नीरजा चौधरी का ब्लॉग: शालीनता की मिसाल थे इंद्र कुमार गुजराल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 4, 2019 12:57 IST2019-12-04T12:57:28+5:302019-12-04T12:57:28+5:30
इंदिरा गांधी की कोर टीम में रहते हुए वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने और फिर 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री बने.

नीरजा चौधरी का ब्लॉग: शालीनता की मिसाल थे इंद्र कुमार गुजराल
भारत के 12वें प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल को दो शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है : एक ‘शालीन राजनेता’, जो राजनीति की रुखाई से अपने व्यवहार को प्रभावित न होने देते हुए, अपने दोस्तों और दुश्मनों के साथ समान रूप से शिष्टाचार बरतने में विश्वास रखते थे. आज उनकी सौवीं जयंती है.
स्वतंत्रता संग्राम की उनकी प्रारंभिक स्मृति, जैसा कि वे कहा करते थे, दस वर्ष की उम्र की थी, जब उनके माता-पिता उन्हें 1929 में लाहौर कांग्रेस में ले गए थे, जहां पहली बार ‘पूर्ण स्वराज’ का नारा दिया गया. उनके अभिभावक महात्मा गांधी और लाला लाजपतराय से प्रभावित थे. युवावस्था में वे मार्क्सवाद के प्रभाव में आए, लेकिन सोवियत संघ में चल रही घटनाओं को देखकर उनका मोहभंग हो गया और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए.
इंदिरा गांधी की कोर टीम में रहते हुए वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने और फिर 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री बने. ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, जिसको उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों को सुधारने के लिए लागू किया था. उन्होंने महसूस किया कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ उदारता से तो सब कुछ हासिल कर सकता है, लेकिन ‘बड़े भाई’ की तरह व्यवहार करने और रौबदाब दिखाने से केवल भय ही बढ़ेगा और असंतोष पैदा होगा. पड़ोसी देशों के साथ की गई उनकी कुछ पहलों की आलोचना भी की गई थी. लेकिन उन्होंने महसूस किया कि किसी भी देश की सबसे अच्छी सुरक्षा अपने पड़ोसियों के साथ सद्भावना और मित्रतापूर्ण संबंध ही होते हैं. पड़ोस की नीति तैयार करते समय वे विशेष रूप से सार्क देशों के नेताओं से मिले और उनके परिवार की भी व्यक्तिगत रूप से जानकारी ली, जिसे मीडिया ने ‘झप्पी-पप्पी राजनीति’ कहा. लेकिन गुजराल के बारे में जो बात लोगों को ज्यादा नहीं मालूम है वह यह कि अप्रैल 1997 से मार्च 1998 के बीच उन्होंने कितनी मुश्किलों के बीच गठबंधन चलाया था. कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी थी और भाजपा देश की सबसे पुरानी पार्टी का स्थान लेने के लिए सक्षम नहीं हो पाई थी, तब अस्सी और नब्बे के दशक में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन आदर्श थे.
गुजराल ने एच.डी. देवेगौड़ा से एक बहुदलीय संयुक्त मोर्चे के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था, जिसे ‘मुख्यमंत्रियों की सरकार’ कहा जाता था. क्षेत्रीय पार्टियों के प्रमुख तय करते थे कि उनकी पार्टी से कौन केंद्र सरकार में शामिल होगा. ये मंत्री पहले अपने पार्टी प्रमुख के प्रति वफादार होते थे और उसके बाद प्रधानमंत्री के.
इंद्र कुमार गुजराल को भारत के पड़ोसियों के साथ मित्रता के लिए मजबूती से खड़े रहने के लिए याद किया जाएगा, क्योंकि उपमहाद्वीप की प्रगति का वही एक रास्ता है