राज कुमार सिंह का ब्लॉग: देश के अमृतकाल में बढ़ता भारत बोध!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 12, 2023 12:50 PM2023-09-12T12:50:08+5:302023-09-12T12:51:33+5:30
चर्चा का आधार है राष्ट्रपति की ओर से जी-20 शिखर सम्मेलन के मेहमानों को भेजा गया रात्रिभोज का सरकारी निमंत्रण पत्र जिस पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के बजाय ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया है.
जिस दिन से संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने की खबर आई है, अटकलों का बाजार गर्म है कि अब मोदी कौन-सा ट्रम्प कार्ड चलनेवाले हैं. अटकलें समान नागरिक संहिता, समय पूर्व लोकसभा चुनाव और एक देश-एक चुनाव के इर्दगिर्द ही घूम रही थीं कि अब उसमें देश का नाम बदलने की चर्चा भी जुड़ गई है.
चर्चा का आधार है राष्ट्रपति की ओर से जी-20 शिखर सम्मेलन के मेहमानों को भेजा गया रात्रिभोज का सरकारी निमंत्रण पत्र जिस पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के बजाय ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया है.
बेशक हमारे देश को भारत और इंडिया, दोनों ही नाम से जाना जाता है, पर यह सामान्य घटना नहीं है. इससे निश्चय ही किसी गंभीर सोच का संकेत मिलता है. ऐसा भी नहीं है कि देश का नाम बदलने की मांग पहली बार हुई है. कुछ समय पहले दिल्ली के एक नागरिक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देश का नाम भारत या हिंदुस्तान करने की मांग की थी, क्योंकि इंडिया नाम गुलामी का बोध कराता है.
याचिकाकर्ता के तर्क थे: 1. गांधीजी ने भारत माता की जय का नारा दिया था. 2. राष्ट्रगान में भारत शब्द है, न कि इंडिया. 3. दंड संहिता में भी भारत ही लिखा गया है. 4. ब्रिटिश सत्ता से पहले मुगल भी हमारे देश को हिंदुस्तान पुकारते थे. सर्वोच्च अदालत ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि देश का नाम पहले से ही भारत है, पर संबंधित मंत्रालय को इस पर गौर करना चाहिए.
2014 में जब योगी आदित्यनाथ सांसद थे, तो उन्होंने देश का नाम इंडिया की जगह हिंदुस्तान रखने की बाबत प्राइवेट मेंबर बिल भी संसद में पेश किया था. संसद के पिछले मानसून सत्र में भी भाजपा सांसद नरेश बंसल ने राज्यसभा में मांग की थी कि इंडिया नाम औपनिवेशिक गुलामी का प्रतीक है, इसलिए इसे संविधान से हटा दिया जाए और देश का नाम बदल कर भारत किया जाए.
शायद ही विश्व के किसी और देश के दो नाम होने का उदाहरण मिले. भाषाई आधार पर एक देश के दो नाम तर्कसंगत नहीं ठहराए जा सकते. कई देशों ने अपने नाम बदले हैं: सियाम 1939 में थाईलैंड हो गया, सीलोन 1972 में श्रीलंका हो गया, बर्मा 1989 में म्यांमार हो गया, हॉलैंड 2020 में नीदरलैंड हो गया और तर्की 2021 में तुर्किये हो गया. हमें तो बस अपने मूल नाम भारत को बरकरार ही रखना है.
भारत के संविधान में भी 100 से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं. यदि आजादी के अमृतकाल में गौरवशाली भारत बोध होता है तो उसका दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर स्वागत किया ही जाना चाहिए.