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अनिश्चितता से घिरी शांति में सतर्कता जरूरी, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Updated: February 26, 2021 18:40 IST

सीमा विवाद को दरकिनार रख कर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस वर्ष के मध्य में भारत में ब्रिक्स शिखर बैठक के आयोजन होने की स्थिति में संभवत: भारत आ सकते हैं.

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ठळक मुद्देसैन्य गतिरोध के बाद से दोनों शिखर नेताओं के बीच यह पहली आमने-सामने की बैठक होगी.चीन ने इस झड़प में अपने पांच सैनिकों के मारे जाने की बात किस रणनीति के तहत कबूली.आखिर भारत चरणबद्ध तरीके से फौजों को हटाने के लिए क्यों तैयार हुआ ?

अब जब कि भारत और चीन के बीच पिछले नौ माह से चल रहे बेहद तल्ख सैन्य गतिरोध को दूर करने की मंशा से दस दौर की लंबी व्यापक मंत्रणा और सहमति के बाद पिछले हफ्ते पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी छोरों से चीनी और भारतीय फौजें ‘बिना किसी घटना’ के ‘सफलतापूर्वक’ हट गई हैं.

अब इस क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण के अन्य स्थलों से फौजों के हटने के  लिए अगले चरण के लिए बातचीत चल रही है, ऐसे में खबरें आई कि सीमा विवाद को दरकिनार रख कर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस वर्ष के मध्य में भारत में ब्रिक्स शिखर बैठक के आयोजन होने की स्थिति में संभवत: भारत आ सकते हैं.

अगर ऐसा होता है तो पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नौ माह पूर्व गलवान घाटी में चीन की ‘बर्बर सैन्य कार्रवाई’, जिसमें उस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के वरिष्ठ कमांडर समेत चीनी सैनिकों ने 20 भारतीय जांबाज सैनिकों को लोहे के कंटीली रॉडों और अन्य हथियारों से बर्बर हमले में मार दिया था, उस जघन्य घटना के बाद दोनों देशों के बीच शुरू हुए सैन्य गतिरोध के बाद से दोनों शिखर नेताओं के बीच यह पहली आमने-सामने की बैठक होगी.

क्या फौजों के हटने की प्रक्रिया या इस तरह की संभावित मेल-मुलाकात से रिश्तों में आई कड़वाहट कम हो सकेगी. ये सवाल हम सभी के जेहन में है. संवाद और विश्वास बहाली जहां डिप्लोमेसी का जरूरी हिस्सा होती हैं, वहीं यह भी हकीकत है कि रिश्तों में आई तल्खियां हमें सबक भी दे गई हैं.

सवालों से घिरी पैंगोंग की ‘सकारात्मकता’ के बीच अनेक अनसुलझे सवाल हैं कि चीन ने आखिर 1993 के बाद विश्वास बहाली और सीमा प्रबंधन को लेकर हुए पांच समझौतों की धज्जियां उड़ाते हुए भारत में कोविड के प्रकोप के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अनेक स्थलों पर अतिक्रमण क्यों किया और फिर इतने दौर की बातचीत के बाद चीन आखिर अब इन क्षेत्रों से अपने फौजें हटाने को कैसे और क्यों सहमत हुआ और फिर ऐसे सवाल भी हैं कि सैन्य झड़प के नौ माह बाद अचानक चीन ने इस झड़प में अपने पांच सैनिकों के मारे जाने की बात किस रणनीति के तहत कबूली.

बहरहाल चीन के अविश्वास भारी फितरत के चलते एक और सवाल भी विशेषज्ञ पूछ रहे हैं कि आखिर भारत चरणबद्ध तरीके से फौजों को हटाने के लिए क्यों तैयार हुआ ? उसे  वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूरी तरह से चीनी फौजें हटाने पर जोर देना चाहिए था. चीन भारत के साथ अविश्वास की बड़ी दीवार खड़ी कर रहा है, यानि चीन के साथ रास्ता बेहद संकरा है. लद्दाख घटनाक्रम ने हमें कुछ सबक दिए है. जरूरी है विश्वास बहाली के उपायों के साथ उसके इरादों पर पूरी सतर्कता के साथ नजर रखी जाए.

