हरीश गुप्ता का ब्लॉगः वित्तीय लेनदेन पर है पीएम मोदी की नजर !

By हरीश गुप्ता | Published: March 2, 2023 08:29 AM2023-03-02T08:29:31+5:302023-03-02T08:29:59+5:30

जहां 2011 में 1.20 लाख भारतीयों ने विदेश में बसने के लिए नागरिकता छोड़ी, वहीं 2022 में यह संख्या लगभग दोगुनी होकर 2.25 लाख हो गई। सरकार को चिंता इस बात की है कि अमीर भारतीय अपने देश में निवेश करने के बजाय नागरिकता खरीद कर विदेश में बस रहे हैं।

Harish Gupta's blog PM Modi's eye on financial transactions | हरीश गुप्ता का ब्लॉगः वित्तीय लेनदेन पर है पीएम मोदी की नजर !

हरीश गुप्ता का ब्लॉगः वित्तीय लेनदेन पर है पीएम मोदी की नजर !

चूंकि 2022 में अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या अब तक के उच्चतम स्तर को छू रही है, इसलिए मोदी सरकार ने संबंधित मंत्रालयों से इस मुद्दे पर गहराई से विचार करने को कहा है। जहां 2011 में 1.20 लाख भारतीयों ने विदेश में बसने के लिए नागरिकता छोड़ी, वहीं 2022 में यह संख्या लगभग दोगुनी होकर 2.25 लाख हो गई। सरकार को चिंता इस बात की है कि अमीर भारतीय अपने देश में निवेश करने के बजाय नागरिकता खरीद कर विदेश में बस रहे हैं। न केवल उच्च-कुशल व्यक्ति और छात्र अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ रहे हैं, बल्कि बड़ी संख्या में अमीर भारतीय कहीं और राष्ट्रीयता ‘खरीद’ रहे हैं। वित्त मंत्रालय से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार 100 से अधिक ऐसे व्यक्तियों की एक सूची तैयार की गई है, जिन्होंने अपनी संदिग्ध अवैध संपत्ति के साथ दुबई और मॉरीशस सहित अन्य टैक्स हैवन देशों में बसने का विकल्प चुना है। चूंकि ये दोनों देश पीएम मोदी के प्रति बेहद मैत्रीपूर्ण हैं, इसलिए सरकार जल्द ही बिना किसी कानूनी बाधा के भारत में उनकी उपस्थिति वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करेगी। इन 100 व्यक्तियों को 2023-24 में अभियोजन का सामना करने के लिए वापस लाया जा सकता है। इससे मतदाताओं को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक मजबूत संदेश जाएगा कि मोदी सरकार ने कालेधन के खिलाफ अपनी कार्रवाई को नहीं छोड़ा है। भारत सरकार जानती है कि अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों से भारतीयों को निकलवाना आसान काम नहीं है। इसलिए ऐसे वांछित व्यक्तियों को निर्वासित करने के लिए अत्यधिक मित्र देशों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। नरेंद्र मोदी इसी मुद्दे पर अपनी बड़ी उपलब्धि दिखाना चाहते हैं। 2011 से रिकॉर्ड 17 लाख भारतीयों ने भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेशों में बसने का विकल्प चुना है।

