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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: गंगा को बचाने के लिए ईमानदार प्रयास हों

By भरत झुनझुनवाला | Updated: December 8, 2018 09:28 IST

इन परियोजनाओं के अंतर्गत गंगा के पाट में एक किनारे से दूसरे किनारे तक बराज या डैम बना दिया जाता है और नदी का पूरा पानी इन बराज के पीछे रुक जाता है।

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केंद्र सरकार ने हाल ही में एक विज्ञप्ति में गंगा की परिपूर्णता को पुन: स्थापित करने के प्रति अपना संकल्प जताया है। सरकार के इस मंतव्य का स्वागत है। गंगा के अस्तित्व पर इस समय जल विद्युत और सिंचाई परियोजनाओं के संकट हैं। इन परियोजनाओं के अंतर्गत गंगा के पाट में एक किनारे से दूसरे किनारे तक बराज या डैम बना दिया जाता है और नदी का पूरा पानी इन बराज के पीछे रुक जाता है। बराज के नीचे नदी सूख जाती है। पूर्व यूपीए सरकार ने गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए सात आईआईटी के समूह को गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान बनाने का कार्य दिया था।

इस कार्य में देरी होने के चलते यूपीए सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव बी। क़े चतुर्वेदी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने संस्तुति दी कि गंगा पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं से 20 से 30 प्रतिशत पानी लगातार छोड़ा जाना चाहिए। कमेटी ने स्पष्ट लिखा था कि उनकी यह संस्तुति केवल उस अंतरिम समय तक के लिए है जब तक आईआईटी के समूह के द्वारा अंतिम संस्तुतियां नहीं दी जाती हैं। वर्तमान एनडीए सरकार ने चतुर्वेदी कमेटी की इस संस्तुति को लागू कर दिया है।  

इसके बाद आईआईटी समूह ने संस्तुति दी कि लगभग 50 प्रतिशत पानी गंगा की परिपूर्णता बनाए रखने के लिए छोड़ा जाना चाहिए। लेकिन वर्तमान एनडीए सरकार को यह संस्तुति पसंद नहीं आई। इसलिए उसने एक दूसरी कमेटी बनाई। इस कमेटी ने आईआईटी समूह की 50 प्रतिशत की संस्तुति को घटा कर बी। क़े चतुर्वेदी की 20 से 30 प्रतिशत की संस्तुति पर अपनी मोहर लगा दी। इस दूसरी कमेटी में आईआईटी दिल्ली के एक प्रोफेसर सदस्य थे जो कि आईआईटी समूह में भी भागीदार थे। इन्होंने अपने ही द्वारा दी गई संस्तुतियों को सरकार के इशारे पर घटा दिया। सरकार की सदा यह रणनीति रहती है कि एक कमेटी के ऊपर दूसरी, दूसरी के ऊपर तीसरी कमेटी बनाते जाओ जब तक कोई कमेटी सरकार की इच्छानुसार संस्तुति न दे।

इस समय गंगा और उसकी सहायक नदियों पर चार जलविद्युत परियोजनाएं बन रही हैं - फाटा, सिंगोली, विष्णुगाड एवं तपोवन। वर्तमान विज्ञप्ति में कहा गया है कि इन परियोजनाओं द्वारा भी 20 से 30 प्रतिशत पानी पर्यावरणीय प्रवाह के लिए छोड़ा जाएगा। वास्तव में डैम बनाकर उससे पानी छोड़ने से नदी की परिपूर्णता स्थापित नहीं होती है। बराज के पीछे पानी के ठहरे रहने से पानी में निहित आध्यात्मिक शक्तियां कमजोर हो जाती हैं। मछलियां नीचे से ऊपर नहीं जा पाती हैं। ये मछलियां ही पानी को साफ रखती हैं। ऊपर से आने वाली गंगा की गाद में तांबा, थोरियम तथा अन्य लाभप्रद धातु पाए जाते हैं। इस गाद के डैम के पीछे रुक जाने से नीचे के पानी में ये तत्व समाविष्ट नहीं हो पाते हैं। केंद्र सरकार द्वारा स्थापित सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन पुणो ने एक अध्ययन में बताया है कि बांधों का आकार इस प्रकार बनाया जा सकता है कि उसमें बीच का एक हिस्सा खुला रहे जिससे पानी के बहाव की निरंतरता बनी रहे तथा मछली और गाद का आवागमन हो सके। जरूरी था कि वर्तमान में बन रही परियोजनाओं की डिजाइन को बदला जाता और इनसे पानी के निरंतर बहाव को स्थापित किया जाता। लेकिन वर्तमान विज्ञप्ति में इसका उल्लेख नहीं है। 

वर्तमान में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर सात जल विद्युत परियोजनाएं चालू हैं। मनेरी भाली 1, मनेरी भाली 2, टिहरी, कोटेश्वर, विष्णुप्रयाग, श्रीनगर और चीला। इन परियोजनाओं के लिए विज्ञप्ति में कहा गया है कि तीन साल के अंदर ये 20 से 30 प्रतिशत पानी छोड़ने की व्यवस्था करेंगे। इन्हें तीन साल की अवधि देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हर बराज के नीचे गेट लगे होते हैं। इन गेट को सप्ताह या पंद्रह दिन में एक बार खोला जाता है जिससे बराज के पीछे जमा बालू निकल कर नीचे चली जाए। इन गेटों को खोल कर 20 से 30 प्रतिशत पानी तत्काल छोड़ा जा सकता था। लेकिन सरकार ने इन्हें तीन साल का समय देकर तीन साल तक उस पानी का उपयोग कर लाभ कमाने की छूट दे दी है। 

देश की नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए जरूरी है कि बराज तथा डैम में एक हिस्सा खुला छोड़ा जाए। एनडीए सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है इसलिए देश की नदियों का भविष्य संकट में ही दिख रहा है। हाल ही में आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर जी़ डी़ अग्रवाल (ज्ञानस्वरूप सानंद) ने 111 दिन तक निराहार रह कर शरीर छोड़ दिया। लेख लिखते समय संत गोपाल दास को भोजन त्यागे हुए 130 दिन से अधिक हो चुके हैं और स्वामी आत्मबोधानंद को लगभग 40 दिन। दोनों को अस्पताल में जबरन ले जाकर फोर्स फीड कराया जा रहा है। लगता है कि सरकार को और बलि चाहिए। 

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