गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: देश हित को सर्वोपरि रखें राजनीतिक दल

By गिरीश्वर मिश्र | Published: January 2, 2020 06:58 AM2020-01-02T06:58:06+5:302020-01-02T06:58:06+5:30

कर्म  के स्तर पर उनका घोषित लक्ष्य सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति को नष्ट करना और काबिज सत्ता को हिलाना ही था. विपक्ष की अनेक पार्टियों का समर्थन भी यही बतलाता है और उनका संग्राम भी सत्ताधारी को पदच्युत करना है.  सभी का इसी में विश्वास होता है कि अंतत: सत्ता  से ही सब कुछ होता है.

Girishwar Mishra blog: Political parties should keep the interest of the country at the top | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: देश हित को सर्वोपरि रखें राजनीतिक दल

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

इस बार साल बीतते-बीतते ठंड के मौसम ने देश के एक बड़े भूभाग पर  कब्जा जमा लिया और लोगों की जिंदगी ठिठुर कर सिमटने लगी परंतु राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती गईं. आगजनी, प्रदर्शन और पथराव की भाषा में उग्र विरोध दर्ज कराते हुए अंततोगत्वाराजघाट पर बापू की  समाधि पर शांति और लोकतंत्र के लिए कसमें खाई गईं और फिर सेक्युलर देश और संविधान की जय के साथ राजनीतिक कथाओं को विभिन्न संस्करणों के साथ मीडिया के हवाले कर दिया गया.

इस बार के आंदोलन की एक खासियत यह भी थी कि बहुतेरे उत्साही और पढ़े-लिखे प्रदर्शनकारी भी अपने उद्देश्य के बारे में पूरी तरह अनिभज्ञ थे. उनको उस नियम-कानून की ठीक जानकारी  भी नहीं थी जिसका वे विरोध कर रहे थे.

कर्म  के स्तर पर उनका घोषित लक्ष्य सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति को नष्ट करना और काबिज सत्ता को हिलाना ही था. विपक्ष की अनेक पार्टियों का समर्थन भी यही बतलाता है और उनका संग्राम भी सत्ताधारी को पदच्युत करना है.  सभी का इसी में विश्वास होता है कि अंतत: सत्ता  से ही सब कुछ होता है.

नागरिकता संशोधन के नए कानून के चलते पूरे घटनाक्रम में  सरकार सूचना दे रही थी और विपक्ष असंबद्ध सूत्रों को ले कर आख्यान गढ़ने में लगा था. एक खास सामाजिक वर्ग की भावना और अस्तित्व के भय से जोड़ कर आख्यान को प्रभावशाली रूप देने का काम शुरू हुआ.

पंथनिरपेक्षता के संवैधानिक आग्रह के मद्देनजर  समाज में भेदभाव का प्रश्न भी उठा. एकता और विविधता के अतिवादी पक्षधर यह भूल ही गए कि दोनों  के आग्रहों की संकल्पना कितनी अधूरी और एकांगी है.

सच्चाई यही है कि विविधता के बिना एकता और एकता के बिना विविधता का कोई अर्थ नहीं होता है. इसीलिए ‘विविधता में एकता’ को भारत की विशेषता कहा जाता है और सभी समुदायों की साझेदारी और उनकी निजी अस्मिताएं, दोनों को ही महत्व देना होगा.

दोनों विरोधी न होकर पूरक हैं. यह बात भी नई न होकर हजारों साल से भारतीय समाज के पुराने अतीत से चली आ रही है. आख्यानों का बाजार गर्म है पर आज देश का आम आदमी सब कुछ देख हतप्रभ है. उसे प्रामाणिक आख्यान की तलाश है.

आज राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी बनती है कि  वे देश और  समाज  के हित को सर्वोपरि रख नया आख्यान रचें. इसमें नैतिकता की बड़ी भूमिका होगी. आज ईर्ष्या, घृणा, बैर, लोभ, आक्रामकता और हिंसा के साथ आधुनिक जीवन व्यवस्था सामाजिक जीवन के ताने-बाने को झकझोर रही है. मानवीय गरिमा, समानता और स्वतंत्रता के लक्ष्य पाने के लिए नैतिक अंतर्दृष्टि जरूरी है. राजनैतिक नेतृत्व को अनिवार्यत: नैतिक होना पड़ेगा.

Web Title: Girishwar Mishra blog: Political parties should keep the interest of the country at the top

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