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कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉगः भारत में आखिर सपना क्यों बनी हुई है खाद्य सुरक्षा?

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: June 7, 2021 15:30 IST

दुनिया आज ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ मना रही है। इस बार इसका विषय है ‘स्वस्थ कल के लिए आज का सुरक्षित भोजन’। 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा हर साल सात जून को यह दिवस मनाने की घोषणा की गई।

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दुनिया आज ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ मना रही है। इस बार इसका विषय है ‘स्वस्थ कल के लिए आज का सुरक्षित भोजन’। 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा हर साल सात जून को यह दिवस मनाने की घोषणा की गई तो इसका उद्देश्य ‘धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को अच्छे आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में बढ़ना’ बताया गया था, ताकि आहार के अभाव में किसी की सेहत प्रभावित न हो और हर कोई स्वस्थ जीवन जी सके। उस साल इसका विषय था : ‘खाद्य सुरक्षा, सभी का व्यवसाय’, लेकिन अगले ही बरस कोरोना की महामारी दुनिया के ज्यादातर देशों की चेतना पर इस कदर हावी हो गई कि इस दिन को 2018 के ही विषय के आधार पर, प्रतीकात्मक तौर पर और ऑनलाइन मनाना ही संभव हो पाया।

इस वर्ष भी लगभग वही स्थिति है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र का प्रयास है कि इसके बहाने व्यापक स्तर पर यह जागरूकता फैलाई जा सके कि किसी भी खाद्य पदार्थ को खाये जाने से पहले उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, भंडारण व वितरण तक हर चरण को जन स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित किया जाना कितना जरूरी है। फिलहाल, संयुक्त राष्ट्र की चिंता है कि इक्कीसवीं शताब्दी के इक्कीसवें साल में भी अनेक देशों में लोगों को खराब या गुणवत्ताहीन भोजन मिलता है, जिससे हर साल लाखों लोगों की मुत्यु हो जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दूषित खाद्य या बैक्टीरिया युक्त खाद्य पदार्थो के सेवन से हर साल 10 में से एक व्यक्ति बीमार होता है। दुनिया भर में बीमारों का यह आंकड़ा 60 करोड़ पार है, जिसमें से 30 लाख लोगों की जीवन रक्षा संभव नहीं हो पाती है। इस स्थिति को बदलने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए उसने खाद्य और कृषि संगठन तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन को नामित कर रखा है।

अपने देश के संदर्भ में बात करें तो इस दिवस का महत्व इस अर्थ में कहीं ज्यादा है कि यहां खाद्य सुरक्षा अभी भी एक बड़ी चिंता बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के ही मुताबिक यहां लगभग 19.5 करोड़ लोग कुपोषित हैं, जो कुल मिलाकर वैश्विक भुखमरी का एक चौथाई हिस्सा हो जाते हैं। इतना ही नहीं, देश में लगभग 43 प्रतिशत बच्चे लंबे समय तक कुपोषित रहने को अभिशप्त हैं और मूल पोषण से वंचित वयस्कों की संख्या भी कुछ कम नहीं है। 

यह तब है जब प्रत्येक नागरिक को भोजन का अधिकार यानी खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए देश की संसद 2013 में ही 12 सितंबर को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम बना और पूर्व प्रभाव से, पांच जुलाई, 2013 से लागू कर चुकी है। इसके तहत कुल जनसंख्या के लगभग दो तिहाई लोगों को कम दाम पर अनाज प्रदान करने का प्रावधान है।

इस अधिनियम में मातृत्व के अधिकार का भी प्रावधान है, जिसके तहत गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं और बच्चों की कुछ श्रेणियां कानूनन अनाज पाने के पात्न हैं। इस केंद्रीय कानून के अलावा कई राज्यों ने भी अपने खाद्य सुरक्षा कानून बनाए हैं और अपने स्तर से ऐसी योजनाएं शुरू की हैं ताकि लोगों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन और पर्याप्त पोषक तत्व उचित कीमत पर उपलब्ध हों।

इसके अलावा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा सुरक्षित खाद्यान्न उपलब्ध करवाने के लिए पहला राज्य खाद्य सुरक्षा इंडेक्स विकसित किया गया है। खाद्य तेल और घी में हुई मिलावट के बारे में एक मिनट से कम समय में पता लगाने के लिए विशेष उपकरण ‘रमन 1.0’ को भी क्रिया में लाया गया है।

इन सारी कवायदों के बावजूद देश में खाद्य सुरक्षा का हाल अच्छा नहीं है तो बिना कहे या बताए समझा जा सकता है कि इनके पीछे किस तरह सत्ताधीशों में इच्छाशक्ति की कमी के साथ राजनीति का ओछापन बड़ी भूमिका निभाता है।

दूसरे पहलू पर जाएं तो दसवें राष्ट्रपति के. आर. नारायणन (1997-2002) अपने कार्यकाल में ही राष्ट्र के नाम एक संदेश में कह गए थे कि आज देश में कोई भूखा सोता है तो इसका कारण देश में खाद्यान्नों की कमी नहीं बल्कि यह है कि संबंधित व्यक्ति के पास उन्हें खरीदने के लिए जरूरी क्रय शक्ति का अभाव है। लेकिन तब से अब तक की सरकारों ने मुफ्त या रियायती दरों पर राशन वितरण वगैरह में थोड़ी-बहुत दरियादिली दिखाई भी तो गरीबों की क्रयशक्ति को वांछित स्तर तक बढ़ाने के उपायों में खास दिलचस्पी नहीं ली।

अब कोरोना काल में तो इस क्रय शक्ति का और भी बुरा हाल है, क्योंकि कहीं लोगों के रोजी-रोजगार व नौकरियां छूट रही हैं तो कहीं महामारी के ढाये कई दूसरे कहरों ने उन्हें सड़क पर ला खड़ा किया है। सवाल है कि हमारे सत्ताधीशों को यह बात कब समझ में आएगी कि अनाज और भोजन की बर्बादी रोककर सारे देशवासियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना उनका प्राथमिक कर्तव्य है?

टॅग्स :भोजनसंयुक्त राष्ट्र
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