ब्लॉग: हिंदुस्तान की हुंकार से हैरत में है दुनिया..!

By विजय दर्डा | Published: December 13, 2021 08:50 AM2021-12-13T08:50:50+5:302021-12-13T08:50:50+5:30

भारत में चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो, कोई भी प्रधानमंत्री रहा हो, सबने देश हित को सवरेपरि माना और उसी के अनुरूप नीतियां तैयार कीं।

india will never change its foreign policy by external pressure | ब्लॉग: हिंदुस्तान की हुंकार से हैरत में है दुनिया..!

अमेरिका, भारत और रूस के बीच त्रिकोण में एक डिफेंस सिस्टम फंसा हुआ था। इसका नाम है एस-400। रूस में निर्मित यह डिफेंस सिस्टम अमेरिका के बेहतरीन एयर डिफेंस सिस्टम पैट्रिअट मिसाइल जैसा है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से करीब 36 घंटे पहले जब उत्तराखंड में विकास परियोजनाओं का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत किसी के दबाव में नहीं आता तो संदेश साफ था..! समझने वाले समझ गए कि बात देहरादून में कही जा रही थी और संदेश सीधा अमेरिका पहुंच रहा था। बात इतने सलीकेदार तरीके से की गई कि इस पर अमेरिका कोई प्रतिक्रिया भी देने की हालत में नहीं था..!

दरअसल अमेरिका, भारत और रूस के बीच त्रिकोण में एक डिफेंस सिस्टम फंसा हुआ था। इसका नाम है एस-400। रूस में निर्मित यह डिफेंस सिस्टम अमेरिका के बेहतरीन एयर डिफेंस सिस्टम पैट्रिअट मिसाइल जैसा है। यह विमान, क्रूज, बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ ही हाइपरसोनिक हथियारों को भी नष्ट कर सकता है।

इसे जमीन के अलावा नेवी के मोबाइल प्लेटफॉर्म से भी लॉन्च किया जा सकता है। चीन इसे रूस से खरीद चुका है लेकिन अमेरिका नहीं चाहता कि रूस इसे किसी और दूसरे देश को बेचे। इसके लिए उसने कानून भी बना रखे हैं। पिछले साल इन्हीं कानूनों के तहत उसने तुर्की पर भारी प्रतिबंध लगा दिया और 35 लड़ाकू विमानों के सौदे को भी रद्द कर दिया।

चूंकि अमेरिका के साथ भारत की नजदीकियां बढ़ रही हैं इसलिए सबकी निगाहें लगी थीं कि पुतिन की मात्र छह घंटे की यात्र में क्या होगा? मगर भारत ने पुतिन के दिल्ली में कदम रखने से पहले ही संदेश दे दिया कि आप भरोसेमंद साथी हो और रहोगे! हमें किसी की चिंता नहीं है..! वास्तव में रूस ने हमेशा ही और हर संकट में भारत का साथ दिया है।

भारत अपने हथियारों के 80 प्रतिशत कलपुर्जे रूस से ही प्राप्त करता है। हम रूस का ही लड़ाकू विमान उड़ाते हैं। रूस के सहयोग से शीघ्र ही अत्याधुनिक एके-203 राइफल का निर्माण भी भारत में शुरू होने जा रहा है। अब दुनिया हैरत में है कि भारत ने विदेश नीति की शतरंज पर ये कैसी चाल चल दी कि रूस भी खुश और अमेरिका कुछ करने की हालत में नहीं! 

यदि अमेरिका तुर्की की तरह भारत पर प्रतिबंध लगाने की जुर्रत करता है तो उसे खुद परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। उसे पता है कि चीन के खिलाफ हर कदम पर उसे भारत की जरूरत पड़ेगी। पाकिस्तान उसके लिए अब किसी काम का नहीं है क्योंकि वह पूरी तरह चीन की गोद में जा बैठा है। यहां तक कि पिछले सप्ताह अमेरिका की ओर से बुलाई गई 110 देशों की डेमोक्रेटिक समिट में भी वह चीन के कहने पर शामिल नहीं हुआ।

