सोया हाथी जाग गया, अब नहीं रुकेगा?, न झुकेगा और न डरेगा...! जय हिंद!
By विजय दर्डा | Updated: August 11, 2025 05:14 IST2025-08-11T05:14:29+5:302025-08-11T05:14:29+5:30
Independence Day 2025: भारतीयों ने दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ी है. तरक्की का वो कोई रास्ता नहीं बचा है, जिस पर हम न चल रहे हों.

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Independence Day 2025: नौ अगस्त से हमारे देश की आजादी के पर्व की शुरुआत हो जाती है और आप सब आजाद भारत के आजाद विचारों के लोग हैं. इस तिरंगे के नीचे आप सब अपने-अपने क्षेत्र में आजादी का जश्न मना रहे हैं और मैं भी कलम की आजादी का जश्न मना रहा हूं. अब आइए आर्थिक आजादी की बात करते हैं. हमारे प्यारे भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुए इस सप्ताह 78 साल हो जाएंगे. इन वर्षों में निश्चय ही हमने बेपनाह तरक्की की है. हम भारतीयों ने दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ी है. तरक्की का वो कोई रास्ता नहीं बचा है, जिस पर हम न चल रहे हों.
तो स्वाभाविक है कि जलने वाले जलेंगे और हमारी तरक्की की राह में कांटे भी बिछाएंगे. हमारे आर्थिक संसाधनों पर उनकी लोभी नजर रहेगी. विश्व व्यापार जैसे संगठनों को लकवा मार चुका है. वे किसी की रक्षा के काबिल नहीं रह गए हैं. तो सवाल है कि मौजूदा स्थितियों से हम आखिर कैसे निपटें?
इस वक्त पूरी दुनिया अमेरिकी टैरिफ में उलझी हुई है और हम इससे अछूते नहीं हैं बल्कि सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में हैं. जब मैं यह कॉलम लिख रहा हूं तो अमेरिकी टैरिफ 25 की जगह 50 प्रतिशत हो चुका है. यानी भारत 100 रुपए का सामान अमेरिका को निर्यात करता है तो उस पर वहां 50 रुपए टैक्स लग जाएगा.
जाहिर है, भारतीय सामान अमेरिका में महंगा हो जाएगा और मांग कम हो जाएगी. कुल भारतीय निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है इसलिए हम निश्चय ही इस टैरिफ से प्रभावित होने जा रहे हैं. इस बिंदु पर आकर भारत की आर्थिक आजादी का सवाल खड़ा हो जाता है क्योंकि अमेरिका हमारी आर्थिक आजादी को नियंत्रित करना चाहता है.
मैं मानता हूं कि भारत की आजादी की दौड़ को पचा पाना सबके बस का काम नहीं है और वो हर क्षेत्र में हमारी आजादी को रोकना चाहेंगे. मुझे हाल ही का एक उदाहरण याद आता है. हमारे जो उद्योगपति आज तेजी से बढ़ रहे हैं उनमें अंबानी हैं, अदानी हैं, सज्जन जिंदल हैं. टाटा, बिड़ला और कई अन्य उद्योगपति हैं.
इनमें अदानी विश्व में नंबर दो पर पहुंच गए थे, लेकिन चिढ़ने वालों ने उन पर ऐसे तथाकथित आरोप लगाने शुरू कर दिए जिससे उनको ज्यादा से ज्यादा तकलीफ हो. ऐसा भय फैलाया गया कि अगर वे लंदन चले जाएं, यूरोप चले जाएं, अमेरिका के प्रभाव वाले देशों में चले जाएं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा! तो आज भारत का हर विरोधी अलग-अलग ढंग से गला घोंटना चाहता है.
इसके पहले चीन पर भी ट्रम्प ने 145 प्रतिशत टैरिफ लगाया था और चीन ने भी उसका करारा जवाब दिया. आखिर हुआ क्या? ट्रम्प को झुकना पड़ा. मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं मगर पत्रकार, राजनेता और उद्योगपति के रूप में विश्लेषण की क्षमता तो रखता ही हूं. मुझे लगता है कि अमेरिका की नजर काफी वर्षों से भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्र पर है.
भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 14 प्रतिशत का है और रोजगार में 42 प्रतिशत का योगदान है. डेयरी क्षेत्र का योगदान 5 प्रतिशत से कुछ ऊपर है और पशुपालन तथा उससे जुड़े उद्योगों को जोड़ लें तो साढ़े आठ प्रतिशत आबादी को रोजगार के साधन उपलब्ध कराता है. इधर दूध उत्पादन में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है.
