युवा आंदोलनों और प्रदर्शनों की आग अब सिर्फ भारत के कोने-कोने में ही नहीं, विदेशों में भी फैल रही है. इससे विदेशों में भारत की छवि धूमिल पड़ रही है. दबी जुबान से ही हमारे मित्न राष्ट्र भी हमारी आलोचना कर रहे हैं. इसका कारण क्या है? यदि गृह मंत्नी अमित शाह की मानें तो इन सारे आंदोलनों और तोड़-फोड़ के पीछे कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का उकसावा है. इस आंदोलन की आग के फैलने का ठीकरा सिर्फ विपक्षी दलों के माथे फोड़ देना शुतुरमुर्ग-नीति ही कहलाएगा. इसकी बहुत ज्यादा जिम्मेदारी भाजपा की अपनी है.
उसने तीन तलाक को आपराधिक घोषित करना, बालाकोट हवाई हमला और कश्मीर से 370 के विशेष प्रावधानों की समाप्ति जैसे काम ऐसे किए कि उसे जनता का व्यापक समर्थन मिला लेकिन शरणार्थियों को नागरिकता देने का ऐसा विचित्न कानून उसने बनाया कि देश के न्यायप्रिय लोगों को उसका जबर्दस्त विरोध करने का मौका मिल गया. नागरिकता रजिस्टर जैसी उत्तम और सर्वस्वीकार्य जैसी चीज भी उक्त कानून का शिकार बन गई. जो तीन अच्छे काम किए गए थे, उनसे भी नाराज लोगों को अब अपना गुस्सा प्रकट करने का मौका मिल गया.
इसी में जेएनयू की फीस-वृद्धि का मुद्दा भी जुड़ गया. पांच साल का अंदर दबा हुआ सही या गलत गुस्सा अब एकदम बाहर फूट रहा है. नौजवान इसकी अगुवाई कर रहे हैं. उनमें सभी तबके के लोग शामिल हैं. जेएनयू में हुई गुंडागर्दी ने देश के सभी नौजवानों पर उल्टा असर डाला है. मुझे शंका है कि कहीं यह किसी आंधी का रूप धारण न कर ले. बेहतर तो यह होगा कि जेएनयू में गुंडागर्दी करनेवाले लोगों को सरकार पकड़े और दंडित करे. दूसरा काम वह यह करे कि नागरिकता संशोधन विधेयक फिर से संशोधित करे. उसमें से या तो मजहब की शर्त हटा दे। या फिर उसमें सभी मजहबों को जोड़ ले.