रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: विरासत से विकास की ओर बढ़ने का काल

By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Published: December 31, 2021 11:46 AM2021-12-31T11:46:02+5:302021-12-31T11:51:05+5:30

दुर्गा पूजा ही एक ऐसा त्योहार है जो देश के सभी प्रांतों में पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: विरासत से विकास की ओर बढ़ने का काल

Highlightsकुंभ मेला को ज्यादा समझने और इसके विधि को जानने के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय भी इस पर काम कर रहा है।दुर्गा पूजा ही एक ऐसा त्योहार है जो जाति, पंथ और आर्थिक वर्गो की सीमाओं से परे होकर लोगों को एक साथ जोड़ता है।पीएम मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के शुभारंभ के अवसर पर बात कही थी वह भारतीय समाज का यथार्थ है।

एक ओर जहां भारतीय प्रतिभाएं पूरी दुनिया में अपना ध्वज लहरा रही हैं, वहीं भारत की अमूर्त विरासतों को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मान्यता मिल रही है. यूनेस्को ने भारतीय त्यौहार दुर्गा पूजा को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ सूची में शामिल किया है. इसके पूर्व योग, नवरोज और कुंभ मेला को भी इस सूची में शामिल किया जा चुका है. यह विरासतों के मूर्त से अमूर्त की ओर पहचान और महत्व को दिखाने वाला है. दुर्गा पूजा के इस सूची में शामिल होने से भी महत्वपूर्ण यह है कि इन अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों को मान्यता मिलने का जो सकारात्मक प्रभाव भारत के जन मन पर पड़ रहा है वह क्या है? इस दृष्टि से जब सोचते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि यह बीते कुछ साल भारत को उसके प्राचीन गौरव और नए लक्ष्यों के साथ पहचानने का कालखंड है. 

यही कारण है कि जहां कुंभ मेला को समझने और उसकी प्रबंधन विधि को जानने के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय जैसे विश्वस्तरीय संस्थान इस आयोजन का अध्ययन कर रहे हैं, वहीं राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के साथ ही इसे भारत के गौरव और संस्कृति के मानबिंदु के रूप में सर्वत्न स्वीकृति प्राप्त हुई है. जिस सौहाद्र्र और उल्लास के वातावरण में काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का निर्माण हुआ है उससे विरासतों के प्रति गौरव के भाव और नए भारत के निर्माण का पथ प्रशस्त होता है. सहज नहीं था विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का निर्माण, हजारों लोग बेघर हुए लेकिन उन्होंने अपनी खुशी से अपने- अपने घर विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के निर्माण के लिए दिए. 

लोगों की सहभागिता का ही परिणाम था कि दो वर्षो में न केवल दो सौ वर्षो की समस्या का समाधान हो गया बल्कि एक भव्य वास्तु भी उभर कर आया. सही अर्थो में बहुभाषिक, बहुधर्मी, बहुलतावादी समाज किस प्रकार सबकी मान्यताओं को आदर देते हुए और अपनी मूल परंपरा को उसका यथोचित गौरव देते हुए आगे बढ़ सकता है, इसके रास्ते दिखाई देने लगे हैं. यह नए भारत की करवट है.

दुर्गा पूजा को भी इसी रूप में देखना होगा. देश में दुर्गा पूजा का उत्सव सभी प्रांतों में मनाया जा रहा है. दुर्गा पूजा न केवल स्त्नी की दिव्यता का उत्सव है, बल्कि नृत्य, संगीत, शिल्प, अनुष्ठानों, प्रथाओं, परंपराओं और सांस्कृतिक पहलुओं की एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है. सर्व समावेशी यह त्यौहार जाति, पंथ और आर्थिक वर्गो की सीमाओं से परे होकर लोगों को एक साथ जोड़ता है. इसने एक नए ढंग से रोजगार के अवसर भी सृजित किए हैं, व्यापार की संभावनाएं विस्तृत की हैं. अर्थात् मूर्त-अमूर्त विरासतों की ओर लौटना केवल पुराने युग में लौटना नहीं है अपितु पुराने युग के गौरव के साथ नए भारत के निर्माण की ओर चलना है. यह वापसी नहीं है, प्रगति है. 

