ब्लॉग: इंसान का इंसान से हो भाईचारा...
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 9, 2023 12:04 IST2023-08-09T11:58:26+5:302023-08-09T12:04:29+5:30
नूंह हिंसा पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी टिप्पणी की है और कहा है कि किसी को भी हेट स्पीच अर्थात नफरत भरे शब्द नहीं बोलने चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि आपके शब्दों में हिंसा का भी कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए।

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)
नई दिल्ली: हम चांद पर पहुंच गए हैं, फिर भी कुछ लोगों की सोच हिंदू-मुस्लिम पर ही अड़ी है. दिल्ली की सीमा से सटे हरियाणा के नूंह और गुड़गांव में जिस तरह से मामूली सी बात पर हिंसा का तांडव हुआ और छह लोगों की जान चली गई, वह अपने आप में सवाल खड़ा करता है.
हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी को भी हेट स्पीच अर्थात नफरत भरे शब्द नहीं बोलने चाहिए. आपके शब्दों में हिंसा का भी कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए. सब जानते हैं कि नूंह, मेवात में क्या कुछ हुआ और अभी तक वहां एफआईआर दर्ज की जा रही हैं, गिरफ्तारियां हो रही हैं.
इस हिंसा के विरोध में रैलियां निकल रही हैं. मानव को मानव से भिड़ना न पड़े, इसके लिए अपीलें की जा रही हैं. मंदिरों या मस्जिदों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए. किसी भी किस्म के दंगे में नुकसान तो आम आदमी का ही होता है.
नूंह में दो समुदाय के लोग क्या कर रहे है
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का न केवल स्वागत किया जाना चाहिए बल्कि राज्यों को इस पर तुरंत पालन करना चाहिए. आज की तारीख में इसी नूंह में हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे समुदाय के लोगों को अपने-अपने घरों में पनाह दे रहे हैं ताकि आपसी सद्भाव और सांप्रदायिक प्रेम और भाईचारा बना रहे.
हम सब एक हैं यही भारतीयता की पहचान है. हम भले ही किसी भी धर्म के क्यों न हों लेकिन पहले भारतीय हैं, इस अवधारणा पर काम करना होगा. सार्वजनिक जीवन में हमें याद रखना चाहिए : ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय/औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय.
नूंह हिंसा में नफरती जुबान का हुआ है इस्तेमाल
कबीर दास जी का यह दोहा अगर जीवन में उतार लें तो जीवन में कहीं भी कोई दंगा नहीं होगा. कबीर, गुरु नानक देव जी, तुलसीदास जी इत्यादि ने वाणी को लेकर हमेशा मीठेपन की बात कही है कि आपकी वाणी जितनी मीठी होगी, उस आचरण से कभी भी अनिष्ट नहीं होगा. कहा गया है : जहां काम ना करे गोली/वहां काम करे है बोली. इसलिए जुबान पर काबू रखना चाहिए.
नूंह हिंसा में अभी तक जो सामने आ रहा है, उससे पता चल रहा है कि दोनों पक्षों की ओर से भड़काने वाली भाषा का अर्थात नफरत पैदा करने वाली जुबान का इस्तेमाल किया गया. आज जब सबकुछ जलकर तबाह हो गया है तो आग बुझाने की कोशिशें हो रही हैं.
नूंह के गुरुकुल में कई बच्चों की जान हाजी ने बचाई
काश, आग लगे ही क्यों? दंगों में दंगाइयों को कौन भड़काता है, क्यों भड़काता है और तबाही के बाद क्या बचता है, यह सवाल चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक केवल चर्चा का विषय बनकर रह जाते हैं लेकिन फिर भी नूंह के दंगे मानवता की कहानी भी प्रस्तुत कर गए.
नूंह के गुरुकुल में सौ से अधिक बच्चों और शिक्षकों की जान एक हाजी और एक मुस्लिम सरपंच शौकत अली ने बचाई. शौकत अली अपनी टीम के साथ गुरुकुल के आगे डट गए और हमलावर भीड़ को आगे बढ़ने से रोक दिया. उन्होंने भीड़ से कहा कि आपको हमारी लाश से होकर ही गुजरना होगा. इसे सच्ची मानवता कहते हैं.
ऐसे हिंसा में इन लोगों को होता है ज्यादा नुकसान
नूंह, बल्लभगढ़ या पलवल में जिस तरह आगजनी और हिंसा हुई उसका सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों को होता है जो बेचारे दिहाड़ीदार हैं और काम की तलाश में निकलते हैं. सैकड़ों गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया जाना वहशीपन नहीं तो और क्या है.
हमारे बड़े-बुजुर्ग सभ्य समाज को यही सिखाते हैं कि हमेशा शांत बने रहो, धैर्य रखो और मीठा बोलो. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के कमेंट बहुत प्रेरणादायी हैं. हेट स्पीच और हिंसा का किसी भी सभ्य समाज में स्थान नहीं होना चाहिए.
दंगा करने वालों की क्या सजा है
दंगाइयों को ऐसी कड़ी सजा मिले कि दूसरा कोई ऐसी हरकतें करने की जुर्रत न करे. भविष्य में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो और हर कोई सुरक्षित रहे तथा जियो और जीने दो जैसी हमारी संस्कृति चलती रहनी चाहिए. इसी के दम पर हमारी दुनिया में पहचान है. ‘‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा.’’
किरण चोपड़ा