शरद जोशी का ब्लॉगः आजादी की गुलामी या गुलामी की आजादी
By शरद जोशी | Updated: October 20, 2019 07:48 IST2019-10-20T07:48:17+5:302019-10-20T07:48:17+5:30
स्त्रियां स्वाधीन हुईं और अपना सौंदर्य खुद बनाने लगीं. पहले पुरुष की गुलाम थीं तो जैसा वह पहनाता था, वैसा बंधन के कारण पहनना पड़ता था. जब आजाद हुईं तो कपड़े की गुलाम हो गईं, लिपस्टिक की गुलाम हो गईं. पहले जिनका सौंदर्य दूसरे की गुलामी करता था, अब वे खुद अपने सौंदर्य की गुलामी करती हैं.

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यों बिन गुलामी के आजादी का आनंद पता नहीं लगता. मुक्त पंछी पंख का उपयोग करता है और आसमान में उड़ा-उड़ा फिरता है परंतु जो कई दिनों से पिंजड़े में बंद है, वह समझता है आजादी के क्या मजे हैं. खैर! दूसरी बात है आजादी की गुलामी की. हम आजाद होते हैं इसलिए कि नई गुलामी सिर पर लें. कई साल पहले स्वदेशी वस्त्र आजादी के लिए पहना गया था और आज वही वस्त्र इस आजादी की गुलामी के कारण पहना जाता है. ‘यानी मौत से यों बचे कि बीमार हो गए/ आजाद क्या हुए गिरफ्तार हो गए.’
स्त्रियां स्वाधीन हुईं और अपना सौंदर्य खुद बनाने लगीं. पहले पुरुष की गुलाम थीं तो जैसा वह पहनाता था, वैसा बंधन के कारण पहनना पड़ता था. जब आजाद हुईं तो कपड़े की गुलाम हो गईं, लिपस्टिक की गुलाम हो गईं. पहले जिनका सौंदर्य दूसरे की गुलामी करता था, अब वे खुद अपने सौंदर्य की गुलामी करती हैं.
जैसे प्राचीन साहित्य में हम पढ़ते हैं कि वह जब जा रहा था तो मार्ग में उसे एक सुंदर स्त्री मिली देखने को. यह मिलाप इस कारण हो गया था कि लोगों को बाएं हाथ चलना आवश्यक नहीं था. वे दाएं-बाएं जैसे चाहें चल सकते थे. हम सभ्य हुए, आजाद हुए और बाएं चलने लगे. अब सुंदरियों का केवल पीछा कर सकते हैं, परंतु मिल नहीं सकते. यों इंदौर की बात छोड़ो जहां की सुंदरता सदैव जन-सुविधा का खयाल करके गलत साइड जाती है. पर एक मोटी बात मैंने कही.
असभ्य राष्ट्र जो पिछड़े हुए हैं, वे अपने मन के मुताबिक करने में ज्यादा स्वतंत्र हैं. वे गालियां बक सकते हैं, वे तारीफें कर सकते हैं मगर सभ्य मुल्क में अपनी स्थिति का लिहाज हमें धूल में भी नहीं बैठने देता. तो आजादी की गुलामी के बाद जो दूसरा चक्कर आता है, वह गुलामी की आजादी का है. मैं किसी भी जगह नौकरी करूं, मालिक की जितनी चाहे सेवा करूं, इसकी मुझे आजादी है.
कोई किसी भी अभिनेत्री के पीछे मारा-मारा फिरे, उसे इस रूप की गुलामी की आजादी है. किसी भी वाद, मत या व्यक्ति के विचारों को अपने जीवन में ओढ़ मानसिक गुलाम बना रहूं, इसकी मुझे आजादी है. यानी आजादी की गुलामी यह है कि कोई षोडशी वृद्ध से विवाह नहीं कर सकती और गुलामी की आजादी यह है कि कोई पति अपनी पत्नी का सदैव भक्त बना रह सकता है. आदमी एक कार्य में आजादी को आजाद हो जाता है, फिर गुलामी को आजाद होता है और फिर गुलामी का गुलाम हो जाता है. (रचनाकाल - 1950 का दशक)