Festivals Indian Railway: त्यौहारों पर रेलवे की अव्यवस्था और यात्रियों की दुर्दशा
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: October 28, 2024 05:27 IST2024-10-28T05:27:43+5:302024-10-28T05:27:43+5:30
Festivals Indian Railway: यूं देखा जाए तो रेलवे के लिए त्यौहारों के मौसम में यात्रियों की संख्या का बढ़ना कोई नई बात नहीं है.

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Festivals Indian Railway: त्यौहारों के लिए रेलवे की तैयारी की घोषणा के बाद अधिक समय नहीं बीता था कि मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर रविवार की सुबह-सुबह भगदड़ मच गई और अनेक यात्री घायल हो गए. बताया गया कि मुंबई-गोरखपुर एक्सप्रेस में सारे कोच जनरल तथा आरक्षण रहित होने के कारण बड़ी संख्या में यात्रियों की भीड़ चढ़ने के लिए उमड़ पड़ी और उसी में भगदड़ मच गई. इस दृश्य के दौरान रेलवे की व्यवस्था और सुरक्षाकर्मियों की तैनाती दिखाई नहीं दी. यूं देखा जाए तो रेलवे के लिए त्यौहारों के मौसम में यात्रियों की संख्या का बढ़ना कोई नई बात नहीं है.
इसी बात के चलते ही गत दिवस दिवाली और छठ पूजा के लिए 7000 विशेष ट्रेन चलाने की घोषणा की गई, जिनसे प्रतिदिन दो लाख अतिरिक्त यात्रियों को सुविधा मिलने की उम्मीद की गई. पिछले साल दिवाली और छठ पूजा के दौरान 4,500 विशेष ट्रेन चलाई गई थीं. इससे साफ है कि इस बार अधिकारियों को यात्रियों की बढ़ती संख्या का अंदाज था.
मुंबई या दिल्ली या फिर कोलकाता हो, सभी स्थानों से त्यौहारों के मौसम में आने-जाने वालों की भीड़ का बढ़ना सामान्य है. मगर वह कब अधिक होगी, इसका अंदाज भी होना आवश्यक है. दिवाली का त्यौहार मंगलवार से आरंभ हो रहा है. इसलिए घर वापसी करने वाले शनिवार-रविवार से ट्रेनों में उमड़ सकते हैं. यदि इस बात को देखकर मुंबई में व्यवस्था की गई होती तो अव्यवस्था पर रोक लगाई जा सकती थी.
किंतु वास्तविकता से दूर कागजी स्तर पर तैयारी करने के परिणाम सामने हैं. सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर जाने वाली ट्रेनों में सामान्य दिनों में भी भीड़ अधिक होती है तो त्यौहारों के मौसम में कैसे उसे नजरअंदाज किया जा सकता है. रेलवे का दावा है कि दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए रेलवे और आरपीएफ ने कई सुविधाएं मुहैया कराई हैं, जिसमें सुरक्षा व्यवस्था, सहायता कक्ष में माइक की व्यवस्था और अन्य सुविधाएं शामिल हैं. इस तुलना में मुंबई में कुछ दिखाई नहीं दिया.
दरअसल सालों-साल से रेलवे दावे करता है, किंतु सच्चाई कुछ और नजर आती है. भीड़ बढ़ने का अनुमान तो उसी समय लग जाता है, जब रेलों का आरक्षण महीनों पहले भर जाता है. समझने के लिए उसमें समय-तारीख भी होती ही है. फिर भी जब लोग रेलवे स्टेशन पर पहुंचते हैं तो समुचित व्यवस्था नहीं दिखती है. रेलवे आम दिनों की तरह अपना काम निपटाती रहती है.
इस परिदृश्य में पहली बात यह कि गांवों को छोड़कर लोगों का रोजगार की तलाश में शहर जाना और दूसरी, लौटने पर जान की बाजी लगाना समस्त प्रकार के दावों के बाद देश के लिए दु:खद स्थिति है. राज्य और केंद्र सरकार से इस पर समग्र विचार-विमर्श के साथ जवाबदेही तय किया जाना अपेक्षित है. इसे महज दुर्घटना मानकर छोड़ा नहीं जा सकता है, क्योंकि यह लापरवाह कार्यप्रणाली का भी परिणाम है.