सवाल पूछना मीडिया का दायित्व, नीयत पर सवाल न उठाएं नेता

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: March 29, 2023 16:03 IST2023-03-29T15:39:04+5:302023-03-29T16:03:37+5:30

प्रधानमंत्री पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं देना चाहते थे, या फिर यह भी संभव है कि वे उन सवालों को उत्तर देने लायक नहीं समझ रहे थे।

india It is the responsibility of the media to ask questions leaders should not question their intentions | सवाल पूछना मीडिया का दायित्व, नीयत पर सवाल न उठाएं नेता

फाइल फोटो

Highlightsराजनेताओं से सवाल करना एक पत्रकार का अधिकार हैराजनेताओं को भी अधिकार है कि वह किसी सवाल का जबाव दे या नहीं राहुल गांधी ने जिस तरह पत्रकार के सवाल पर बयान दिया वह निराशाजनक है

उस दिन अचानक सोशल मीडिया पर एक ‘रील’ दिख गई थी। मुश्किल से एक-दो मिनट की इस रील में प्रधानमंत्री मोदी से कुछ पत्रकार सवाल पूछते दिख रहे थे। पत्रकार सवाल पूछते, प्रधानमंत्री सवाल सुनकर चुपचाप मुंह फेर लेते।

यह तो पता नहीं चल पाया कि यह वीडियो किस अवसर का था, पर इसमें कुछ अस्पष्ट नहीं था कि प्रधानमंत्री पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं देना चाहते थे, या फिर यह भी संभव है कि वे उन सवालों को उत्तर देने लायक नहीं समझ रहे थे।

जिस तरह सवाल पूछना पत्रकार का अधिकार है, वैसे ही उत्तर देने, न देने का अधिकार उसे भी है जिससे सवाल पूछा जा रहा है। समझदार राजनेता जब चाहते हैं, सवाल टाल जाते हैं।

इस तरह टाल जाना भी एक कला है पर विपक्ष के एक नेता राहुल गांधी ऐसी कला का प्रदर्शन नहीं कर पाए। एक प्रेस-वार्ता में जब एक पत्रकार ने उनसे एक सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब देने के बजाय उस पत्रकार की नीयत पर ही सवाल उठा दिया। उसे सत्तारूढ़ दल का सदस्य या चमचा बताते हुए उसकी ‘हवा निकाल दी’।

अनावश्यक था राहुल गांधी का इस तरह पत्रकार पर आरोप लगाना या फिर हवा निकाल देने जैसी बात कहना। राहुल गांधी का यह व्यवहार अनुचित भी था और अप्रिय भी।

राहुल गांधी से यह पूछा गया था कि भाजपा द्वारा उन्हें ‘अन्य पिछड़े वर्ग’ का शत्रु करार दिए जाने पर उन्हें क्या कहना है। पत्रकार ने भाजपा के हवाले से यह बात पूछी थी, यह सही है, पर ऐसी किसी बात से इस सवाल का कोई रिश्ता नहीं था कि जवाब देने के बजाय पत्रकार पर किसी राजनीतिक दल का एजेंट होने का आरोप लगाया जाए और कहा जाए, ‘क्यों, हवा निकल गई (ना)?’

आज जब मैं यह लिख रहा हूं तो मुझे लगभग आधी सदी पुरानी एक घटना याद आ रही है तब मैंने पत्रकारिता में प्रवेश किया ही था। लखनऊ की बात है प्रखर समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया की एक प्रेस-वार्ता में मुझे अपने अखबार से भेजा गया था।

वहां कुछ ऐसा पूछ लिया था मैंने, जिस पर डॉक्टर लोहिया कुछ भड़क-से गए. देश के वरिष्ठ और सम्माननीय नेता का ‘गुस्सा’ देखकर मुझ जैसे नये पत्रकार का सहम जाना स्वाभाविक था।

मेरे पास में ही एक वरिष्ठ पत्रकार बैठे थे। मेरा सहमना उन्होंने भी देखा होगा। मेरा बचाव करते हुए उन्होंने लोहियाजी से कहा था, ‘‘नाराज क्यों हो रहे हैं लोहियाजी, युवा पत्रकार के सवाल का जवाब दीजिए ना?’’ डॉक्टर लोहिया तत्काल नरम पड़ गए थे।

मुस्कराने लगे और बड़े इत्मीनान से उन्होंने पूछे गए सवाल का जवाब दिया। मैं सोच रहा हूं, राहुल गांधी की प्रेस-वार्ता में किसी पत्रकार ने उनसे क्यों नहीं कहा कि उनकी बात, उनका व्यवहार उचित नहीं है?

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