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ब्लॉग: नेहरू के मंत्री ने जब सरदार पटेल पर लगाया था फोन टैपिंग का आरोप, भारत में जासूसी की अंतहीन है कहानी

By हरीश गुप्ता | Updated: July 29, 2021 11:33 IST

भारत में आजादी के बाद से कई ऐसे मौके आते रहे हैं जब जासूसी के आरोप लगाए जाते रहे हैं. फिर चाहे जवाहर लाल नेहरू का समय हो या फिर मनमोहन सिंह का कार्यकाल, इसकी लिस्ट लंबी है.

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चाणक्य ने करीब 2300 साल पहले लिखा था कि राजा का कोई दोस्त नहीं होता और उसके दरबारियों, सेनाधिकारियों और दोस्तों सहित अधिकारियों की समय-समय पर जासूसी की जानी चाहिए. तब टेलीफोन नहीं थे. लेकिन चाणक्य शायद दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने राजा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीधे अपने अधीन एक समुचित इंटेलिजेंस विंग बनाया. 

समय के साथ कार्यप्रणाली और तकनीकें भले ही बदल गई हों लेकिन जासूसी प्राचीन काल से अभी तक चली आ रही है. स्वतंत्र भारत में, टेलीफोन टैपिंग का पहला आरोप किसी और ने नहीं बल्कि जवाहर लाल नेहरू के अधीन संचार मंत्री रफी अहमद किदवई ने लगाया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि गृह मंत्री सरदार पटेल उनके फोन टैप करवा रहे हैं. 

यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया और 1959 में जब जनरल के. एस. थिमैया ने इसी तरह के आरोप लगाए तब फिर उभरा. तीन साल बाद नेहरु कैबिनेट में एक और मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी ने भी ऐसा ही सनसनीखेज आरोप लगाया. लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. 

बाद में इंदिरा गांधी के युग के दौरान तो इस तरह के आरोपों को राजनीति के नियमों की तरह स्वीकार कर लिया गया था. लेकिन देश तब हिल गया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की जासूसी करने का आरोप लगाया गया. हेगड़े ने उच्च नैतिक मानदंडों का पालन करते हुए पद छोड़ दिया था. 

तीन साल बाद मार्च 1991 में, प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को कांग्रेस द्वारा जासूसी के आरोप में इस्तीफा देना पड़ा. हरियाणा सीआईडी के दो पुलिसकर्मी राजीव गांधी के 10 जनपथ स्थित आवास के पास चाय की चुस्की लेते हुए पाए गए थे. कांग्रेस ने जासूसी का आरोप लगाया और राजीव गांधी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.

जासूसी की अंतहीन है कहानी

जासूसी का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता है बल्कि देश में नई तकनीकों के आगमन के साथ टेलीफोन की निगरानी, जासूसी और टैपिंग के कई मामले देखने में आए. दिलचस्प बात यह है कि किसी को इसकी कीमत नहीं चुकानी पड़ी. 2008-09 में राजनीतिक लॉबिस्ट नीरा राडिया से जुड़े जासूसी मामले को याद करें. इसने कई महीनों तक देश को हिलाकर रख दिया था, लेकिन एक सुबह जब वह लंदन के लिए निकलीं तो कुछ नहीं हुआ. 

साल 2013 में, अरुण जेटली के टेलीफोन टैप करने के आरोप में पुलिसकर्मी सहित दस लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जब वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे. लेकिन 2014 में सत्ता में आने के बाद भी इसका कोई नतीजा नहीं निकला. 

मनमोहन सिंह सरकार के दौरान वित्त मंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में बगिंग उपकरण लगे होने के बारे में भी रिपोर्टे सामने आईं. संदेह की सुई नॉर्थ ब्लॉक में ही उनके एक अन्य मंत्रिमंडलीय सहयोगी पर गई. नितिन गडकरी के आवास पर बगिंग उपकरणों के होने का भी पता चला. उन्होंने बाद में इन रिपोर्टो को ‘पूरी तरह अटकलबाजी करार देते हुए ट्वीट किया. लेकिन कभी इससे इनकार नहीं किया. 

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी 2018 में इस तरह के विवादों में आए थे. कुख्यात राजस्थान टेलीफोन टैपिंग मामला भी धीरे-धीरे ठंडा होता गया, क्योंकि इसमें मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री सहित सभी दलों के नेता शामिल थे. अशोक गहलोत बच गए.

निगरानी का कानूनी अधिकार

जासूसी करने का कानूनी अधिकार किसके पास है! इंटेलिजेंस ब्यूरो, सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व खुफिया निदेशालय, केंद्रीय आर्थिक खुफिया ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, आयकर, सीमा शुल्क, एनआईए, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन और कई केंद्रीय पुलिस संगठनों पास आपके कम्प्यूटर, मोबाइल और अन्य उपकरणों को टैप करने का अधिकार है. 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जासूसी के साथ, एजेंसियों की संख्या 60 को छू रही है.

विचित्र स्थिति यह है कि सरकारें लगातार राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक व्यवस्था, कर चोरी आदि के नाम पर अधिक से अधिक लोगों के फोन टैप करने के लिए कानूनी अधिकार प्राप्त कर रही हैं. आईबी में काम कर चुके एक व्यक्ति  ने कहा कि एक लाख से अधिक टेलीफोन इन एजेंसियों द्वारा कानूनी या अवैध रूप से निगरानी में हैं. 

एक समय था जब पीएमओ में पत्रकारों की एंट्री बहुत मामूली बात थी. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या और एसपीजी के आगमन के बाद यह बदल गया. फिर भी, पहले के दौर में पीएमओ तक पहुंच तुलनात्मक रूप से सरल थी. मैंने लंबे समय तक पीएमओ तक आसान पहुंच का आनंद लिया है. एक मित्रवत शीर्ष अधिकारी ने तब मुझे चेताया था : ‘आपका आवागमन बढ़ गया है.’ संदेश प्रबल और स्पष्ट था कि जो कोई भी सत्ता के गलियारों में है, उसे राजा की सुरक्षा के लिए सत्यापित किया जाना है और यह जानने के लिए उसे टैप किया जा सकता है कि अंदर क्या चल रहा है. 

कहानी की नैतिक सीख यह है कि राजा को बचाना है, फिर इसके लिए कौन से साधन इस्तेमाल में लाए जाते हैं, यह मायने नहीं रखता. तो 2021 में पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल जासूसी के लिए अगर किया जा रहा है तो हायतौबा क्यों? ममता बनर्जी न्यायिक समिति का गठन कर रही हैं और कई लोग सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं. 

पेगासस के जासूसी कांड में आने वाले महीनों में और बहुत सारा शोर-शराबा देखने को मिल सकता है. लेकिन  अगर किसी को यह लगता है कि एक या दो विकेट गिरेंगे तो वह खयाली पुलाव पका रहा है.

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