दुनिया के दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 से 24 फीसदी है. दूसरे क्रम पर अमेरिका है लेकिन वहां के दूध और भारत के दूध में बहुत अंतर है. उनके यहां पशुओं को प्रोटीन आहार देने के लिए मांस का उपयोग किया जाता है जबकि भारत के दुग्ध उत्पादक पशु शाकाहारी हैं. अब देखिए कि दोनों देशों में कृषि और डेयरी क्षेत्र में अंतर क्या है?
भारत में कृषि क्षेत्र को अत्यंत कम सहायता मिलती है लेकिन अमेरिका के किसानों पर अनुदान, तकनीकी सहायता और ऋण के मामले में सरकार मेहरबान है. यानी अमेरिकी कृषि क्षेत्र और वहां के किसान भारत की तुलना में अत्यंत साधन संपन्न हैं. सिर्फ अमेरिका ही नहीं, यूरोप के देश और चीन समेत कई देश कृषि पर सब्सिडी देते हैं.
ऐसे में अमेरिकी कृषि और डेयरी उद्योग को भारत में अनुमति मिल गई तो हमारे किसान बाजार में नहीं टिक पाएंगे. भारतीय किसानों की आर्थिक आजादी लुट जाएगी.जहां तक हमारी आर्थिक आजादी पर चीन के हमले का सवाल है तो हम भारतीय सजग हुए हैं मगर अभी भी चीनी उत्पादों से भारतीय बाजार अटे पड़े हैं. हमारे कुटीर और लघु उद्योग भारतीय बाजार में चीन के साम्राज्य को खत्म नहीं कर पा रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया का जो नारा दिया, उस दिशा में हम बढ़े जरूर हैं लेकिन अभी लंबी दूरी तय करना बाकी है. सरकार की दूरगामी नीति और आम आदमी की मेहनत ही स्थितियों को बदल सकती है. अभी भी हमारे यहां ब्यूरोक्रेसी का नजरिया पूरी तरह बदला नहीं है. जब तक हम लोग लेबर की प्रोडक्टिविटी और क्वालिटी नहीं बढ़ाते, तब तक हम अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाएंगे.
हमें हर क्षेत्र में गुणवत्ता का ध्यान रखना ही पड़ेगा. और तब हमें कोई नहीं रोक पाएगा. मैं अमेरिका की उन्नति की कहानी पढ़ रहा था तो वह प्रसंग सामने आया जब अर्थव्यवस्था चरमराने के बाद जॉन एफ. कैनेडी ने अमेरिकियों से कहा कि इस वक्त आप यह मत सोचिए कि अमेरिका मुझे क्या दे सकता है. यह सोचिए कि देश को आप क्या दे सकते हैं?
उसके बाद ही अमेरिका की किस्मत बदली! भारत के संदर्भ में भी हमें इसी तरह सोचने की जरूरत है. हम खुद की हस्ती को इतना बुलंद करें कि हमलावर भी चार बार सोचे! चीन शक्तिशाली है इसलिए अमेरिका को उसकी जगह बता दी! हमें पंचशील के मार्ग से भी आगे जाकर तीखे तेवर अपनाने होंगे. मुझे रामचरित मानस का एक प्रसंग याद आ रहा है.
परशुराम ने जब लक्ष्मण को अपने फरसे से डराने की कोशिश की तो लक्ष्मण ने कहा- ‘इहां कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनी देखि मरि जाहीं’ यानी यहां कोई भी कुम्हड़े के छोटे फल जैसा कमजोर नहीं है, जो तर्जनी उंगली दिखाने से ही मुरझा जाए. हमें याद रखना होगा कि भारत में अपार संभावनाएं हैं.
पिछले दो हजार साल का आर्थिक इतिहास देखें तो शुरुआती 1500 वर्षों तक विश्व उत्पादन में भारत का योगदान औसतन 46 फीसदी था. अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया तब भी योगदान 23 प्रतिशत था. जब वे गए तब तक योगदान घट कर 2 प्रतिशत रह गया. हमने खुद को संभाला और आज हम दुनिया की अर्थव्यवस्था में चौथे क्रम पर पहुंच चुके हैं.
ध्यान रखिए कि दुनिया में सबसे ज्यादा सोना आज भारत ही खरीदता है. और जो ताकतें हमारी आर्थिक आजादी पर हमला बोल रही हैं, उन्हें मैं सलाह दूंगा कि भारत की ताकत को कम करके मत आंकिए. भारत सोया हुआ हाथी था, जाग गया है. मस्त चाल से चल पड़ा है. न रुकेगा, न झुकेगा और न डरेगा...! जय हिंद!