सेबी की मजेदार जांच
अदानी की कंपनियों के शेयरों में यूएस-आधारित हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद सेबी ने एक जांच शुरू की है। खबरों के अनुसार, जांच का उद्देश्य यह पता लगाना है कि अदानी के शेयरों में बड़े पैमाने पर बिकवाली के पीछे कौन हैं, जो उनकी संपत्ति और पूरे समूह की रैंकिंग को कम कर रहे हैं। इस साल 24 जनवरी को गौतम अदानी की संपत्ति 20 लाख करोड़ रुपए थी और हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों से संयुक्त बाजार पूंजीकरण (एम-कैप) में करीब 13 लाख करोड़ रुपए की कमी आई। सवाल यह है कि जब अदानी एंटरप्राइजेज के शेयर 18 महीने के भीतर 2021 से 2022 तक 4000 फीसदी उछल रहे थे तो सेबी ने कदम क्यों नहीं उठाया। फरवरी 2023 में गिरावट के कारणों की जांच सेबी क्यों करना चाहती है और उसके बाद ही क्यों जागी जब हिंडनबर्ग रिसर्च सामने आई? सेबी के इतिहास में 17 वर्षों में पहली बार मोदी सरकार विनियामक में सुधार के लिए निजी क्षेत्र से एक बेहद पेशेवर महिला उद्यमी लेकर आई है। माधबी पुरी बुच ने 1 मार्च 2022 को अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया और उन्हें सिर्फ अपने काम से काम रखने के दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है। सेबी से यह अपेक्षा की गई थी कि जब समूह की कंपनियों के शेयरों की कीमतें खतरनाक रूप से ऊंची हो गई थीं और किसी ने उंगली नहीं उठाई, तब वह जांच शुरू करे। जब 2020 से कीमतें बढ़ रही थीं, तब किसी म्यूचुअल फंड मैनेजर, किसी नियामक, किसी निगरानीकर्ता या किसी पेशेवर ने यह सवाल नहीं उठाया। यहां तक कि एलआईसी भी समूह की कंपनियों में खरीदारी की होड़ में थी। जानकारों का कहना है कि इस तरह के बड़े झटकों का सामना उन कंपनियों को करना पड़ता है जो अपना कारोबार बढ़ाने के लिए विदेशों से फंड जुटाने के लिए वैश्विक स्तर पर जाती हैं। उनका कहना है कि अदानी के शेयरों में भारी गिरावट भारत में लेहमन ब्रदर्स की स्थिति नहीं ला सकती है।

रायबरेली से प्रियंका!
ऐसा लगता है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों में रायबरेली से चुनावी मैदान में उतरने का रास्ता साफ हो गया है। सोनिया गांधी ने रायपुर में एआईसीसी सत्र के दौरान संकेत दिया कि वह भारत जोड़ो यात्रा के परिणाम से संतुष्ट हैं और अब चुनावी राजनीति से दूर रह सकती हैं। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वे 2024 के चुनावों में चुनावी मैदान में शायद नहीं उतरेंगी। लेकिन अगर वह अपने 10 जनपथ बंगले को बरकरार रखना चाहती हैं तो उनके पास राज्यसभा में प्रवेश करने का विकल्प हो सकता है। अगर वह इस बंगले को बरकरार रखना चाहती हैं तो उन्हें सांसद बनना होगा। रायपुर में सोनिया का बयान अच्छी तरह से तैयार किया गया था और किसी भी तरह से यह संकेत नहीं दिया गया था कि वह राजनीति को अलविदा कह देंगी।

तेजस्वी का मिशन इम्पॉसिबल
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभी विपक्षी दलों की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की ज्वलंत महत्वाकांक्षा है। शायद यही एकमात्र कारण था कि उन्होंने भाजपा से अलग होने और राजद और कांग्रेस के साथ फिर से गठबंधन करने का फैसला किया। लेकिन वह बार-बार इस बात से इनकार करते रहे हैं कि सत्तावादी ताकतों को हटाने के लिए उनकी 2024 में विपक्षी दलों का पीएम पद का संयुक्त उम्मीदवार बनने की कोई इच्छा है। कांग्रेस को रिझाने के लिए वे ऑन रिकॉर्ड कह रहे हैं कि प्रमुख विपक्षी दल के साथ आए बिना एकता नहीं हो सकती है। लेकिन नीतीश कुमार की मंडली के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सभी विपक्षी दलों से बात करने और उन्हें पीएम पद के लिए उनके नाम पर आम सहमति बनाने के लिए राजी करने के लिए नियुक्त किया है। यादव अपने मिशन इंपॉसिबल में राज्यों की राजधानियों की यात्रा कर रहे हैं क्योंकि एक नहीं बल्कि दो बार यूटर्न लेने के बाद कोई भी नीतीश कुमार पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। तेजस्वी ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, हैदराबाद में के। चंद्रशेखर राव और अन्य से मुलाकात की। लेकिन किसी ने भी नीतीश के मिशन का समर्थन नहीं किया है। कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी एकता का नेतृत्व कांग्रेस को करना है।

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