमाम उम्मीदों पर नरेन्द्र मोदी कितना खड़ा उतरे हैं इस पर संघ की तरफ से भी अभी कोई फिलहाल आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन अगर पिछले कुछ समय के संघ प्रमुख के बयानों पर गौर किया जाये तो ये साफ अंदेशा मिल जाता है कि आज आरएसएस भी मोदी सरकार के बारे में पब्लिक परसेप्शन को लेकर आशंकित है. संघ प्रमुख ने बीते साल ही कहा था कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' एक राजनीतिक नारा है और संघ इससे इत्तेफाक नहीं रखता है. उन्होंने पिछले साल दिल्ली के विज्ञान भवन में कहा कि संघ का स्वयंसेवक किसी भी पार्टी को वोट दे सकता है. दरअसल उनके इन बयानों से ये साफ झलकता है कि संघ मोदी सरकार के सामानांतर अपने परसेप्शन को खराब नहीं होने देना चाहता. क्योंकि संघ ने राजनीति को हमेशा से दोयम दर्जे का कृत्य समझा है. 

गोलवलकर उर्फ़ गुरु जी का राजनीति पर विचार 

आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ़ 'गुरु जी' ने राजनीति को हमेशा दोयम दर्ज़े का ही कर्म समझा और उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत रूप से इसमें रूचि नहीं ली. जनसंघ की स्थापना के समय संघ से राजनीति में जाने वाले स्वयंसेवकों से उन्होंने कहा था - आप चाहे राजनीति में जितना ऊपर चले जाएं, अंततः आपको लौटना धरती पर ही होगा. तो क्या आज के राजनीतिक परिदृश्य में ये बात नरेंद्र मोदी पर फिट बैठती है. तो क्या बीते साल विज्ञान भवन में दिए गए अपने संबोधन में संघ प्रमुख विश्व नेता का तमगा पाने वाले अपने स्वयंसेवक को इशारों में यही समझाने की कोशिश कर रहे थे. आप संगठन से हैं, संगठन आप से नहीं है. 

संघ का विस्तारवाद 

पीएम मोदी के 5 साल के कार्यकाल में संघ ने ठीक-ठाक अपना विस्तार किया है. दिल्ली के विज्ञान भवन में कार्यक्रम हो या विजयादशमी के भाषण का दूरदर्शन पर लाइव प्रसारण हो, संघ ने राजनीतिक सत्ता के तले सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विस्तार बखूबी किया. मोहन भागवत ने कई मौकों पर अपने स्वयंसेवक और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का खुल कर बचाव भी किया है. 2019 का लोकसभा चुनाव संघ के लिए भी उसके वैचारिक बैटल का अंतिम पड़ाव है, इसलिए संघ के कार्यकर्ता बीजेपी के पक्ष में प्रचार तो करेंगे ही लेकिन शायद उसमें 2014 की तरह धार नहीं होगा. 

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