Festivals in India: उत्सव के उल्लास में वो मूकदर्शक क्यों...?
By विजय दर्डा | Updated: October 14, 2024 05:16 IST2024-10-14T05:16:14+5:302024-10-14T05:16:14+5:30
Festivals in India 2024: देवी की आराधना के पवित्र पर्व नवरात्रि के दौरान सड़कों पर जिस तरह से अतिक्रमण छाया हुआ था उसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि प्रशासन क्या कर रहा था? सड़कों पर चलने की जगह नहीं थी.

सांकेतिक फोटो
Festivals in India 2024: क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि छोटे-छोटे आंचलिक त्यौहारों को छोड़ भी दें तो भी हम भारतवासी हर साल 30 से ज्यादा बड़े त्यौहार मनाते हैं. इनमें से कुछ तो व्यापक त्यौहार हैं. दुनिया के किसी और देश में इतने त्यौहार नहीं मनाए जाते हैं. ये त्यौहार हमें एकसूत्र में पिरोए रखने में निश्चय ही बड़ी भूमिका निभाते हैं और हमारी जिंदगी को खुशहाल भी बनाते हैं. उत्सव का उल्लास वास्तव में जिंदगी में रंग भरने का काम करता है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम अपनी परंपरा और रीति-रिवाजों को जिंदगी का हिस्सा बनाए रखें.
उत्सव के रंग में रंग जाने की विरासत मुझे भी मिली है और मैं हर धर्म के त्यौहार पूरी श्रद्धा के साथ मनाता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि त्यौहारों की सामाजिकता राष्ट्र को मजबूत बनाने में प्रमुख भूमिका निभाती है. लेकिन इस साल अपने गृहनगर यवतमाल में मैंने जो कुछ भी महसूस किया उसने मुझे कुछ जरूरी सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया है.
क्योंकि यह सवाल केवल यवतमाल का नहीं है बल्कि हर उस जगह का है जहां प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है और उसकी उदासीनता आम आदमी के लिए परेशानी का सबब बन जाती है. देवी की आराधना के पवित्र पर्व नवरात्रि के दौरान सड़कों पर जिस तरह से अतिक्रमण छाया हुआ था उसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि प्रशासन क्या कर रहा था? सड़कों पर चलने की जगह नहीं थी.
लोगों को तो लंबे रास्ते से जाना ही पड़ा, मैंने देखा कि एंबुलेंस को भी मुड़कर लंबे रास्ते से जाना पड़ रहा था. क्या किसी ने सोचा कि अस्पताल पहुंचने में देरी से उस मरीज को कितनी तकलीफ हो रही होगी?नवरात्रि के इन्हीं दिनों में मैं गरबा के गढ़ अहमदाबाद में था, मुंबई और नागपुर में भी था. मैंने देखा कि रास्ते ट्रैफिक के लिए पूरी तरह खुले थे.
गणेशोत्सव के दौरान मुंबई की व्यवस्था को मैं हर साल देखता हूं. एक सड़क बंद नहीं होती. लाखों की संख्या में लोग उल्लसित होकर सड़क पर निकलते हैं, चौपाटी पर जमा होते हैं. पुलिस उनके उल्लास को दोगुना कर देती है लेकिन ट्रैफिक की ऐसी व्यवस्था करती है कि किसी को कोई तकलीफ न हो.
जब मुंबई और नागपुर में ट्रैफिक व्यवस्था सुचारु हो सकती है तो यवतमाल जैसे छोटे शहरों में क्यों नहीं हो सकती? जैसा कि मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि मैं उत्सव को परवान चढ़ाने के पक्ष में हूं. आप देखिए कि गुजरात से शुरू हुआ मां अंबे की आराधना का गरबा डांडिया अब पूरे देश में धूम मचा रहा है. जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोग डांडिया रास खेलने जाते हैं.
भक्ति का अथाह सागर हर ओर नजर आता है. धर्म और जाति का कोई भेदभाव नहीं. गरबा मंडप में एकसूत्र में पिरोया भारत नजर आता है. यह शुभ संकेत है. लेकिन जरा सोचिए कि ऐसे आयोजन में क्या इस बात का ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए कि सड़क पर किसी को तकलीफ न हो! हमारे देवी-देवता यह नहीं सिखाते कि किसी को तकलीफ दो.
मैंने यवतमाल में जो देखा और जो दूसरी जगहों पर लोग महसूस कर रहे हैं वह चिंता का विषय है. मुझे लगता है कि न्यायालय को सुओ मोटो मुकदमा दर्ज करना चाहिए. जिला न्यायालय वहां है. एक बात और कहना चाहता हूं कि जिन्होंने ये हरकतें की हैं, उन पर ही नहीं बल्कि मुख्य रूप से प्रशासन पर मुकदमा दायर करना चाहिए कि कैसे उन्होंने अनुमति दी?
यह देखते समझते हुए भी कि लोग परेशान हैं, प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. क्या प्रशासन पर कोई दबाव था? मेरी इच्छा होती है कि गणेशजी से प्रश्न पूछूं, मां जगदंबे से प्रश्न पूछूं, न्याय देवता से पूछूं कि हम आपकी आराधना करते हैं, हम उपवास करते हैं, हम शीश नवाते हैं मगर ये भावना हम में क्यों नहीं आती कि हम लोगों को तकलीफ नहीं दें?
मैं लोगों से कहता हूं कि हम अपने देवी-देवताओं और महापुरुषों के आचरण का कुछ अंश भी पालन कर लें तो कोई समस्या पैदा ही न हो. जिनकी आराधना आप कर रहे हैं, कम से कम उनके सम्मान को तो ठेस मत पहुंचाइए! मुझे यह समझ में नहीं आता कि यह कैसा उल्लास जिसकी नींव के पीछे लोगों की तकलीफें दबी हों? यह सब हमारी व्यवस्था के अराजक व्यवहार का ही नतीजा है.
मैं देख रहा हूं कि उत्सव के इस माहौल में हर जगह बड़े-बड़े होर्डिंग टंगे हैं. जिसको देखो, वही अपने होर्डिंग टांग रहा है. न्यायालय ने इस संबंध में आदेश दे रखे हैं लेकिन सरेआम आदेश की धज्जियां उड़ रही हैं. उन लोगों पर क्यों नहीं कार्रवाई होती जिनके फोटो होर्डिंग पर लगे होते हैं या फिर उन कंपनियों की गर्दन क्यों नहीं दबोची जाती जो इन होर्डिंग्स को प्रायोजित करते हैं?
अब दीवाली आने वाली है. उत्सवप्रियता हम भारतीयों के खून में है और यही हमारी पहचान भी है. सभी धर्मों के लोग मिलकर उल्लसित होइए, खूब नाचिए, गाइए, खाइए. खूब डीजे बजाइए, खूब पटाखे भी फोड़िए लेकिन इस बात का ध्यान रखिए कि उन पटाखों और डीजे से किसी के कान के पर्दे न फटें. मुझे उम्मीद है कि मेरा यह कॉलम पढ़ने के बाद प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक जैसे वरिष्ठ अधिकारी इस गंभीर मुद्दे पर जरूर ध्यान देंगे.