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केतन गोरानिया का ब्लॉग: PSU के निजीकरण का मोदी सरकार का साहसिक कदम

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 2, 2021 12:27 IST

ब्रिटेन में भी शुरू में मार्गरेट थैचर की नीतियां लाभ नहीं दे पाई थीं. विकास धीमा हुआ, बेरोजगारी बढ़ी, अर्थशास्त्रियों ने उनकी आर्थिक नीतियों की आलोचना की लेकिन मार्गरेट थैचर ने उनको नजरअंदाज किया और निजीकरण अभियान के जरिये ब्रिटेन को एक कल्याणकारी राज्य से मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की ओर ले गईं.

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निजीकरण की नरेंद्र मोदी सरकार की घोषणा 1980 के दशक में मार्गरेट थैचर के नेतृत्व में ब्रिटेन सरकार के निजीकरण अभियान की याद दिलाती है. पहले चरण के दौरान ब्रिटेन ने 670 सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया.

उन्होंने ब्रिटिश गैस, ब्रिटिश पेट्रोलियम, ब्रिटिश दूरसंचार, जल आपूर्ति और कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का निजीकरण किया. सरकार के पास केवल कल्याण विभाग बचा था. भारत में उसी तरह का रोडमैप मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में बनाया गया है, जिसमें कुछ को छोड़कर लगभग सभी सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करना है.

हमें याद रखना चाहिए कि ब्रिटेन का प्रयोग दशकों की आर्थिक गिरावट के बाद हुआ था, जबकि भारत में ऐसा नहीं है. 1979 में यूके के राष्ट्रीयकृत उद्योगों का जीडीपी में 10.5 प्रतिशत योगदान था जो 1993 में तीन प्रतिशत तक गिर गया.

ज्यादातर मामलों में ब्रिटिश निजीकरण नियामक संरचनाओं के सुधारों के साथ हुआ, ब्रिटिश सरकार ने समझा कि निजीकरण को खुली प्रतिस्पर्धा के साथ जोड़ा जाना चाहिए.

ब्रिटेन के आंतरिक अध्ययनों से बिजली के निजीकरण में प्रतिस्पर्धा और नियमों के महत्व का पता चलता है. कई कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा के चलते लागत में काफी कमी आई और लाभ बढ़ा, लेकिन निजीकरण के बाद, उद्योग में रोजगार 1996-97 में 127300 से गिरकर 66000 रह गया, ब्रिटिश दूरसंचार क्षेत्र में रोजगार 238000 से घटकर 124700 रह गया, जिसका अर्थ है कि कंपनियां अधिक कुशल हो गईं लेकिन रोजगार का नुकसान हुआ.

भारत को बहुत ज्यादा रोजगार सृजन करने की आवश्यकता है और भ्रष्टाचार को कम करने और दक्षता लाने के लिए हमें आगे बढ़ने की जरूरत है, फिर भी सावधानी के साथ हमें सुरक्षात्मक उपाय करने होंगे.

दूसरी ओर ब्रिटेन में जल उद्योग में प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण, नियामक शिथिल था, कार्यकुशलता कम थी और निजीकरण के बाद ग्राहकों को ज्यादा भुगतान करना पड़ा. कंपनियों ने भारी मुनाफा कमाया.

इस प्रकार कुछ सार्वजनिक एकाधिकार निजी एकाधिकार बन गए. भारत को इस तरह के एकाधिकारों के बारे में बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता है, विशेष रूप से हवाई अड्डों, गैस वितरण और दूरसंचार क्षेत्र में, क्योंकि इससे पूंजीपतियों को भारी लाभ हो सकता है लेकिन उपभोक्ताओं को नुकसान होगा.

ब्रिटेन में भी शुरू में थैचर की नीतियां लाभ नहीं दे पाई थीं. विकास धीमा हुआ, बेरोजगारी बढ़ी, अर्थशास्त्रियों ने उनकी आर्थिक नीतियों की आलोचना की लेकिन मार्गरेट थैचर ने उनको नजरअंदाज किया और निजीकरण अभियान के जरिये ब्रिटेन को एक कल्याणकारी राज्य से मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की ओर ले गईं, वित्तीय क्षेत्र में आमूलचूल सुधार किया और वैश्विक प्रवाह पर प्रभुत्व जमाने के लिए एक्सचेंजों को प्रोत्साहित किया.

उन्होंने मुक्त बाजार के प्रति सरकारी प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए ‘छोटी सरकार’ की अवधारणा को प्रोत्साहित किया. आखिरकार, विकास लौटा और अंत में बेरोजगारी में भारी कमी आई.

शेयर बाजार ने थैचर सरकार की नीतियों का प्रतिफल दिया, एफटीएसई के सभी शेयर सूचकांक पांच गुना से भी ज्यादा बढ़े और 1979 में 221 के मामूली आधार से 1990 में 1771 हो गए.

भारत ब्रिटेन के 1980 के दशक के दौर में है और मोदी सरकार को बिग बैंग रिफॉर्म के लिए याद किया जाएगा. स्वतंत्र होने के बाद नेहरूवादी युग में, निजी पूंजी की कमी के कारण सार्वजनिक इकाइयों को सरकार द्वारा स्थापित करना समय की जरूरत थी, जो आज के समय में प्रासंगिक नहीं है.

लेकिन सरकार अगर स्पष्ट दृष्टिकोण, सही नियमों और क्षेत्र-आधारित नीतियों व बिना किसी पक्षपात के विनिवेश प्रक्रिया का पालन करती है तो ठीक है अन्यथा, हम निजी एकाधिकार और क्रोनी कैपिटलिज्म के एक नए दौर में जा पहुंचेंगे.

सबसे बड़ा कदम सार्वजनिक क्षेत्र के छोटे बैंकों का निजीकरण करना होगा, क्योंकि समय के साथ वे बैंक अक्षम हो गए हैं और अब टेक्नोलॉजी आधारित बैंकिंग के साथ छोटे अक्षम बैंक सरकारी वित्त पर भार बन कर रह जाएंगे.

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