सिर्फ जादुई चिराग न बनें सौगातें 

By शोभना जैन | Updated: March 8, 2025 09:39 IST2025-03-08T09:39:43+5:302025-03-08T09:39:47+5:30

महिलाओं में बढ़ती साक्षरता, जागरूकता और स्वतंत्र निर्णय लेने की  बढ़ती क्षमता  को जहां राजनैतिक दलों के लिये महिला मतदाता को इस तरह का लाभ दिए जाने का वादा कर  चुनाव में जीत की गारंटी मान लिया

Gifts should not be just magic lamps Promises for International Women's Day and Delhi Assembly Elections 2025 | सिर्फ जादुई चिराग न बनें सौगातें 

सिर्फ जादुई चिराग न बनें सौगातें 

पिछले कुछ वर्षों से   जिस तरह से ‘बढ़ती आधी आबादी’ ने  चुनाव में वोट डालने पर अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी शुरू की है,  विभिन्न राजनैतिक दलों को उनमें  चुनाव जितवाने की अपार संभावनाएं दिखनी शुरू हुई, उन्होंने उन पर  बेहतर जिंदगी के लुभावन  चुनावी वादों  के साथ-साथ  नगदी, सब्सिडी  जैसी सौगातों की  बरसात शुरू कर दी और  इन चुनाव नतीजों ने यह साबित भी कर दिया कि उनकी रणनीति कमोबेश  सफल  भी रही. हाल के महीनों में  मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली  में हुए चुनावों ने  इस जादुई चिराग का जम कर इस्तेमाल हुआ.

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़  गठबंधन ने जहां अपने मौजूदा कार्यकाल में  ही उन्हें आर्थिक मदद देना भी शुरू कर दिया और  बाकी  आर्थिक लाभ, सब्सिडी  सत्ता में दोबारा आने पर देने का  वादा कर डाला और विपक्ष ने भी सत्ता में आने पर तरकश के यही तीर आजमाने का वादा किया.  दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने तो 2019 में ही सत्तारूढ़ होते ही महिलाओं के लिये बस यात्रा जैसी सुविधाएं शुरू  कर दी लेकिन  हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में उनका पासा पलट गया और विपक्षी दल भाजपा ने  महिलाओं के लिए उनसे  ज्यादा बेहतर  लुभावनी योजनाओं  की घोषणा कर डाली, अलबत्ता दिल्ली चुनाव में उनकी जीत के लिये कुछ और फेक्टर भी हावी रहे. दिल्ली विधानसभा के हाल के चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों 60.21 के मुकाबले 60.92 हालांकि यहा सत्तारूढ़ ‘आप पार्टी’ को ‘भारतीय जन तापार्टी’ के हाथों हार झेलनी पड़ी.

बहरहाल सवाल है कि क्या   जिस तरह से महिला  मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है, और वे खुलकर  खासतौर से देहात, कस्बों की  महिलाएं घर की चारदीवारी से निकलकर खुलकर मताधिकार का इस्तेमाल कर रही हैं, महिलाओं में बढ़ती साक्षरता, जागरूकता और स्वतंत्र निर्णय लेने की  बढ़ती क्षमता  को जहां राजनैतिक दलों के लिये महिला मतदाता को इस तरह का लाभ दिए जाने का वादा कर  चुनाव में जीत की गारंटी मान लिया, लेकिन क्या इस तरह की रणनीति उन्हें सही मायने में अधिकार संगत बना रही है,  क्या इसी अनुपात में  राजनीतिक दल उन्हें चुनाव लड़ने के लिये टिकट भी दे रहे हैं, क्या  इससे चुनावी राजनीति  में  महिलाओं की सक्रिय भागीदारी  का सवाल कमजोर नहीं हो जाएगा क्या राजनैतिक दल   सिर्फ  इस तरह की फौरी  आर्थिक मदद  कर उनकी दीर्घकालिक  प्रगति, कल्याण मे सहायक हो सकेंगे.

लेकिन इससे जुड़ा एक अहम सवाल यह भी है कि सुविधाहीन वर्ग  और मध्य वर्ग की महिलाएं जहां तिल-तिलकर अपनी गृहस्थी खींच रही हैं उनके लिए इनसे फौरी मदद  एक सहारा तो  है लेकिन  भविष्य की अनिश्चितता इस क्षणिक खुशी  पर जल्द ही हावी हो जाती है. अलबत्ता दिल्ली विधानसभा चुनाव में अनेक युवा और शिक्षित महिलाओं की भी राय थी कि राजनैतिक दलों को सही मायने में   महिलाओं के मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए.

अगर आंकड़ों की बात करें, जिससे राजनैतिक दलों को इस रणनीति को आगे बढ़ाने में बहुत हौसला मिला तो पाएंगे कि 2019 की तुलना में 2024 के आम चुनाव में एक करोड़ अस्सी लाख अतिरिक्त महिलाओं की भागीदारी रही. 2014 के बाद से 58 प्रतिशत महिलाओं में 9 करोड़ 20 लाख नये मतदाता दर्ज किए गए. हालांकि फिलहाल 100 पुरुष मतदाताओं के मुकाबले महिला मतदाता 95 हैं लेकिन ये संख्या लगातार बढ़ रही है.

चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि 2014 के बाद से जहां मतदाताओं की संख्या 83.4 करोड़ थी, वहीं 2024 में यह 97.8 करोड़ हो गई महिलाओं में बढ़ती साक्षरता, जागरूकता, बेहतर बुनियादी सुविधाएं और इन सबके साथ सबसे अहम महिलाओं को ध्यान में रखकर बनी मुद्रा, उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास योजना, लाड़ली बहिना, लखपति दीदी जैसी योजनाओं की भूमिका महिला मतदाताओं को अपनी और खींचने में रही.

हालांकि चिंता की बात है कि महाराष्ट्र सरकार चुनाव जीतने के बाद इस योजना के क्रियान्वन को लेकर जिस तरह की हील-हुज्जत दिखा रही है, वह सब राजनैतिक दलों पर ऐसी योजनाओं की विश्वसनीयता को लेकर सवालों के घेरे में खड़ा कर देता है.

 हालांकि भारत के चुनाव में महिला मतदाता सहित मतदान करने वालों की 66 प्रतिशत संख्या अच्छी मानी जाती है लेकिन सवाल फिर वही लौटकर कि महिला मतदाताओं की बढ़ी हुई संख्या के बावजूद सक्रिय चुनावी राजनीति में एक तिहाई की हिस्सेदारी के लिए उन का संघर्ष लगातार जारी है, महिला सांसदों की संख्या जहां 13.6 प्रतिशत ही है. ऐसे में जरूरी है कि राजनैतिक दल.

महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के बारे में सही मायने में काम करे ताकि महिला मतदाताओं के वोट जुटाने की उनकी रणनीति जीत का गारंटीशुदा फार्मूला या जीत का जादुई चिराग बनकर न रह जाए बल्कि उनके दीर्घकालिक कल्याण और अधिकारसंपन्न बनाए जाने का माध्यम बन सके, तभी देश भी विकसित राष्ट्र बन सकेगा.

Web Title: Gifts should not be just magic lamps Promises for International Women's Day and Delhi Assembly Elections 2025

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