पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जहरीले भूजल का बढ़ता जोखिम
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 20, 2019 06:00 AM2019-09-20T06:00:21+5:302019-09-20T06:00:21+5:30
भूजल के बेतहाशा इस्तेमाल से एक तो जल स्तर बेहद नीचे पहुंच गया है, वहीं लापरवाहियों के चलते प्रकृति की यह सौगात जहरीली होती जा रही है.
जमीन की गहराइयों में पानी का अकूत भंडार है. यह पानी का सर्वसुलभ और स्वच्छ जरिया है, लेकिन यदि एक बार दूषित हो जाए तो इसका परिष्करण लगभग असंभव होता है. भारत में जनसंख्या बढ़ने के साथ घरेलू इस्तेमाल, खेती और औद्योगिक उपयोग के लिए भूगर्भ जल पर निर्भरता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है. पाताल से पानी निचोड़ने की प्रक्रिया में सामाजिक व सरकारी कोताही के चलते भूजल खतरनाक स्तर तक जहरीला होता जा रहा है.
भारत में दुनिया की सर्वाधिक खेती होती है. यहां 50 मिलियन हेक्टेयर से अधिक जमीन पर बुवाई होती है. खेतों की जरूरत का 41 फीसदी पानी सतही स्त्रोतों से व 51 प्रतिशत भूगर्भ से मिलता है. गत 50 सालों के दौरान भूजल के इस्तेमाल में 115 गुना का इजाफा हुआ है. भूजल के बेतहाशा इस्तेमाल से एक तो जल स्तर बेहद नीचे पहुंच गया है, वहीं लापरवाहियों के चलते प्रकृति की यह सौगात जहरीली होती जा रही है.
सनद रहे कि देश के 360 जिलों को भूजल स्तर में गिरावट के लिए खतरनाक स्तर पर चिह्न्ति किया गया है. भूजल रिचार्ज के लिए तो कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन खेती, औद्योगीकरण और शहरी करण के कारण जहरीले होते भूजल को लेकर लगभग निष्क्रियता का माहौल है. बारिश, झील व तालाब, नदियों और भूजल के बीच यांत्रिकी अंर्तसबंध हैं. जंगल और पेड़ रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसी प्रक्रिया में कई जहरीले रसायन जमीन के भीतर रिस जाते हैं. ऐसा ही दूषित पानी पीने के कारण देश के कई इलाकों में अपंगता, बहरापन, दांतों का खराब होना, त्वचा के रोग, पेट खराब होना आदि महामारी का रूप ले चुका है.
ऐसे अधिकांश इलाके आदिवासी बाहुल्य हैं और वहां पीने के पानी के लिए भूजल के अलावा कोई विकल्प नहीं है. दिल्ली सहित कुछ राज्यों में भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं. आने वाले दशकों में पानी को ले कर बेहद मशक्कत करनी होगी. ऐसे में प्रकृतिजन्य भूजल का जहरीला होना बहुत खतरनाक है.