अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवसः विचार, भावनाओं, संस्कृति का सेतु है अनुवाद
By योगेश कुमार गोयल | Updated: September 30, 2025 05:19 IST2025-09-30T05:19:29+5:302025-09-30T05:19:29+5:30
अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस 2025 का विषय है ‘अनुवाद, एक ऐसे भविष्य को आकार देना, जिस पर आप भरोसा कर सकें.’

सांकेतिक फोटो
वैश्विक संवाद, भाषाई विविधता और सांस्कृतिक सेतु के महत्व को उजागर करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर को विश्वभर में ‘अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस’ मनाया जाता है. अनुवाद केवल शब्दों का परिवर्तन नहीं बल्कि विचार, भावनाओं और संस्कृति का सेतु है. आज के डिजिटल युग में जब अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को लांघकर राजनीतिक, वैज्ञानिक, कारोबारी और सांस्कृतिक गतिविधियां पूरी दुनिया में फैल रही हैं, तब अनुवादक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है.
यह दिन उन अनुवादकों, शब्दकारों, स्थानीय विशेषज्ञों और वैश्विक संवाद विशेषज्ञों को समर्पित है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जड़ता को मिटा कर विचारों को फैलाते हैं. अनुवाद का महत्व प्राचीन काल से ही स्थापित है. भारत में बहुभाषिकता और सांस्कृतिक विविधता के चलते अनुवाद कला ने साहित्य, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, रामायण इत्यादि अनेक भारतीय ग्रंथ अपने विभिन्न भाषाई रूपों में उपलब्ध हैं, जिससे इनकी शिक्षाएं देश-विदेश तक पहुंचीं. मुगल काल में भी फारसी, अरबी और संस्कृत साहित्य का परस्पर अनुवाद हुआ. आधुनिक भारत में संविधान 22 भाषाओं को मान्यता देता है, जिसमें अनुवाद की भूमिका वास्तव में केंद्रीय है.
अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस की शुरुआत ‘फेडरेशन ऑफ ट्रांसलेटर एसोसिएशंस’ (एफआईटी) द्वारा 1953 में की गई थी लेकिन इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2017 में अधिकारिक मान्यता दी गई. इस अवसर पर अनुवाद के पेशेवरों की मेहनत, मूल्यों और चुनौतियों को रेखांकित किया जाता है. हर वर्ष एक थीम का चयन होता है, जिससे वैश्विक संवाद के विविध पहलुओं पर चर्चा होती है.
अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस 2025 का विषय है ‘अनुवाद, एक ऐसे भविष्य को आकार देना, जिस पर आप भरोसा कर सकें.’ एफआईटी द्वारा प्रचारित यह विषय, एआई और मशीन अनुवाद के बढ़ते उपयोग के युग में विश्वसनीय संचार सुनिश्चित करने और विश्वास को बढ़ावा देने में मानव अनुवादकों और दुभाषियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है.