अमेरिका जानता है कि आज की स्थिति में भारत एक सशक्त राष्ट्र है। तेजी से आगे बढ़ रहा है। कोरोना काल में भारत ने अपनी प्रबंधन क्षमता और कौशल का परिचय दिया है। भारतीय युवा पूरी दुनिया में छाए हुए हैं। यहां तक कि श्रेष्ठ अमेरिकी कंपनियों के सीईओ बने हुए हैं। भारतीय डायस्पोरा पूरी दुनिया में छाया हुआ है।

सबसे बड़ी बात कि हिंद महासागर में चीन को रोकना है तो बगैर भारत के यह संभव नहीं है। चीन को रोक पाने की संभावना और शक्ति केवल भारत के पास है। ऐसी हालत में अमेरिका के पास भारत के साथ दोस्ती की पेंग बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं। अमेरिका और भारत में पिछले 15 सालों में सुरक्षा साङोदारी भी बढ़ी है।

भारत ने अमेरिका के साथ ढेर सारे हथियारों के सौदे भी किए हैं। वैसे जब अमेरिका और भारत के बीच दोस्ती के कदम बढ़े तो रूस ने भी नाराजगी दिखाई और कोशिश की कि भारत अमेरिकी पाले में न जाए। चीन से दोस्ती बढ़ा रहा रूस इस बात पर भी खफा हुआ कि जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वॉड गुट में भारत क्यों शामिल हुआ? 

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने तो यहां तक कह दिया कि भारत अभी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में पश्चिमी देशों की चीन-विरोधी नीति का एक मोहरा बना हुआ है। रूसी अधिकारियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, विदेश मंत्री एस.जयशंकर और भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के सामने भी यह मसला उठाया लेकिन भारत की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई।

रूस ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर शुरुआती बैठकों में भारत को नहीं बुलाया लेकिन भारत ने एहसास करा दिया कि उसके बगैर अफगानिस्तान के मुद्दे का समाधान नहीं हो सकता! भारत की नीति बहुत साफ रही है कि दुनिया में भले ही गुट बनते और बिगड़ते रहें लेकिन किसी गुट में शामिल नहीं होना है।

यह नीति पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से है जिन्होंने दुनिया में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। नीतिगत तौर पर सोवियत रूस के साथ निकटता बढ़ी। अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना मोहरा बना लिया और कई दशक तक उसी का साथ भी देता रहा। भारत में चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो, कोई भी प्रधानमंत्री रहा हो, सबने देश हित को सवरेपरि माना और उसी के अनुरूप नीतियां तैयार कीं।

मैं यहां एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा जिसके बारे में मुझे पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने बताया था। बात तब की है जब गुजराल साहब रूस में भारत के राजदूत हुआ करते थे। इधर मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री का पद संभाला और उधर गुजराल साहब ने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली लौट आए। वे मोरारजी देसाई से मिलने पहुंचे तो मोरारजी भाई ने तत्काल पूछ लिया कि इस्तीफा क्यों दिया।

गुजराल साहब ने कहा कि आपकी अमेरिका पसंद नीतियों को मैं जानता हूं, इसलिए इस्तीफा दिया। मोरारजी भाई ने उन्हें राजदूत के पद पर बने रहने को कहा और कुछ समय बाद ही मोरारजी भाई की सरकार ने रूस के साथ कई महत्वपूर्ण समझौते किए। आपको पता ही होगा कि हमारे संकट के समय जब लाल सड़े गेहूं के रूप में अमेरिका ने हमें अपमानित किया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पत्र के साथ वह गेहूं लौटा दिया था कि हमारे यहां तो ये जानवर भी नहीं खा सकते।

आपके यहां इंसान यदि खाते हैं तो उन्हें खिलाएं! ..तो भारत ने हमेशा ही अपने स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नहीं किया। यही हमारी परंपरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परंपरा को परवान चढ़ाया है। किसी की जुर्रत नहीं कि वह हमारी तरफ आंखें उठा कर देख सके। हम अपनी शक्ति पहचानते हैं और कोई हमें झुका नहीं सकता। हम जानते हैं- सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा!

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