इसी तनातनी के दौरान पिछले साल 29 और 30 अगस्त को भारतीय सेना के रणनीतिक रूप से बेहद अहम कैलाश रेंज की चोटियों पर कब्जा करने के बाद ऐसे हालात बन गए थे, जहां पर युद्ध होना तकरीबन तय लग रहा था. दरअसल भारतीय सेना के इन चोटियों पर अचानक कब्जा करने की सामरिक रणनीति चीन की सेना के लिए रणनीतिक तौर पर एक बड़ा झटका था. इसके बाद 31 अगस्त को चीनी पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने कैलाश रेंज पर भारतीय कब्जे में आई चोटियों पर काउंटर ऑपरेशन की कोशिश की. जाहिर है कि इसके चलते हालात बेहद तनावपूर्ण हो गए थे.

चीन ने आखिर पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्र मण क्यों किया और अब अपनी फौजें हटाने की सहमति क्यों दी, इस पर अलग-अलग स्तर पर अनुमान हैं लेकिन फिलहाल तो यह एक गुत्थी है. पिछले वर्ष की बात करें तो लगता है कि आर्टिकल 370 के रद्द होने और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद चीन  शायद भारत को अपनी धौंसपट्टी का संदेश देना चाह रहा होगा या वह भारत को हिंद महासागर से हटाकर वापस जमीनी सीमाओं के संदर्भ में रखना चाह रहा होगा और इस तरह नए शीतयुद्ध में उसे अमेरिका के ज्यादा करीब जाने से रोकना चाह रहा होगा.

फिलहाल स्थिति तो यह है कि भारत अमेरिका की अगुवाई वाले चीन विरोधी खेमे के करीब है, विशेष तौर पर जो बाइडेन के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत और अमेरिका के बीच सामरिक और सैन्य सहयोग से चीन चिंतित है ही और फिर एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत के साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ‘क्वॉड’ के प्रति चारों देशों की और ज्यादा प्रतिबद्धता ने भी उसे बेचैन कर दिया है. वैसे भी चीन को यह सोच बौखला देती है कि 90 के दशक में आर्थिक उछाल के बाद से भारत खुद को महज एक क्षेत्रीय ताकत नहीं मानता और हिंद महासागर क्षेत्र में दबदबा चाहता है.

दरअसल पीएम मोदी और शी के बीच 2018 के बाद वुहान और मल्लापुरम के दो अनौपचारिक शिखर बैठकों के अलावा 18 मुलाकातें हो चुकी हैं. पीएम पांच बार चीन की यात्र कर चुके हैं लेकिन चीन के विस्तारवादी एजेंडे और विश्वासघाती रवैये की वजह से इन मेल-मुलाकातों और विश्वास बहाली के तमाम उपायों के बावजूद मई  में गलवान घाटी हादसा हुआ.

दोनों सेनाएं इस क्षेत्र में खतरनाक ढंग से आमने-सामने डटी रहीं. लद्दाख के घटनाक्रम ने दोनों देशों के संबंधों में खासी कड़वाहट घोल दी है. बहरहाल फौजों की वापसी की प्रक्रि या अभी शुरू हुई है, प्रक्रिया अभी चल रही है. अनेक मुद्दे, क्षेत्र ऐसे हैं जिन पर स्थिति स्पष्ट होनी है.

यहां एक पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के इस कथन पर गौर करना होगा कि भारत ने पूरे नौ माह तक सख्त रवैया  अपनाते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डटे रह कर चीन को अपना दबदबा दिखा दिया है. जरूरी है कि भारत को गैर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के साथ ही अब उसे रेखा पर सीमा के निर्धारण पर जोर देना चाहिए.

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