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ब्लॉग: अमित शाह से प्रशांत किशोर के अलग होने की कहानी और RSS में क्यों है बेचैनी?

By हरीश गुप्ता | Updated: August 5, 2021 12:55 IST

प्रशांत किशोर 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी की कोर टीम का हिस्सा थे. उनके हुनर से मोदी इतने प्रभावित थे कि उन्हें सीएम आवास की सबसे ऊपरी मंजिल पर ही जगह आवंटित कर दी गई थी.

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यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता है, तो देश में जल्द ही भाजपा के चाणक्य अमित शाह और विपक्ष के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, ‘पीके’ के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिल सकता है. दोनों 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के अभियान के प्रमुख रणनीतिकार थे और बाद में अलग हो गए. 

कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव तक पीके को अपना प्रमुख चुनावी रणनीतिकार चुनने के करीब है. अगले हफ्ते इस पर कभी भी फैसला हो सकता है. पीके अपनी सेवाओं के लिए कोई शुल्क नहीं लेंगे क्योंकि वे औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल होंगे. 

उन्होंने गांधी परिवार के तीनों प्रमुख सदस्यों से कहा है कि अगर उन्हें शामिल किया जाता है, तो वे 2024 तक होने वाले सभी चुनावों में पार्टी की चुनावी रणनीतियों की निगरानी करेंगे. उन्होंने कहा कि पंजाब में स्थिति को फिर से सुधारा जा सकता है और अगर सही रणनीति अपनाई जाए तो उत्तराखंड को जीता जा सकता है. लेकिन वे गुजरात और कर्नाटक से बड़ी शुरुआत करना चाहेंगे जहां नवंबर 2022 में विधानसभा चुनाव होंगे. 

इन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. गुजरात में 27 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा को उसके गृह क्षेत्र में मात दी जा सकती है. पीके को शामिल करने से पहले सोनिया गांधी  चाहती हैं कि सीडब्ल्यूसी के सभी सदस्यों की मंजूरी की मुहर लग जाए. पार्टी के लोग खुश हैं कि आखिरकार राहुल गांधी किसी की बात सुन रहे हैं और उनकी सलाह पर काम कर सकते हैं.

अमित शाह से क्यों अलग हुए पीके?

‘पीके’ 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी की कोर टीम का हिस्सा थे. पीके के हुनर से मोदी इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सीएम आवास की सबसे ऊपरी मंजिल पर ही जगह आवंटित कर दी गई. पीके ने मोदी को अमेरिका की तर्ज पर नौकरशाही में बदलाव का खाका भी दिया था, जहां हजारों अधिकारी नए राष्ट्रपतियों के साथ आते और जाते हैं. 

मोदी ने जब पीके से पूछा कि वे क्या भूमिका निभाना चाहेंगे तो उन्होंने भाजपा के चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम करना चाहा. यदि संगठन महासचिव हो सकते हैं, तो चुनाव रणनीति के महासचिव क्यों नहीं? मोदी विचार करने को तैयार थे लेकिन अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष का पद संभालने के तुरंत बाद इसे रद्द कर दिया. 

मोदी दुविधा में पड़ गए और पीके बाहर हो गए. 2015 में बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार अमित शाह और पीके आमने-सामने थे और भाजपा को निर्णायक हार मिली थी. लेकिन पीके को वांछित श्रेय नहीं मिला. पंजाब और आंध्र प्रदेश में जीत को अहमियत नहीं दी गई क्योंकि इन राज्यों में भाजपा एक जूनियर पार्टनर थी. पीके ने 2017 में यूपी में भी असफलता का स्वाद चखा था. सात साल बाद उनका सुनहरा पल आया जब उन्होंने 2021 में पश्चिम बंगाल में अमित शाह को करारी मात दी. यह शाह के लिए एक बड़ा झटका था और दमकते पीके ने दावा किया कि ‘वे भाजपा के ओवररेटेड चुनावी प्रबंधक हैं.’

आरएसएस में बेचैनी

आरएसएस में इन दिनों बेचैनी है. संघ के एक शीर्ष नेता ने इसे बहुत सटीक ढंग से कहा : ‘आजकल प्रसन्नता का वातावरण नहीं है.’ उन्होंने विस्तार से नहीं बताया लेकिन भाजपा और आरएसएस के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. जिस तरह से सरकार ने सीएए और तीन कृषि अधिनियमों को हैंडल किया उससे आरएसएस खुश नहीं था और बातचीत होनी चाहिए थी. 

हाल ही में कैबिनेट फेरबदल ने खाई को चौड़ा कर दिया क्योंकि नितिन गडकरी के पंख तब और कतर दिए गए जब उनसे एमएसएमई मंत्रलय को वापस ले लिया गया.

मानो इतना ही काफी नहीं था, नए लोगों को शामिल करने में आरएसएस की अधिकांश सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया गया. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान कि सरकार और समाज दोनों को कोविड महामारी से सबक लेना और समझना है, को सरकार की परोक्ष आलोचना के रूप में देखा गया.

लेकिन पेगासस टेलीफोन टैपिंग कांड, जिसने दुनिया भर की सरकारों को हिलाकर रख दिया, से एक बड़ा अलगाव पैदा हुआ. अब यह सामने आया है कि एक वरिष्ठ सहित कई आरएसएस पदाधिकारियों के टेलीफोन नंबरों पर नजर रखी जा रही थी. पता चला है कि मोदी सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने चित्रकूट का दौरा किया जहां जुलाई के दूसरे सप्ताह में प्रतिनिधि सभा हो रही थी. 

यह मुलाकात महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह 18 जुलाई को आधिकारिक तौर पर पेगासस जासूसी कांड के सामने आने से काफी पहले हुई थी. उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ लंबी बातचीत की. उनके बीच क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है. लेकिन कई लोगों का कहना है कि 18 जुलाई की सुबह सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीट आया कि पीएम मोदी के कैबिनेट मंत्रियों, आरएसएस नेताओं और अन्य के फोन टैपिंग का खुलासा जल्द ही किया जाएगा. 

जाहिर है, उस अधिकारी को आग बुझाने के लिए चित्रकूट भेजा गया था क्योंकि सरकार को पहले से पता था कि ऐसा घोटाला सामने आ सकता है. अंदरूनी सूत्रों का कहना है, ‘तब से खाई चौड़ी हो गई है.’

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