indian army: वाह! कमाल की है हमारी सेना, नाज है...

By विजय दर्डा | Updated: October 7, 2024 05:16 IST2024-10-07T05:16:16+5:302024-10-07T05:16:16+5:30

indian army ex chief manoj pandey: 7 फरवरी 1968 को वायुसेना का मालवाहक विमान चंडीगढ़ से लेह की यात्रा के दौरान रोहतांग दर्रे के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसमें 102 सैनिक सवार थे.

indian army ex chief manoj pandey Wow! Our army amazing we are proud nagpur blog Dr Vijay Darda | indian army: वाह! कमाल की है हमारी सेना, नाज है...

indian army ex chief manoj pandey

Highlightsसेना से मेरा आशय थल सेना, वायुसेना और नौसेना से है.सेना पर यह कॉलम लिख रहा हूं, वह कहानी थल सेना की है. सेना ने हार नहीं मानी और रुक-रुक कर खोजी दल उस इलाके में जाते रहे.

indian army ex chief manoj pandey: हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हमारे थल सेना अध्यक्ष और नागपुर के सुपुत्र मनोज पांडे से अचानक मुलाकात हो गई. वे अपनी पत्नी को बताने लगे कि ये लोकमत वाले विजय दर्डा हैं जिन्होंने कारगिल में जवानों के लिए बहुत काम किया है. जवानों के लिए गर्म घर बनवाए हैं. मैंने विनम्रता से अपने हाथ जोड़ लिए. मैं जानता हूं कि हमारे देश में कम से कम एक ऐसी जगह है जिसके सामने हर कोई नतमस्तक हो जाता है चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी मजहब या किसी भी वर्ण का हो! वह जगह है हमारी सेना.

सेना से मेरा आशय थल सेना, वायुसेना और नौसेना से है. आज जिस प्रसंग में मैं अपनी सेना पर यह कॉलम लिख रहा हूं, वह कहानी थल सेना की है. 7 फरवरी 1968 को वायुसेना का मालवाहक विमान चंडीगढ़ से लेह की यात्रा के दौरान रोहतांग दर्रे के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसमें 102 सैनिक सवार थे.

दुर्गम और बर्फ से ढकी रहने वाली पहाड़ियों के कारण तत्काल न विमान के मलबे का पता चला और न सैनिकों के शव मिले. लेकिन सेना ने हार नहीं मानी और रुक-रुक कर खोजी दल उस इलाके में जाते रहे. 2003 से लेकर 2019 के बीच कुछ शव मिले, विमान का मलबा भी मिला. सेना ने बिछड़े हुए साथियों की तलाश लगातार जारी रखी.

पिछले माह यानी सितंबर के अंतिम सप्ताह में खोजी टीम ने ढाका ग्लेशियर के पास 16,000 फुट की ऊंचाई पर बर्फ में दबे चार सैनिकों के शव बरामद किए थे. इन सैनिकों थॉमस चेरियन, मलखान सिंह, नारायण सिंह और मुंशीराम के शवों को उनके गांव तक पहुंचाया और उनका अंतिम संस्कार किया गया.

महत्वपूर्ण बात यह है कि उस दुर्घटना के सैनिकों को मृत मान लिया गया था लेकिन सेना ने उन सैनिकों के परिवारों को हमेशा यह जानकारी दी कि खोज जारी है. दरअसल सेना का एक सूत्र वाक्य है कि किसी भी साथी को पीछे नहीं छोड़ना है, भले ही वह घायल हो या फिर वीरगति को प्राप्त हो गया हो.

हमने ऐसे प्रसंग भी पढ़े और सुने हैं कि सैनिकों ने वजन कम करने के लिए अपना रसद फेंक दिया ताकि वे अपने घायल या वीरगति प्राप्त करने वाले साथी को कंधे पर लादकर दुश्मनों की पहुंच से बाहर निकाल सकें. ऐसा जज्बा दुनिया के किसी और देश की सेना में नहीं दिखता है. आपको याद होगा कि पाकिस्तान ने कारगिल जंग में मारे गए अपने सैनिकों का शव लेने से भी इनकार कर दिया था.

भारतीय सेना का दिल देखिए कि पाकिस्तान के सैनिकों का अंतिम संस्कार भी उनके धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार किया. लद्दाख के इलाके में चीनी सैनिकों को भारतीय सैनिकों ने मार गिराया तो कई वर्ष तक चीन ने माना ही नहीं कि उसके सैनिक मारे गए हैं. दुनिया में युद्ध की ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं जहां सैनिक अपने मृत साथियों को छोड़ कर आगे बढ़ गए या पीछे हट गए.

