गुरचरण दास का ब्लॉग: सिर्फ गरीबी मत हटाओ बल्कि अमीरी लाओ

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 20, 2019 06:07 AM2019-07-20T06:07:30+5:302019-07-20T06:07:30+5:30

मैं मोदी-2 सरकार के लिए एक नया नारा सुझाना चाहता हूं : ‘न केवल गरीबी हटाओ, बल्कि अमीरी लाओ’. इस नारे में युवाओं की आशा और आकांक्षा की झलक दिखाई देती है. ‘सूट-बूट’ पर रक्षात्मक मुद्रा अपनाने के बजाय सुधारवादी प्रधानमंत्री का उत्तर होना चाहिए, ‘‘हां, मैं चाहता हूं कि हर भारतीय एक मध्यमवर्गीय सूट-बूट जीवनशैली की आकांक्षा रखे.’’

Gurcharan Das Blog: Do not just remove poverty but bring richness | गुरचरण दास का ब्लॉग: सिर्फ गरीबी मत हटाओ बल्कि अमीरी लाओ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

दो हफ्ते पहले, रविवार की रात एक टीवी शो की एंकर लगातार और तिरस्कारपूर्ण ढंग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच ट्रिलियन जीडीपी के लक्ष्य को उद्धृत कर रही थी. शो हमारे शहरों के खराब माहौल पर था और हालांकि एंकर का इरादा आर्थिक विकास पर दोषारोपण करने का नहीं था, लेकिन उसके शब्दों से यही ध्वनि निकल रही थी. जब इस बात को उसके ध्यान में लाया गया तो उसने अपने बचाव में कहा कि भारत को विकास करना चाहिए लेकिन पर्यावरण की जिम्मेदारी के साथ. कोई भी इससे असहमत नहीं हो सकता, लेकिन विकास के फायदों के बारे में दर्शकों को अनिश्चय में ही छोड़ दिया गया.

कुछ हफ्ते पहले, जब से पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की घोषणा की गई है, इस पर बहस शुरू हो गई है. कई लोगों ने संदेह व्यक्त किया है कि क्या इस साहसिक लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. मोदी ने अपने आलोचकों को ‘पेशेवर निराशावादी’ कहा. मुझे लगता है कि इस लक्ष्य की आकांक्षा रखना राष्ट्र के लिए एक अच्छी बात है. इससे यह भी पता चलता है कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार की मानसिकता नई तरह की है. यह एक सुखद परिवर्तन है क्योंकि अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार राहुल गांधी के ‘सूटबूट सरकार’ वाले व्यंग्य से आहत होकर ‘गरीबी हटाओ’ की मानसिकता से मुफ्त में वस्तुएं बांटने लग गई थी और यह दुखद दौड़ हालिया आम चुनाव में अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी. अब अर्थव्यवस्था का महत्वाकांक्षी लक्ष्य विकास की उस मानसिकता को बहाल करता है, जिसके दम पर मोदी सरकार 2014 में पहली बार चुनकर आई थी. 

मैं मोदी-2 सरकार के लिए एक नया नारा सुझाना चाहता हूं : ‘न केवल गरीबी हटाओ, बल्कि अमीरी लाओ’. इस नारे में युवाओं की आशा और आकांक्षा की झलक दिखाई देती है. ‘सूट-बूट’ पर रक्षात्मक मुद्रा अपनाने के बजाय सुधारवादी प्रधानमंत्री का उत्तर होना चाहिए, ‘‘हां, मैं चाहता हूं कि हर भारतीय एक मध्यमवर्गीय सूट-बूट जीवनशैली की आकांक्षा रखे.’’

केवल आर्थिक विकास ही समाज में रोजगार पैदा कर सकता है. केवल विकास से ही सरकार को टैक्स हासिल हो सकता है ताकि वह शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च कर सके. भारत में, विकास की वजह से ही ग्रामीण क्षेत्रों में रियायती दरों पर कुकिंग गैस मिल पा रही है ताकि गोबर और लकड़ी के धुएं के प्रदूषण से लोगों को बचाया जा सके. 1990 में, प्रदूषण का यही भयावह रूप  दुनिया की कुल मौतों में से आठ प्रतिशत मौत का कारण था. विकास और समृद्धि की वजह से यह आंकड़ा आज लगभग आधा हो गया है. यहां तक कि बाहरी प्रदूषण भी तब तेजी से बढ़ता है, जब एक गरीब राष्ट्र विकसित होना शुरू होता है, लेकिन जब उसके पास इसे नियंत्रित करने के साधन उपलब्ध हो जाते हैं, तब इसमें गिरावट आनी शुरू हो जाती है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उच्च जीडीपी वाले देशों का मानव विकास और खुशी का सूचकांक ऊंचा होता है.

कुछ हफ्ते पहले, अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री विकास को नौकरियों से अधिक निकटता से जोड़ने का अवसर चूक गईं. उदाहरण के लिए, अगले पांच साल में बुनियादी ढांचे पर जो 105 लाख करोड़ रु. खर्च होने वाले हैं, उससे सृजित होने वाली नौकरियों का एक मोटा अनुमान उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए था. इसी प्रकार, चूंकि आवास अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र है, उन्हें उन रोजगारों के बारे में एक सरसरी अनुमान देना चाहिए था कि ‘2022 तक सबके लिए घर’ की बजट में की गई घोषणा के कारण इससे कितनी नौकरियां पैदा होंगी. 

पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करना साहसिक सुधारों के क्रियान्वयन और अन्य बदलावों को लागू करने की मानसिकता पर निर्भर करता है. निर्यात से जुड़ा निराशावाद 1950 के दशक से विरासत में मिला, जो अभी भी कायम है और वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 1.7 प्रतिशत है. हमें उस दुर्भाग्यपूर्ण संरक्षणवाद को उलट देना चाहिए जो देश को 2014 से जकड़े हुए है. निर्यात के माध्यम से ही उच्च उत्पादकता वाली नौकरियां सृजित हो सकती हैं और हमारे आकांक्षी युवाओं के लिए अच्छे दिन आ सकते हैं. दूसरा, विकास और रोजगार केवल निजी निवेश के माध्यम से आएंगे. जबकि निवेशकों का रुख अनुकूल नहीं है और बड़े निवेशक भारत के वातावरण को अपने खिलाफ पा रहे हैं.

बजट ने इस भावना को और तीव्र किया है और स्टॉक एक्सचेंज में गिरावट का यह एक कारण हो सकता है. तीसरा, कृषि उपज का एक प्रमुख निर्यातक बनने के बावजूद, भारत अपने किसानों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता है. किसानों को बिक्री की स्वतंत्रता, उत्पादन, कोल्ड चेन, और निर्यात के लिए एक स्थिर नीति बनाने की आवश्यकता है. खाद और पीडीएस की सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) में बदल देना चाहिए.

Web Title: Gurcharan Das Blog: Do not just remove poverty but bring richness

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