फिरदौस मिर्जा का ब्लॉगः राष्ट्रपति चुनाव को महज प्रतीकवाद न बनाएं

By फिरदौस मिर्जा | Published: June 30, 2022 03:28 PM2022-06-30T15:28:49+5:302022-06-30T15:29:47+5:30

भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को नामित किया है, जिन्होंने जीवन में एक शिक्षक के रूप में शुरुआत की थी और उन्हें झारखंड की पहली महिला राज्यपाल होने का सम्मान प्राप्त है। विधायक के रूप में उनका शानदार करियर रहा है और 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार प्राप्त किया।

Firdous Mirza's blog Don't make the presidential election a mere symbolism | फिरदौस मिर्जा का ब्लॉगः राष्ट्रपति चुनाव को महज प्रतीकवाद न बनाएं

फिरदौस मिर्जा का ब्लॉगः राष्ट्रपति चुनाव को महज प्रतीकवाद न बनाएं

भारत के राष्ट्रपति पद को डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम तक महान हस्तियों ने सुशोभित किया है। कलाम ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के कामकाज पर अपनी अलग छाप छोड़ी है। समय ने साबित कर दिया है कि भारत के राष्ट्रपति केवल रबर स्टैंप नहीं हैं बल्कि संविधान के संरक्षक, दार्शनिक और राष्ट्र, सरकार व संसद के मार्गदर्शक हैं।

राष्ट्रपति किसी पार्टी, धर्म, जाति, जनजाति, समूह के नहीं बल्कि भारत के होते हैं। वे राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक हैं। राष्ट्रपति की पहचान उनके मूल से कभी नहीं की गई, बल्कि उन्हें देश का प्रमुख और प्रथम नागरिक माना जाता है। इससे पहले, राष्ट्रपति या राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की जाति या पंथ पर कभी चर्चा नहीं की जाती थी।

भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को नामित किया है, जिन्होंने जीवन में एक शिक्षक के रूप में शुरुआत की थी और उन्हें झारखंड की पहली महिला राज्यपाल होने का सम्मान प्राप्त है। विधायक के रूप में उनका शानदार करियर रहा है और 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने काफी लंबे समय तक ओडिशा के मंत्री के रूप में कार्य किया। हैरानी की बात यह है कि उनकी इन योग्यताओं में से कोई भी सार्वजनिक चर्चा में नहीं है, केवल एक चीज जो प्रचारित की जा रही है, वह यह कि वे एक आदिवासी हैं और जो प्रदर्शित करने की कोशिश की जा रही है, वह यह है कि उनकी उम्मीदवारी से आदिवासी लाभान्वित होंगे।

मुझे खेद है कि ऐसी प्रतिभाशाली और गतिशील महिला को उसकी आदिवासी स्थिति तक सीमित रखा गया, एक इंसान के रूप में उसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज कर दिया गया। प्रतिष्ठित पद के लिए उनकी आवश्यक योग्यताओं की चर्चा भी नहीं की जाती है। मेरी राय में यह ऐसे व्यक्तित्व के साथ अन्याय है।

भारत में विभिन्न जातियों और पंथों से राष्ट्रपति हुए हैं। राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम उल्लेखनीय राष्ट्रपतियों में से एक हैं और उन्हें इस पद के लिए चुने गए महानतम व्यक्तियों में से एक माना जाता है। उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, इसलिए अगर हम उन्हें मुस्लिम समुदाय में ही सीमित रखते हैं तो यह उनके और राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा। इस लेख में यदि हम उन्हें मुस्लिम मानते हुए उनके प्रदर्शन का आकलन करें तो यह निराशाजनक निष्कर्ष होगा क्योंकि उनके राष्ट्रपति होने से समुदाय को किसी भी तरह से लाभ नहीं हुआ है। 

सच्चर समिति की रिपोर्ट भारत में मुसलमानों की स्थिति के बारे में एक मापदंड है और यह 17 नवंबर 2006 में आई थी जब डॉ. कलाम राष्ट्रपति थे। ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो यह बताता हो कि उन्होंने कुछ नीतियां बनाईं या मुसलमानों की बेहतरी के लिए कोई कार्यक्रम चलाने के लिए अपनी सरकार पर दबाव डाला।

हमारे यहां भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में प्रतिभा पाटिल हुई हैं। उन्हें मनोनीत करने के निर्णय का सभी ने स्वागत किया क्योंकि यह महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने जैसा था। क्या उनके कार्यकाल में उनके आदेश पर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कोई विशेष अभियान चलाया गया था? जवाब 'नहीं' है। निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अनुसूचित जाति से हैं। क्या उनके राष्ट्रपति बनने से अनुसूचित जातियों के लिए कुछ बेहतर नीतियां बनी हैं? उत्तर 'नहीं' है।

यह एक तथ्य है कि सभी पूर्व राष्ट्रपतियों ने देश के लिए काम किया है, उनका योगदान समग्र विकास के लिए था, न कि किसी विशेष समुदाय के लिए। किसी भी समुदाय के सदस्य को नामित करना सिर्फ एक प्रतीक है और मुझे दृढ़ता से लगता है कि स्वतंत्रता के इस प्लेटिनम वर्ष में हमें इस प्रतीकवाद से ऊपर उठना चाहिए। यदि सत्ताधारी पार्टी आदिवासियों के जीवन में कोई बदलाव लाना चाहती है तो उसे आदिवासियों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करना चाहिए और उन्हें विभिन्न एजेंसियों द्वारा शोषण से बचाना चाहिए। एक आदिवासी के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार को प्रचारित करने का प्रतीकवाद किसी काम का नहीं है, बल्कि वास्तव में प्रतिष्ठित संवैधानिक पद का ह्रास है।

Web Title: Firdous Mirza's blog Don't make the presidential election a mere symbolism

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