जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग: कोरोना काल में कमजोर वर्ग को राहत देने की दरकार
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: May 19, 2021 02:31 PM2021-05-19T14:31:21+5:302021-05-19T14:31:21+5:30
अभी जहां देश का गरीब और श्रमिक वर्ग पिछले वर्ष 2020 में कोरोना की पहली लहर के थपेड़ों से मिली आमदनी घटने और रोजगार मुश्किलों से पूरी राहत भी महसूस नहीं कर पाया है, वहीं अब फिर से देश में कोरोना की दूसरी घातक लहर के कारण गरीब एवं श्रमिक वर्ग की चिंताएं बढ़ गई हैं
हाल ही में 13 मई को कोरोना संक्र मण की दूसरी घातक लहर के कारण लॉकडाउन से प्रभावित प्रवासी मजदूरों की बढ़ती बेरोजगारी और बढ़ते पलायन पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले साल प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए शीर्ष अदालत ने जो कई आदेश दिए थे, उनका पालन नहीं हुआ है. कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में फंसे मजदूरों को सूखा राशन उपलब्ध कराया जाए. साथ ही उनके लिए सामुदायिक रसोई भी शुरू करने पर विचार किया जाए और इसके लिए मजदूरों से कोई पहचान-पत्र भी न मांगा जाए.
इसी प्रकार 17 मई को रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच सबसे अधिक प्रभावित श्रमिक वर्ग और जैसे-तैसे रोजाना आजीविका कमाने वाले कमजोर वर्ग के दर्द को कम करने के लिए अभी और अधिक उपाय किए जाने की जरूरत है.नि:संदेह इन दिनों देश में कहीं लॉकडाउन, तो कहीं लॉकडाउन जैसी कठोर पाबंदियों और जनता कर्फ्यू के कारण गरीबों और श्रमिकों सहित संपूर्ण कमजोर वर्ग की मुश्किलें बढ़ गई हैं. ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा भारत में गरीबी और निम्न आमदनी वाले लोगों की चुनौतियां बढ़ने से संबंधित दो शोध रिपोर्टों को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है.
इन दो रिपोर्टों में से पहली रिपोर्ट 7 मई को अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के द्वारा प्रकाशित की गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष कोविड-19 संकट के पहले दौर में करीब 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं. ये वे लोग हैं जो प्रतिदिन राष्ट्रीय न्यूनतम पारिश्रमिक 375 रु पए से भी कम कमा रहे हैं. दूसरी रिपोर्ट अमेरिकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सेंटर के द्वारा प्रकाशित की गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में बीते साल 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है. रिपोर्ट में प्रतिदिन 2 डॉलर यानी करीब 150 रु पए कमाने वाले को गरीब की श्रेणी में रखा गया है.
इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोविड-19 से जंग में पिछले वर्ष 2020 में सरकार के द्वारा घोषित किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान और 40 करोड़ से अधिक गरीबों, श्रमिकों और किसानों के जनधन खातों तक सीधी राहत पहुंचाई जाने से कोविड-19 के आर्थिक दुष्प्रभावों से देश के कमजोर वर्ग को बहुत कुछ बचाया जा सका है. अब स्थिति यह है कि पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के कारण देश के जो करोड़ों लोग गरीबी के बीच आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे थे, उनके सामने अब कोरोना की दूसरी लहर से निर्मित हो रही नई मुश्किलों से निपटने की बड़ी चिंता खड़ी हो गई है.
चूंकि इस समय कई औद्योगिक राज्यों से उद्योग-कारोबार पर संकट होने के कारण फिर से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं, ऐसे में मनरेगा को एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों के लिए जीवनरक्षक और प्रभावी बनाना होगा. हाल ही में प्रकाशित एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक पिछले माह अप्रैल 2021 में मनरेगा के तहत गांवों में काम की मांग अप्रैल 2020 के मुकाबले लगभग दोगुनी हो गई है. जहां अप्रैल 2020 में मनरेगा के तहत करीब 1.34 करोड़ परिवारों की तरफ से काम की मांग की गई थी, वहीं अब अप्रैल 2021 में करीब 2.73 करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया है. मनरेगा के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने हेतु चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में मनरेगा के मद पर रखे गए 73,000 करोड़ रु पए के आवंटन को बढ़ाया जाना जरूरी होगा.
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि गरीब एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार से जुड़े हुए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) को संभालने के लिए राहत के प्रयासों की जरूरत होगी. इसमें कोई दो मत नहीं है कि 5 मई को रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया (आरबीआई) ने व्यक्तिगत कर्जदारों एवं छोटे कारोबारों के लिए कर्ज पुनर्गठन की जो सुविधा बढ़ाई है और कर्ज का विस्तार किया है, उससे छोटे उद्योग-कारोबार को लाभ होगा. इन नई सुविधा के तहत 25 करोड़
रुपए तक के बकाया वाले वे कर्जदार अपना ऋण दो साल के लिए पुनर्गठित करा सकते हैं, जिन्होंने पहले मॉरेटोरियम या पुनर्गठन का लाभ नहीं लिया है. यह नई घोषित सुविधा 30 सितंबर, 2021 तक उपलब्ध होगी.
बैंक उद्योग-कारोबार से इस संबंध में अनुरोध प्राप्त होने के 90 दिन में ऋण का पुनर्गठन करेंगे.लेकिन अभी एमएसएमई को कुछ अधिक राहत देकर रोजगार बचाने के साथ-साथ श्रमिक वर्ग को पलायन से रोका जाना होगा. एमएसएमई के लिए एक बार फिर से लोन मोरेटोरियम योजना लागू की जानी लाभप्रद होगी. आपात ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) को आगे बढ़ाने या उसे नए रूप में लाने जैसे कदम राहतकारी होंगे. हम उम्मीद करें कि ऐसे रणनीतिक प्रयासों से एक ओर अर्थव्यवस्था को, तो दूसरी ओर गरीबों और श्रमिकों सहित संपूर्ण कमजोर वर्ग को बढ़ती निराशाओं से बचाया जा सकेगा.