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जन-उल्लास का पर्व दशहरा, क्या है इसके मायने

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: October 18, 2018 01:43 IST

दशहरा पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ ही साहस, पराक्रम, विजयों और मर्यादाओं के अनुपालन का उत्सव है, जिसमें आराधना, उपासना के साथ त्याग की भावना तथा प्राचीन परंपराओं से जुड़ाव है।

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-डॉ. शिवाकांत बाजपेयीभारत उत्सवों, पर्व-त्यौहारों और मेलों-ठेलों की संस्कृति वाला देश है जिसमें उत्साह, उल्लास तथा सांस्कृतिक परंपराओं का अद्भुत संगम होता है। भारत के प्रमुख उत्सवों में दशहरा पर्व का अपना विशेष महत्व है जिसमें धार्मिकता के साथ-साथ ऐतिहासिकता और पराक्र म का भी समावेश है। हालांकि इस पर्व का आयोजन कब से प्रारंभ हुआ ठीक-ठीक तरीके से तो नहीं बताया जा सकता लेकिन इसके सूत्रबीज बृहत्संहिता तथा कालिदास आदि के ग्रंथों में प्रकारांतर से ज्ञात होते हैं। और यही वह त्यौहार है जिसमें राम-रावण का आख्यान घर-घर में सुनाया जाता है।

दशहरा, अश्विन शुक्ल दशमी को जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, के दिन पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।  कहा जा सकता है कि दशहरा एक बहुमुखी त्यौहार है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। दशहरा की  लोकप्रियता के पीछे मूल रूप से  रामायण में वर्णित राम-रावण का कथानक है जो समाज को बुराई पर अच्छाई की जीत का  दर्शन सिखाता है और यह हजारों वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी न केवल अनुप्राणित हो रहा है बल्कि यह कथानक वर्षो से इतिहासकारों तथा पुरातत्ववेत्ताओं के मध्य ऐतिहासिक विमर्श का भी केंद्र बना हुआ है जिसके संदर्भ में अनेक प्रकार के प्रमाण दिए जाते हैं।

देश में रामायण से संबंधित अनेक स्थलों की पहचान की गई है जिसमें नासिक स्थित पंचवटी भी विख्यात है और रामायण के आख्यान के अनुसार सीता हरण रावण ने यहीं से किया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि देश के अनेक प्राचीन देवालयों में उक्त घटनाओं को प्रदर्शित करती अनेक दृश्य प्रतिमाएं भी प्राप्त होती हैं जिनकी तिथि प्रारंभिक छठी सदी ईस्वी से अनुमानित की जाती है।

महाराष्ट्र के एलोरा गुफा स्थित कैलाशनाथ मंदिर में मंदिर की बाह्य भित्ति में संपूर्ण रामयण का ही उत्कीर्णन है। यह भी सुविख्यात है कि भगवान शिव का रावण अनन्य भक्त था और उसने उन्हें प्रसन्न करने के लिए कैलाश-पर्वत तक को उठा लिया और इस प्रकार का शिल्पांकन भारतीय कला में कैलाशोत्ताेलन अथवा रावण अनुग्रह के नाम से विख्यात है जिसका अंकन भी एलोरा की कैलाश गुफा सहित छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के खरौद नामक कस्बे में स्थित लखनेश्वर मंदिर में प्राप्त होता है। इसी प्रकार के कतिपय शिल्पांकन औरंगाबाद, अहमदनगर रोड पर स्थित सिद्धेश्वर मंदिर, कायगांव टोका में भी प्राप्त होते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि दशहरा पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ ही साहस, पराक्रम, विजयों और मर्यादाओं के अनुपालन का उत्सव है, जिसमें आराधना, उपासना के साथ त्याग की भावना तथा प्राचीन परंपराओं से जुड़ाव है। इसके चलते भारत का मैसूर, कुल्लू तथा बस्तर में आयोजित होनेवाला दशहरा उत्सव भारत की सीमाओं को लांघकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। इन सभी दशहरा उत्सवों की अपनी क्षेत्रीय विशेषताएं हैं जिसमें सभी लोग बिना किसी भेद-भाव के सम्मिलित होते हैं और इस प्रकार यह पर्व जन-उल्लास का प्रतीक बन जाता है।(डॉ. शिवाकांत बाजपेयी लेखक और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

टॅग्स :दशहरा (विजयादशमी)
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