Indian Teacher's Day: अपने शिक्षकों की हम क्यों नहीं करते कद्र?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 29, 2025 05:23 IST2025-08-29T05:23:01+5:302025-08-29T05:23:01+5:30

Indian Teacher's Day: मुझे अच्छी तरह याद है कि कम्प्यूटर क्रांति आने से पहले के जमाने में यह समाज के सबसे बेहतरीन दिमागों को आकर्षित करता था शिक्षा के पेशे की तरफ.

Indian Teacher's Day 5 september Why don't we respect our teachers blog Abhilash Khandekar | Indian Teacher's Day: अपने शिक्षकों की हम क्यों नहीं करते कद्र?

सांकेतिक फोटो

Highlightsअच्छी सरकारी शालाओं के बाहर लोगों की कतारें लग जाती थीं.प्रधानाचार्य और शिक्षक प्रथम श्रेणी के शिक्षक हुआ करते थे.नई नौकरियों से भर-सा गया हैं जिसने शिक्षकों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया है.

Indian Teacher's Day: लगभग दो साल पहले, मैंने भारतीय शिक्षक दिवस - 5 सितंबर - पर कहीं  पर एक प्रश्नावली पढ़ी थी जिसमें बहुत कम प्रश्न थे और उनमें से एक था: आप इस पेशे में क्यों आए? जहां तक मुझे याद है, ज्यादातर उत्तरदाताओं ने कहा था, ‘हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था.’ यह एक दुःखद सच्चाई है कि देश में समय के साथ, शिक्षण पेशे ने अपनी पुरानी चमक खो दी है. मुझे अच्छी तरह याद है कि कम्प्यूटर क्रांति आने से पहले के जमाने में यह समाज के सबसे बेहतरीन दिमागों को आकर्षित करता था शिक्षा के पेशे की तरफ.

अच्छी सरकारी शालाओं के बाहर लोगों की कतारें लग जाती थीं क्योंकि वहां के प्रधानाचार्य और शिक्षक प्रथम श्रेणी के शिक्षक हुआ करते थे. वे अपने काम के प्रति बेहद समर्पित थे और उन्होंने शिक्षण को अपनी पहली पसंद के तौर पर अपनाया था, न कि मजबूरी में. पिछले पांच दशकों में समाज तेजी से बदला है. बाजार मोटी तनख्वाह वाली नई नौकरियों से भर-सा गया हैं जिसने शिक्षकों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया है.

कम से कम सरकारी विद्यालयों में तो अध्यापन अब किसी भी युवक-युवती की आखिरी पसंद बन गया है. निजी और सरकारी, दोनों ही क्षेत्रों में वेतन में भारी अंतर हो सकता है, लेकिन पेशे में अच्छी मान्यता या प्रतिष्ठा कहीं नहीं है. किसी बड़े वकील या जिला न्यायालय के न्यायाधीश के बारे में सोचिए; किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ या कम्प्यूटर वैज्ञानिक के बारे में;

किसी स्टार्टअप के मालिक या किसी एसडीएम (सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट) के बारे में तो शायद बात समझ में बेहतर तरीके से आएगी. किसी आईएएस-आईपीएस अधिकारी के बारे में तो कहने की बात ही नहीं - मतलब किसी कलेक्टर, एसपी या आईजीपी के बारे में - उनके चारों ओर एक भव्य आभामंडल होता है और पद का बड़ा रौब भी होता है.

ऊपर लिखें इन सभी और अनेक अन्य व्यवसायों या नौकरियों में शामिल लोगों को उनके विद्यालयों में व महाविद्यालयों में काबिल शिक्षकों ने ही पढ़ाया था, जिससे उन्हें मूल्यों, अनुशासन और ज्ञान से वह सब हासिल करने में बहुत मदद मिली जो उन्होंने अंततः हासिल किया. फिर भी, उन्हीं शिक्षकों को समाज में उतनी मान्यता नहीं मिलती जितनी बाकी अनेक को मिलती है?

