ब्लॉग: जम्मू-कश्मीर में चुनावी गहमागहमी की हो रही शुरुआत
By अवधेश कुमार | Published: December 20, 2021 11:49 AM2021-12-20T11:49:39+5:302021-12-20T12:01:28+5:30
जम्मू-कश्मीर का पूरा माहौल चुनावमय हो गया है. राजनीतिक पार्टियों की रैलियों में चुनावी बातें हो रही हैं. सबसे ज्यादा सभाएं भाजपा ने की हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस भी बहुत पीछे नहीं है. कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के अनुसार वहां सक्रिय नहीं हो, पर वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद लगातार रैलियां कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर विधानसभा चुनाव की गहन चर्चा हो रही है. जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव की घोषणा शीघ्र हो सकती है. मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि परिसीमन के पहले चुनाव नहीं होगा और परिसीमन के बाद चुनाव में देर नहीं की जाएगी.
सरकार ने परिसीमन आयोग का कार्यकाल बढ़ाने से इनकार कर दिया है. इसका अर्थ है कि मार्च के पहले आयोग की रिपोर्ट आ सकती है. 20 दिसंबर को आयोग ने राजनीतिक दलों की बैठक राजधानी दिल्ली में बुलाई है. देखना है उसमें कौन राजनीतिक दल शामिल होते हैं और कौन नहीं.
पिछली बार 18 फरवरी को आयोग की बैठक में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी आदि शामिल नहीं हुए थे. लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां जम्मू-कश्मीर में लगातार रैलियां कर रही हैं. सरकार ने उन सबको संकेत दे दिया है.
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने अवश्य कहा है कि अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली के बगैर चुनाव में भाग नहीं लेंगी, पर उन्हें एवं जम्मू-कश्मीर केंद्रित दूसरी पार्टियों को भी पता है कि यह मांग व्यावहारिक नहीं है.
पंचायत चुनाव में इन्होंने भाग नहीं लिया. जिला विकास परिषद के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने भाग लिया, क्योंकि उनके सामने मुख्यधारा से बाहर हो जाने का खतरा था.
सबको पता है कि जो पार्टी विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेगी, वह राजनीतिक प्रक्रिया से काफी समय के लिए बाहर हो जाएगी. वैसे भी गुपकार गठबंधन सीट समझौता कर भाग लेगा तो पीडीपी अलग रखकर स्वयं को राजनीतिक हाशिये में धकेलना नहीं चाहेगी.
जम्मू-कश्मीर का पूरा माहौल चुनावमय हो गया है. राजनीतिक पार्टियों की रैलियों में चुनावी बातें हो रही हैं. सबसे ज्यादा सभाएं भाजपा ने की हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस भी बहुत पीछे नहीं है. कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के अनुसार वहां सक्रिय नहीं हो, पर वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद लगातार रैलियां कर रहे हैं.
16 नवंबर को उन्होंने जम्मू के बनिहाल से अपनी रैलियों की शुरुआत की थी. 4 दिसंबर को रामबाण में हुई रैली के साथ पहला चक्र पूरा हुआ है. शीघ्र ही वे दूसरा चक्र आरंभ करने वाले हैं. वे 370 हटाने की मांग नहीं कर रहे हैं और इसका भी संदेश जम्मू-कश्मीर में गया है.
नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला 370 की बात कर रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि जिस तरह किसान अपनी मांगें मनवाने के लिए शहीद हुए उसी तरह हमें भी होना पड़ेगा. पहली बार 370 हटने के माहौल में चुनाव होगा तो यह चुनावी मुद्दा अवश्य बना रहेगा.
वास्तव में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और गुपकार गठबंधन की पार्टियां चुनाव में अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली को मुद्दा बनाएंगी. इसी मांग के लिए गुपकार बना ही था. इसके अलावा राज्य की बहाली और परंपरागत रूप से मानवाधिकार का उल्लंघन, केंद्र सरकार पर कश्मीर विरोधी होने का आरोप आदि मुद्दे सामने आ चुके हैं.
भाजपा 370 हटाने के बाद स्थानीय निकायों के चुनावों में आम आदमी के हाथों सत्ता आने, विकास की नीतियां स्वयं बनाने, जम्मू-कश्मीर में विकास की राशि गांव तक पहुंचने आदि को मुद्दा बनाकर विरोधी पार्टियों को प्रत्युत्तर दे रही है. अनुच्छेद-370 की समाप्ति तथा जम्मू को भी कश्मीर घाटी के समान महत्व मिलना जम्मू के लिए भावनाओं का मुद्दा है.
जम्मू-कश्मीर का चुनाव कई दृष्टियों से रोचक तो होगा ही, यह दूरगामी महत्व वाला भी होगा. इस चुनाव के परिणाम भविष्य में न केवल प्रदेश की राजनीति की दिशा- दशा तय करेंगे बल्कि इनके आधार पर पूर्ण राज्य सहित कई नियति भी निर्धारित होगी.
अगर नेशनल कांफ्रेंस पीडीपी सहित गुपकार गठबंधन की पार्टियों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली और भाजपा ने बेहतर किया तो अनुच्छेद 370 की पुनर्वापसी का मुद्दा खत्म हो जाएगा.
परिणाम इसके विपरीत आए तो कुछ नहीं कहा जा सकता. वैसे मामला उच्चतम न्यायालय में है और एक बार निर्णय होने के बाद उसको पलटना इतना आसान नहीं है.
भाजपा ने राज्यपाल शासन के तहत विधानों और प्रणालियों में इतना परिवर्तन कर दिया है कि उन सबको फिर से पुरानी अवस्था में ले जाना किसी के लिए संभव नहीं होगा.