विरासतों को सिर्फ इतिहास से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है. विरासत तो वही होती है जिसको मनुष्य आज के क्षण में संजोना चाहता है, जीवंत रखना चाहता है. एक लंबा समय रहा है जब देश में हमारी विरासतों को प्राचीन विरासतों के रूप में समझा जाता रहा है. हमारी विरासतें हमारे पूर्वजों के द्वारा दिया गया एक ऐसा उत्तराधिकार है जिससे हम अपने श्रेष्ठ भविष्य का पथ प्रदर्शित कर सकते हैं, इस रूप में नहीं देखा जा रहा था.

यह केवल जड़ों की ओर लौटना नहीं है अपितु जड़ों से पर्याप्त जीवन शक्ति लेकर बिरवे के विराट वृक्ष में परिवर्तित होने की प्रक्रिया है. कोई समाज आकाशबेल जैसा नहीं हो सकता. पराई सांस्कृतिक भूमि पर स्वबोध का समाज नहीं खड़ा हो सकता. आज निश्चित रूप से भारत में स्वराज, स्वबोध और सुराज को लेकर एक नया सकारात्मक विधायक विमर्श खड़ा हुआ है. पहली बार ऐसा हुआ है कि राजनैतिक मतभेदों के होते हुए भी इस नए करवट ले रहे भारत के प्रति सर्वत्न सकारात्मक दृष्टि दिखाई दे रही है. 

इसका कारण बदलता हुआ भारत, दुनिया में तेजी से बढ़ता हुआ भारत है तो दुनिया की समस्याएं भी हैं. दुनिया ने जिस प्रकार की सभ्यता को पिछले तीन-चार सौ वर्षो में निर्मित किया है, अंगीकृत किया है और उसे एकमात्न सभ्यता के रूप में स्वीकृति प्रदान की है, उसने मनुष्य जाति के समक्ष विविध प्रकार के संकट पैदा किए हैं. इस सभ्यता दृष्टि के कारण सुव्यवस्था, लोक कल्याण और पर्यावरण का संकट आसन्न है. ऐसे में स्वाभाविक तौर पर दुनिया भारत की उस अमूर्त सांस्कृतिक परंपरा की ओर देख रही है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत्’ की अवधारणा पर आधारित है. 

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के शुभारंभ के अवसर पर प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने जो बात कही थी वह आज के भारतीय समाज का यथार्थ है. नए भारत में अपनी संस्कृति का गर्व भी है और अपने सामथ्र्य पर उतना ही भरोसा भी है. नए भारत में विरासत भी है और विकास भी है. यहां विरासत से विकास है. विकास का तात्पर्य अपनी विरासतों को सहेजते हुए, उनसे ऊर्जा ग्रहण करते हुए आज की आवश्यकताओं को समझकर आगे बढ़ने का है. इस नए भारत को इस रूप में समझना पड़ेगा. दुर्गा पूजा को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किए जाने को व्यष्टि से समिष्ट की ओर विकसित हो रहे समाज की नई चेतना के आलोक में देखा जाना चाहिए. 

भारत की महान सांस्कृतिक परंपराओं को यूनेस्को की सूची में शामिल किया जाना यह साबित करता है कि दुनिया आज संतृप्त हो रही सभ्यता के विकास के एक रास्ते के रूप में देख रही है. ये विरासतें संग्रहालयों में बंद नहीं बल्कि भारतीयों के जीवन में जीवित विरासतें हैं और जब कोई समाज विरासतों को जीने की ओर बढ़ता है तो अपने पूर्वजों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासतों के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों के सुखमय भविष्य के लिए जीवन प्रणाली की निर्मिति करता है. अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा की स्वीकृति इसी रूप में सामने आती है.

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