लेकिन हमारी भारतीय सेना कभी ऐसा नहीं करती. हमारी सेना की एक और खासियत है कि हमारे युवा सैन्य अधिकारी जवानों से भी आगे चलते हैं. 1971 की भारत-पाक जंग के बाद जब पाकिस्तान के 97 हजार सैनिक हमारी कैद में थे तब सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ उनकी खैर-खबर ले रहे थे.

पाकिस्तानी सैनिकों ने तब उनसे कहा था कि आपका सलीका और आपके युवा सैन्य अधिकारियों की अदम्य साहस वाली नेतृत्व क्षमता ही आपकी जीत का कारण है. वाकई भारतीय सेना का जज्बा और सलीका लाजवाब है. फौज में जहां अधिकारियों की ट्रेनिंग होती है वहां एक कहावत है कि आप हमें एक युवा देते हैं, हम देश को एक संपूर्ण व्यक्ति देते हैं.

मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूं कि मुझे सेना के बीच जाने और उन्हें समझने का मौका मिला है. मैं हिमालय से लेकर रेगिस्तान और कच्छ के रण तक सीमा पर गया हूं और सैनिकों को पूरे जज्बे और समर्पण के साथ मुस्तैद देखा है. जब मैं कश्मीर गया था तो हालात बेहद खराब थे. कश्मीर जल रहा था. मेरी गाड़ी के आगे और पीछे हथियारों से लैस  सैन्य वाहन थे.

मेरे साथ वहां तैनात वरिष्ठ सैन्य अधिकारी रवि थोडगे बता रहे थे कि सेना किस तरह से हमारे बॉर्डर की रक्षा तो करती ही है, आतंकवादियों को भी नेस्तनाबूद करती है. इसके साथ ही वे बता रहे थे कि सेना वहां गांव वालों की चिकित्सा व्यवस्था से लेकर बच्चों की पढ़ाई और खेलकूद तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मुझे नहीं लगता कि दुनिया की कोई भी सेना इतने समर्पण के साथ सेवा में भी जुटी हो.

क्या आप जानते हैं कि हमारी सेना का एक अत्यंत महत्वपूर्ण उद्घोष वाक्य है- ‘स्वयं से पहले सेवा!’ गोलियां चलाने वाले हाथ जरूरत पड़ने पर तत्काल राहत के लिए एकजुट हो जाते हैं. 2013 में उत्तराखंड में चलाया गया ऑपरेशन राहत दुनिया का सबसे बड़ा राहत अभियान था जिसमें 20 हजार लोगों को सेना ने बचाया था और करीब 4 लाख किलो खाने का सामान लोगों तक पहुंचाया था.

देश ही नहीं हमारी फौज विदेशों में भी सेवा करती है. मैं राजस्थान बॉर्डर पर तनोट माता मंदिर गया था जहां पाकिस्तान ने कई बम फेंके थे लेकिन वे फटे नहीं और उसी हालत में वहां रखे हैं. मैंने देखा कि सैनिक चाहे जिस भी पंथ, धर्म या मजहब का हो, वह श्रद्धा से भरा हुआ था. वहां जाति, पंथ और धर्म का कोई बंटवारा नहीं है.

उनके लिए सबसे बड़ा धर्म तिरंगा है. मैंने पूर्वोत्तर के राज्यों में बॉर्डर की यात्रा की है. मुझे सेना के भीतर हर काम के प्रति श्रेष्ठता का भाव अच्छा लगता है. वे जंगल में भी मंगल की स्थिति पैदा कर लेते हैं. उजाड़ जमीन को भी लीप-पोत कर साफ-सुथरा बना लेते हैं. आप सड़क पर चलती उनकी गाड़ियों को देखिए, टायर में भी एक कीचड़ का टुकड़ा नहीं मिलेगा.

खाना बनाते हैं तो इतना स्वादिष्ट कि उंगलियां चाटते रह जाएं. शौर्य और सेवा से लेकर स्वाद तक का यह कमाल हमारी भारतीय सेना ही दिखा सकती है. अपनी सेना से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. नाज है हमें अपनी सेना पर जो तिरंगे की शान में जीते हैं!

तिरंगा ऊंचा रहे हमारा! जय हिंद.

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