भारत में वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) ने देश में उत्पन्न 26 गीगावॉट नई बिजली में 70 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया है. ‘सीईईडब्ल्यू सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस’ (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता अब 442 गीगावॉट तक पहुंच गई है. जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) का योगदान लगभग 33 प्रतिशत (144 गीगावॉट) और ‘हाइड्रो’ का योगदान 11 प्रतिशत (47 गीगावॉट) है. वहीं भारत की कुल स्थापित क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी पहली बार 50 प्रतिशत से नीचे देखने को मिली है. भारत में कोयले का उत्पादन एक अरब टन के आंकड़े को छूने से कोयले पर आयात निर्भरता भी कम हुई है.
शेष विश्व की तरह भारत भी बिजली उत्पादन के लिए लंबे समय से कोयले पर निर्भर रहा है. तेल एवं गैस जैसे जीवाश्म ईंधन भी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति का एक बड़ा आधार रहे हैं. किंतु ये स्रोत बड़े पैमाने पर प्रदूषण का कारण भी बन रहे हैं. कोयले के खनन और ढुलाई से भी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. साथ ही तेल एवं गैस की खरीद पर बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी खर्च करनी पड़ती है. देश में गैस और तेल उत्पादन से अनेक समस्याएं पैदा हुई हैं. लेकिन स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग में बढ़ोत्तरी से इनके उपयोग में उत्साहजनक कमी देखने को मिल रही है. भारत मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया से थर्मल कोयला आयात करता है. और पिछले वर्ष अप्रैल 2023 से जनवरी 2024 के दौरान इन देशों की औसत कीमतें क्रमशः लगभग 54 प्रतिशत और 38 प्रतिशत कम हो गई हैं.
गौरतलब है कि अप्रैल 2023 से जनवरी 2024 के दौरान कोयला आयात की हिस्सेदारी घटकर 21 प्रतिशत तक रह गई है, जो कि वर्ष 2022 से 2023 की इसी अवधि के दौरान 22.48 प्रतिशत थी. साल 1966 के बाद यानी लगभग छह दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है कि बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे आई है. वस्तुतः स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में है. ‘इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस’ की रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने 2030 तक बिजली उत्पादन क्षमता में गैर जीवाश्म ईंधन स्रोतों के योगदान को 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया था और उस समय सीमा से पहले ही इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ठोस आधार तैयार हो रहा है. यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें अपनी विकास आकांक्षाओं तथा बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए ऊर्जा की बड़ी आवश्यकता है. इस कारण जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता स्वाभाविक है तथा अभी कई वर्षों तक हमें उनकी जरूरत है.