क्या यह एक अच्छा संकेत है, खासकर तब जब हम वैश्विक शक्ति ( विश्व गुरु) बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं? क्या हम भारत की उस समृद्ध और सशक्त शक्ति (साॅफ्ट पाॅवर) को नजरअंदाज कर सकते हैं जो हमेशा से भारत के पास रही है? मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान, मैंने अर्जुन सिंह के साथ एक विस्तृत चर्चा की थी व उनसे केवल एक ही बात का आग्रह किया था:

कृपया ऐसी नीतियां बनाने का प्रयास करें जो शिक्षकों को बेहतर वेतन, भत्ते और कार्य स्थितियों जैसे उपायों के माध्यम से सामाजिक सम्मान प्रदान करें. संक्षेप में, भारतीय शिक्षा का माहौल ऐसा होना चाहिए जहां शिक्षकों का सम्मान हो और इस महान पेशे को विशेष रूप से छात्रों-अभिभावकों और सामान्य रूप से समाज से पर्याप्त सम्मान और प्रशंसा मिल सके.

मैंने विद्यालयीन शिक्षकों, कुलपतियों और यहां तक कि आईआईटी और आईआईएम के निदेशकों के लिए भी यही अनुरोध किया था कि उन्हें भी वही सुविधाएं मिलें जो अन्य क्षेत्रों के बड़े पेशेवरों को मिलती हैं. यह 2005 की बात है. आज मुझे अर्जुन सिंह के साथ हुई सार्थक चर्चा याद आ रही है क्योंकि सर्वोच न्यायालय ने हाल ही में इस बात को दोहराया है.

सिंह आज के कई राजनेताओं से कहीं ज्यादा ईमानदार और पढ़े-लिखे मंत्री थे. गुजरात सरकार के एक मामले में शिक्षकों के बारे में सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणियों को पढ़ने पर मुझे पुरानी बातें याद आईं. माननीय न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा और जॉयमाल्या बागची ने कहा है: ‘हमें इस बात की गहरी चिंता है कि हम अपने शिक्षकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं,

वे हमारी भावी पीढ़ियों को शिक्षित करते हैं और उन्हें आवश्यक योग्यताएं व विशेषज्ञता हासिल करने में सक्षम बनाते हैं.’ गुजरात में सहायक प्राध्यापकों को उचित पारिश्रमिक और सम्मानजनक व्यवहार दिए जाने का न्यायालय ने  समर्थन किया, जो सरकार नहीं कर रही है. लेकिन यह ‘अन्याय’ सिर्फ गुजरात तक ही सीमित नहीं है;

मध्य प्रदेश में संविदा शिक्षकों को अध्यापक नहीं, बल्कि ‘शिक्षाकर्मी’ कहा जाता है. उन्हें उचित वेतन और नौकरी की सुरक्षा की मांग को लेकर उन्हें कई बार हड़ताल भी करनी पड़ती है. भारत में प्राचीन गुरुकुल प्रणाली में शिक्षक-छात्र संबंधों की एक समृद्ध विरासत रही है, जिसने कई सदियों तक बड़ी संख्या में छात्रों को प्रशिक्षित किया और निखारा जिससे एक ऐसे भारत का निर्माण हुआ है,

जिसे उन सभी पर आज भी गर्व है. भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य (अनेक प्रसिद्ध शिष्य) से लेकर सांदीपनि (श्रीकृष्ण) और द्रोणाचार्य (अर्जुन) तथा विश्वामित्र (राम और लक्ष्मण) तक, समय-समय पर कई महापुरुष व शिक्षक हुए हैं. अपने प्रसिद्ध शिष्यों को दुर्लभ शिक्षाएं प्रदान करने में उनकी असाधारण भूमिका के लिए उनके समर्पण की कहानियां शताब्दियों बाद भी उद्धृत की जाती हैं.

वैश्विक इतिहास के किसी भी कालखंड को उठाकर देखें, शिक्षकों ने युवाओं के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अगर मैं कहूं कि शिक्षक सच्चे राष्ट्र-निर्माता हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
दोहराए जाने का खतरा उठाकर भी, मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत की भारतीय शिक्षा प्रणाली के बारे में हाल ही में व्यक्त की गई चिंताओं के लिए उनकी सराहना करनी होगी. भाजपा सरकारों को उनकी चिंताओं पर कार्रवाई करनी चाहिए और शिक्षकों को उनके हक का सम्मान प्रदान करना होगा. तभी हम विकसित कहलाने के हकदार होंगे.  

Web Title: Indian Teacher's Day 5 september Why don't we respect our teachers blog Abhilash Khandekar

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