आयात घटाने और निर्यात बढ़ाने से बढ़ेगी विकास दर

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: October 3, 2018 11:28 AM2018-10-03T11:28:01+5:302018-10-03T11:28:01+5:30

हाल ही में 27 सितंबर  को एशियाई विकास बैंक ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि चीन-अमेरिका में गहराते कारोबारी विवादों, अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों की विकास दर में कमी आएगी।

Growth rate will be increased by increasing import and export | आयात घटाने और निर्यात बढ़ाने से बढ़ेगी विकास दर

आयात घटाने और निर्यात बढ़ाने से बढ़ेगी विकास दर

(लेख- जयंतीलाल भंडारी)

हाल ही में 27 सितंबर  को एशियाई विकास बैंक ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि चीन-अमेरिका में गहराते कारोबारी विवादों, अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों की विकास दर में कमी आएगी। लेकिन भारत में वर्ष 2018-19 में विकास दर 7.3 फीसदी के संतोषजनक स्तर पर रहेगी तथा वर्ष 2019-20 में भी भारत की विकास दर 7.6 फीसदी रह सकती है, इसके लिए गैरजरूरी उत्पादों के आयात पर नियंत्रण और निर्यात बढ़ाने की नई रणनीति जरूरी है।

गौरतलब है कि  पिछले दिनों  केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और तेजी से घटते हुए विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर को बनाए रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सरकार ने 19 गैरजरूरी उत्पादों के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया है। विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के लिए विनिर्माण इकाइयां पांच करोड़ डॉलर की सीमा तक विदेशी वाणिज्यिक कर्ज ले सकेंगी, जिसकी परिपक्वता अवधि भी एक साल की गई है। सरकार ने मसाला ब्रांड या विदेशी बाजार से धन जुटाने वाले ब्रांड के नियम भी सरल कर दिए हैं। इससे डॉलर का प्रवाह पर्याप्त स्तर पर बनाए रखा जा सकेगा। लेकिन केवल इन प्रयासों से विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर में कमी को नहीं रोका जा सकेगा। जरूरी होगा कि निर्यात बढ़ाने की नई रणनीति शीघ्रता से कार्यान्वित की जाए।  


गौरतलब है कि 29 सितंबर को भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का आकार 399 अरब डॉलर के स्तर से भी कम हो गया। रुपया डॉलर के मुकाबले 73 के निम्न स्तर पर आ गया है तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई है। इसके साथ-साथ अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार की आशंका बढ़ने के कारण दुनिया के शेयर बाजारों में बिकवाली बढ़ गई।

18 सितंबर को अमेरिका के द्वारा चीन से आयात होने वाले करीब 200 अरब डॉलर के उत्पादों पर नए टैरिफ लगाने के निर्णय से भी कारोबारी चिंताएं बढ़ गई हैं। पिछले दिनों 17 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि अगले 2 महीनों के दौरान जहां एक ओर पूरी दुनिया में कच्चे तेल की खपत बढ़कर रोजाना 10 करोड़ बैरल (बीपीओ) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगी, वहीं दूसरी ओर प्रमुख तेल उत्पादक देशों वेनेजुएला में तेजी से बिगड़ते हालात, लीबिया में बढ़ती कलह और 4 नवंबर से अमेरिका के द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लागू किए जाने से तेल उत्पादन में कमी आएगी।  

आईईए का कहना है कि ऐसी स्थिति में भारत जैसे बड़े विकासशील देशों की करेंसी में डॉलर के मुकाबले और गिरावट आएगी तथा इससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर घटेगा। 

वैश्विक वृद्धि के परिदृश्य पर संकेत दिख रहे हैं कि आगामी महीनों में वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ेगी। खासकर विकासशील देशों की चिंताएं विकास दर के मामले में बढ़ेंगी। जिस तरह से दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं मजबूत डॉलर से प्रभावित हो रही हैं, उसी तरह मजबूत डॉलर भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है।

Web Title: Growth rate will be increased by increasing import and export

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